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संजय झा
राजनीति संभावनाओं का खेल है। यह किसने कहा मालूम नहीं लेकिन बचपन से सुनते आ रहे हैं तो याद है। हाल में ही बिहार के मोदी यानी छोटके मोदी भी कह रहे थे कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। दुरुस्त कह रहे थे। राजनीति की यही सबसे छोटी और सटीक परिभाषा भी है। इसे समझने के लिए दिमाग पर जोर देने की कतई जरूरत नहीं है।
तभी तो हिंदुस्तान को बर्बाद करने का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ने वाले कन्हैया कुमार अब खुद कांग्रेसी होने जा रहे हैं। अभी यहां हवा टाइट चल रही है। जितने भी बिहार की राजनीति को समझने वाले लोग हैं, अधिकांश का मानना है कि इससे न कांग्रेस को फायदा होगा न कन्हैया कुछ उखाड़ पाएंगे। कुलमिलाकर यह बात कन्हैया भी जानते होंगे कि प्रदेश में कांग्रेस की क्या स्थिति है। कांग्रेस के मुकाबले यहां वामदल ज्यादा अच्छी स्थिति में हैं। फिर भी कन्हैया के कांग्रेसी होने की खूब वजहें होंगी। वह घाघ आदमी हैं। नागमणि नहीं है कि 11 बार पार्टी बदलता फिरे।
राजनीति में किंतु-परन्तु चलते रहता है। सब कुछ जैसा चल रहा चलता रहा तो देखिएगा बिहार में जदयू-कांग्रेस साथ होंगे। नीतीश कुमार केंद्र से नाराज चल रहे हैं। कल ही एक जदयू मंत्री विशेष राज्य का दर्जा मांग-मांग कर थकने की बात दोहरा चुके हैं। यह सब ऐसे नहीं हो रहा है। अब तक भाजपा को जूनियर मोदी थे तो संभाले हुए थे। अबकी उन्हें हटाया ही गया ताकि जदयू पर आक्रमक रहा जा सके।
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही बदलाव के मूड में हैं। भाजपा जदयू से पिंड छुड़ाना चाहती है, कांग्रेस राजद से। ऐसे में कहा तो यह भी जा रहा है कि कन्हैया के शामिल होने के कारण ही पार्टी ने नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति में देरी हो रही है। याद कीजिये लोकसभा चुनाव में यह कन्हैया कुमार ही थे जिसे तेजस्वी ने अछूत बना दिया था। अबकी कन्हैया कांग्रेसी होंगे तो चुनौती और बड़ी होगी। कांग्रेस हो या कन्हैया खोने के लिए दोनों के पास कुछ भी नहीं है। ये जो भी हासिल करेंगे सरप्लस होगा।