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ओपिनियन पोल और एक्ज़िट पोल हैं पत्रकारिता के साथ बलात्कार!
माजिद अली खां (राजनीतिक संपादक)
जब भी चुनाव आते हैं तब तब चुनाव से पहले ओपिनियन पोल और चुनाव के बाद परिणाम आने से पहले एक्जिट पोल समाचार चैनलों द्वारा जारी किए जाते हैं जिससे समाज में बहस शुरू हो जाती है और बहस कभी कभी संघर्ष में भी तब्दील हो जाती है। आखिर एक्ज़िट पोल देने जल्दी समाचार चैनलों को क्यों रहती है, क्या यह गुमराही पत्रकारिता का हिस्सा है या अपने हित साधने के नाम पर पत्रकारिता के साथ बलात्कार किया जाता है।
पत्रकारिता के नाम पर किया जाने वाला खेल करने वाले अपने आप को बेहतरीन पत्रकार समझते हैं जबकि सच्चाई यह है कि इस तरह लोगो को भ्रमित करना पत्रकारिता के सिद्धांतों के बिल्कुल खिलाफ है।
ओपिनियन पोल और एक्ज़िट पोल देने के पीछे सबसे बड़ा कारण किसी विशेष चैनल द्वारा किसी विशेष पार्टी के हक में जनता की राय को बदलना जिसके बदले में आर्थिक फायदा प्राप्त किया जाता है। जबकि पत्रकारिता का पहला उसूल यह है कि जनता को बिल्कुल सही और सच्ची बात बताई जाए, समाज को अफवाहों और गुमराही से बचाया जाए। जब चुनाव परिणाम आते हैं और एक्ज़िट पोल बिल्कुल झूठे साबित हो जाते हैं तो एक्ज़िट पोल जारी करने वाला चैनल खिसियानी बिल्ली बन जाता है और बेशर्मी की चादर ओढ़ कर अपना काम जारी रखता है लेकिन जनता के कटघरे में खड़ी होती है पत्रकारिता। देश में पत्रकारिता के नाम बड़े ओहदे और पुरस्कार कब्जाने वाले पत्रकार बिल्कुल संवेदनाहीन हो चुके हैं कि इस बुराई के खिलाफ कुछ बोलने को तैयार नहीं।
पत्रकारिता में टीवी चैनलों के बढ़ते जाल ने पत्रकारिता के साथ खिलवाड़ करने में कसर नहीं छोड़ी। जो जितना बड़ा मीडिया प्रतिष्ठान है उतना ही पत्रकारिता के साथ खेल रहा है। जितने बड़े पत्रकार कहे जाते उतना ही पत्रकारिता के साथ व्याभिचार करते नज़र आते हैं।
पत्रकारिता को मिशन मानने वाले पत्रकारों के लिए यह एक शोचनीय विषय है। अगर पत्रकारिता के सम्मान कोई बचाना है तो हर तरह की खुराफात को रोकना होगा। नहीं तो प्रोपेगंडा के इस दौर में यह परिपाटी समाज और इंसानियत कोई तबाह कर देगी।