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खानदान की विरासत को बचाना राहुल गांधी ही नहीं वरुण गाँधी भी जिम्मेदार!
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संजय कुमार सिंह
महात्मा गांधी की पड़पोती की सजा को लोग अलग-अलग नजरिए से देख रहे हैं और इसमें कोई खास बात नहीं है। खास यह है कि यह खबर ऐसे समय में आई है जब नेहरू खानदान को बदनाम करने की कोशिश सबसे ज्यादा तेज हुई। खून में कारोबार का दंभ और आर्थिक घोटाले में सजा। खास वर्ग के कारोबारियों के फरार होने के बीच यह खबर बताती है कि स्वतंत्रता आंदोलन के समय के वीरों और गुरुओं को जबरन महान मानने और बनाने वाले लोग आज क्यों सत्ता में या राजनीति में ऊंची जगह नहीं हैं।
नरेन्द्र मोदी ने यह दिखाने या प्रचारित करने की खूब कोशिश की कि नेहरू खानदान ने ऐसा होने नहीं दिया जबकि नेहरू खानदान ने तो अपना घर से लेकर खून तक दिया है। अगर कोई और काबिल होता तो कुछ किया होता। कहीं खड़ा होता। और जो है वह सामने है किसी से छिपा नहीं है। इसलिए 3000 करोड़ की प्रतिमा कोई जरूरी नहीं थी लेकिन जब बताना पड़े कि मेरा विरोधी पप्पू है तो सरकारी धन की ऐसी बर्बादी ही रास्ता है।
बात बहुत साफ है, जब नरेन्द्र मोदी को नहीं रोका गया तो गांधी के बेटे को क्या रोका जाता। और कोई दो राय नहीं है कि राहुल गांधी की जवाबी कार्रवाई का एक स्तर है। इसलिए यह सजा मौके पर चौका है। बेशक यह नजरिया है और गांधी के प्रति जो सम्मान था वह अपनी जगह रहते हुए भी नेहरू के विरोधियों ने जो किया उससे ना सिर्फ गांधी परिवार बल्कि वो सब याद किए जा सकते हैं कि वो देश के लिए क्या छोड़ गए। जिसका कोई है ही नहीं वो तो ले न जाएं यही बहुत है। बेच तो सब देंगे ही।
विरासत और परंपरा को बचाए रखना साधारण नहीं है। खासकर तब जब वह खून में व्यापार वाला नहीं हो। और इस लिहाज से राहुल गांधी निश्चित रूप से प्रसंसनीय हैं। यहां वरुण गांधी को भी याद कर लिया जाना चाहिए और उनके प्रति निष्पक्षता का तकाजा है कि वे अभी जहां हैं उसके लिए वे अकेले जिम्मेदार नहीं हैं और वे शायद कुछ कर भी नहीं सकते थे। लेकिन मुझे लग रहा है कि खानदान की विरासत की रक्षा से चूक तो रहे ही हैं। और श्रेय अकेले राहुल गांधी को मिल रहा है जबकि दोषी वो नहीं के बराबर हैं।