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तो क्या राहुल गांधी को गुजरात में कांग्रेस की बुरी हार का अहसास हो गया था?
वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में गुजरात में कांग्रेस को 77 सीटें मिली थी, लेकिन 8 दिसंबर को घोषित 2022 के चुनाव में कांग्रेस को मुश्किल से 20 सीटें मिल रही हैं, जबकि भाजपा ने अपने पिछले रिकॉर्ड तोड़ते हुए 182 में से 145 सीटें हासिल की है। सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस की इस बुरी हार का अहसास राहुल गांधी को पहले ही हो गया था? गुजरात चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोद खुद पार्टी कार्यालय में बैठ कर रणनीति बना रहे थे, वही राहुल गांधी सिर्फ एक दिन के लिए गुजरात आए। पीएम मोदी जब गुजरात में 50 किलोमीटर का रिकॉर्ड रोड शो कर रहे थे, तब राहुल गांधी कर्नाटक और मध्य प्रदेश में पदयात्रा कर रहे थे। यानी राहुल गांधी खुद कांग्रेस के प्रचार के लिए गुजरात नहीं गए। असल में राहुल को कांग्रेस की बुरी हार का अहसास हो गया था। हार का ठीकरा उनके सिर नहीं फूटे इसलिए वे चुनाव के दौरान गुजरात गए ही नहीं। यानी हार के डर से राहुल गांधी ने खुद पलायन कर दिया।
सवाल यह भी है कि राहुल गांधी किस उद्देश्य के लिए भारत जोड़ों यात्रा निकाल रहे हैं? राहुल की यात्रा के दौरान ही गुजरात में जब इतनी बुरी हार मिली है, जब राहुल की यात्रा से कांग्रेस को क्या फायदा होगा। राहुल की यात्रा पर अरबों रुपया खर्च हो रहा है। मल्लिकार्जुन खडग़े भले ही कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए हों, लेकिन कांग्रेस की पहचान तो गांधी परिवार के सदस्य सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से ही है। कांग्रेस का आम कार्यकर्ता गांधी परिवार के सदस्यों को ही अपना नेता मानता है। अब यदि नेता ही चुनाव प्रचार से पलायन करेंगे तो कांग्रेस का क्या होगा? कुछ लोग कह रहे हैं कि राहुल की भारत जोड़ो यात्रा 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए है। सवाल उठता है कि क्या लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मतदाता अलग अलग हैं? गुजरात के जिन मतदाताओं ने विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट दिया, वही मतदाता लोकसभा में भी वोट देंगे। अच्छा होता कि एक जिम्मेदार राजनीतिज्ञ की तरह राहुल गांधी भी गुजरात में कांग्रेस के पक्ष में प्रचार करते। राहुल गांधी के रवैये ने भी गुजरात में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को निराश किया है। जब सेनापति ही पलायन कर गया, तब सैनिक क्या लड़ाई लगेंगे?
केजरीवाल को श्रेय:
गुजरात में भाजपा की रिकॉर्ड जीत और कांग्रेस की लुटिया डुबोने का श्रेय आम आदमी पार्टी और उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल को जाता है। केजरीवाल ने पूरे दम खंभ से चुनाव लड़ा। केजरीवाल के उम्मीदवार खुद तो चुनाव नहीं जीत सके, लेकिन उन्होंने कांग्रेस के परंपरागत मुस्लिम वोटों को प्राप्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस के वोटों का विभाजन होते ही भाजपा उम्मीदवारों की जीत आसान हो गई। इसमें कोई दो राय नहीं कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण, जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति जैसे निर्णयों से भाजपा के वोटों में इजाफा हुआ है। अब भाजपा के वोट पक्के हो रहे हैं और कांग्रेस के वोटों में क्षेत्रीय दल सेंधमारी कर रहे हैं। गुजरात में भाजपा की जीत इसलिए भी मायने रखती है कि पिछले 23 वर्षों से भाजपा का ही शासन है। गुजरात के लोगों ने लगातार 7वीं बार भाजपा की सरकार बनवाई है। प्रचार के दौरान कुछ लोग पीएम मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मेहनत का मजाक उड़ा रहे थे। ऐसे लोगों का कहना था कि मोदी शाह को गली गली घूमना पड़ रहा है। परिणाम के बाद अब ऐसे लोगों की बोलती बंद हो गई है। सवाल उठता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में ात दिन प्रचार करने में क्या हर्ज है?
हिमाचल में कांग्रेस सरकार के आसार:
हिमाचल प्रदेश की 68 सीटों में से कांग्रेस को 40 से ज्यादा सीटों पर जीत मिल गई है। जबकि भाजपा को 25 सीटों पर जीत मिली है। यहां तीन निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनाव जीत रहे हैं। हालांकि हिमाचल में कांग्रेस की सरकार बनने का रास्ता साफ है, लेकिन फिर भी कांग्रेस को तोड़ फोड़ का डर लग रहा है। यही वजह है कि नवनिर्वाचित विधायकों को मोहाली के एक रिसोर्ट में एकत्रित करने की योजना बनाई जा रही है। इसके लिए हिमाचल के पर्यवेक्षक और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राजीव शुक्ला आदि सक्रिय हो गए हैं। कांग्रेस नहीं चाहती की जिस तरह गोवा में बहुमत के बाद भी कांग्रेस की सरकार नहीं बनी, इसी तरह हिमाचल में भी कोई अनहोनी न हो। हिमाचल में टक्कर को देखते हुए भाजपा ने निर्दलीय विधायकों को एकत्रित करने का काम शुरू कर दिया है। भाजपा की नजर कांग्रेस के निर्वाचित विधायकों पर भी लगी हुई है।
S.P.MITTAL BLOGGER