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महेश झालानी
कभी देश मे एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस पार्टी की मृत्यु तो उसी दिन होगई थी, जब इस पार्टी की कमान "राजकुमार" राहुल गांधी ने संभाली थी। अब इसका अंतिम संस्कार होना बाकी है । यदि राहुल के हाथ मे पार्टी की कमान फिर से आ जाती है तो कांग्रेस की अंतिम संस्कार की क्रिया भी बहुत जल्द पूर्ण हो जाएगी। अपनी कुर्सी तथा वजूद बचाने के लिए सभी कांग्रेसी बचकानी हरकतो को अंजाम देने वाले इस राजकुमार को पार्टी का अध्यक्ष बनाने के लिए अड़े हुए है। हालांकि कांग्रेसी भलीभांति जानते है कि बन्दर के हाथ मे उस्तरा देने का परिणाम क्या होता है, फिर भी विवश होकर पार्टी का अंतिम संस्कार की क्रिया पूर्ण करने के लिए ये कांग्रेसी बुरी तरह सक्रिय है।
कमोबेश सभी राजनीतिक दलों में चमचागिरी की होड़ मची हुई है। कहीँ मोदी मोदी का शोर मच रहा है तो कोई राहुल का राग अलाप रहा है। वैसे गांधी परिवार के अलावा कांग्रेसियों को कोई राह भी नही दिखाई देती है। कभी संजय गांधी तो कभी इंदिरा गांधी। कभी कभार प्रियंका का भी शोर सुनाई देने लगता है । अच्छा हुआ राहुल ने विवाह नही किया, वरना ये कांग्रेसी उनकी पत्नी को पार्टी की कमान देने के लिए अनशन पर बैठ जाते।
राहुल को पार्टी की कमान सौपने की पैरवी करने वालों को इस बात का जवाब तो देना ही होगा कि नेहरू/गांधी परिवार में जन्म लेने के अलावा इस राजकुमार की योग्यता क्या है। ना इसको सलीके से भाषण देना आता है और न ही यह कुशल वक्ता है। सामान्य ज्ञान, संसदीय कायदे-कानून से इसका दूर परे का भी रिश्ता नही है। अपनी बचकानी हरकतों के लिये विख्यात राहुल ने संसद में आंख मारकर अपनी और पार्टी की हंसी उड़वाई। इसी तरह मोदी के गले मिलकर राहुल ने अपनी बेवकूफी का परिचय दिया। बोफोर्स और ईवीएम का राग अलापने वाले राहुल की अब बोलती बन्द हो चुकी है।
राहुल ने कसम खाई थी कि जब तक कांग्रेस को पूरी तरह नेस्तनाबूद नही कर दूंगा, तब तक चैन से नही बैठूंगा। सच मे वह अवसर अब आ चुका है। यूपी में पिटने के बाद बिहार में पार्टी की पूरी तरह लुटिया डुबो चुके है राजकुमार। अब पुनः पार्टी की कमान फिर से आगई तो बंगाल, तमिलनाडु, राजस्थान, एमपी, महाराष्ट्र आदि सभी राज्यो में कांग्रेस का पूरी तरह नामोनिशान मिटाकर ही दम लेगा, यह राजकुमार। मिशन 24 के तहत देश को पूर्णतया कांग्रेसमुक्त करना ही राहुल गांधी का एकमात्र लक्ष्य होगा।
कांग्रेसियों के पास अभी भी आत्ममंथन का वक्त है। चमचागिरी छोड़कर उन्हें ऐसे व्यक्ति को पार्टी की कमान सौपनी चाहिए जिसमे पार्टी चलाने की क्षमता और योग्यता हो। यदि राहुल के हाथ मे पार्टी की कमान चली गई तो सचिन, सिंधिया जैसे चाटुकार लोग हावी हो जाएंगे और पार्टी चली जायेगी रसातल में। क्योकि राहुल के पास खुद का दिमाग तो है नही। बैशाखियों के सहारे पार्टी ज्यादा दिन चलने वाली नही है। इसलिए अब जी- हजूरी नही, साहस दिखाने का समय है। गांधी परिवार से ख़ौफ खाने की वजह से ही पार्टी आज लहूलुहान पड़ी है। कांग्रेस का अंतिम संस्कार हो, उससे पहले ऐसा कोई पुख्ता उपाय करना होगा जिससे यह पुनः जीवित हो सके।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है