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स्पेशल कवरेज: औरंगाबाद लोकसभा सीट का चुनावी समीकरण और इम्तियाज़ जलील
लोकसभा चुनाव 2019 में ऐतिहासिक तौर पर AIMIM ने हैदराबाद से बाहर पहली बार किसी लोकसभा सीट को जीता था। एमआईएम महाराष्ट्र के प्रदेश अध्यक्ष इम्तियाज जलील (Imtiyaz Jaleel) ने शिवसेना (Shiv Sena) के प्रत्याशी को हराकर औरंगाबाद (Aurangabad) के सांसद के रूप में पहली बार शपथ ली थी।
इस औरंगाबाद लोकसभा (Loksabha) सीट में 6 विधानसभा सीटें शामिल हैं जिसमें औरंगाबाद मध्य, औरंगाबाद पश्चिम, औरंगाबाद पूर्व, गंगापुर, वैजापुर और कन्नड़ की विधानसभा सीटें शामिल है। 2019 के विधानसभा चुनाव में इन 6 सीटों में से 4 पर शिव सेना और 2 पर भाजपा का कब्ज़ा है।
अगर AIMIM की राजनीती की नजर से देखें तो मजलिस औरंगाबाद की तीन विधानसभा सीटों पर ठीक-ठाक मजबूत है। सांसद बनने से पहले औरंगाबाद सेंट्रल विधानसभा सीट से ही 2014 में इम्तियाज जलील विधायक भी रह चुके हैं।
- इस बार 2019 के विधानसभा चुनाव में औरंगाबाद सेंट्रल (Aurangabad Central) से AIMIM के नसीरुद्दीन सिद्दीकी (NASEERUDDIN SIDDIOQUI) 35% वोट के साथ दूसरे नंबर पर रहे हैं।
- वहीं औरंगाबाद पूर्व (Aurangabad East) विधानसभा से डॉ अब्दुल गफ्फार (DR. ABDUL GAFFAR QUADRI) 41% वोटों के साथ उप विजेता रहे थे।
- इसके साथ ही औरंगाबाद पश्चिम – आरक्षित (Aurangabad West – SC) सीट पर AIMIM के प्रत्याशी अरुण विठ्ठल राव (ARUN VITTHLRAO BORDE) 39336 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे।
अगर इस सीट पर मुस्लिम राजनीती की बात करें तो औरंगाबाद लोकसभा से इम्तियाज जलील से पहले एक बार 1980 में कांग्रेस (Congress) के काज़ी सलीम (Qazi Saleem) भी सांसद चुने जा चुके हैं।
औरंगाबाद में AIMIM की ताकत
- औरंगाबाद मध्य एक ऐसी विधानसभा सीट है जहां मुस्लिम और दलित समीकरण चुनाव में जीत की गारंटी होती है। इस सीट पर 38.2% मुस्लिम मतदाता (Muslim Voter) के साथ 19 फीसदी दलित मतदाता चुनावी राजनीती में अहम भूमिका निभाता है। इस सीट से 2014 विधानसभा चुनाव में AIMIM के मौजूदा सांसद इम्तियाज़ जलील विधायक चुने जा चुके हैं। मौजूदा समय में इस सीट से शिव सेना के प्रदीप जैसवाल (PRADEEP JAISWAL) विधायक हैं।
- औरंगाबाद पूर्व भी औरंगाबाद मध्य की तरह ही मुस्लिम दलित चुनावी समीकरण वाली एक विधानसभा सीट है। यहां पर 37% मुस्लिम मतदाता के साथ 17% दलित मतदाता भी चुनावी गणित में अहम भूमिका निभाता है। AIMIM के डॉ अब्दुल गफ्फार क़ादरी पिछले दो चुनाव में बहुत कम मार्जिन से भाजपा प्रत्याशी अतुल मोरेश्वर सावे (ATUL MORESHWAR SAVE) से चुनाव हार रहे हैं। आगामी समय में एक अच्छा चुनावी समीकरण इस सीट से भी मुस्लिम विधायक चुने जाने का सबब बन सकता है।
- औरंगाबाद पश्चिम दलित समुदाय के लिए विधानसभा में आरक्षित सीट है। इस सीट पर 24% दलित वोट सबसे निर्णायक भूमिका में है। वहीं मुस्लिम मतदाता की 17.2% आबादी भी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाती है। 2019 के विधानसभा चुनाव में AIMIM के प्रत्याशी अरुण विठ्ठल राव 39336 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे। 2009 से ही शिव सेना के संजय शिरसाट (SANJAY SHIRSAT) यहां से लगातार तीन बार से विधायक हैं। इस सीट पर साल 1967 से 1985 तक मुस्लिम विधायक कांग्रेस की तरफ से चुनाव जीतते रहे हैं।
औरंगाबाद सीट का जातीय समीकरण
अगर इस सीट की जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर तकरीबन 22 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में है। वही 16% दलित मतदाता भी चुनावी मैदान में अहम रहते हैं। इसके अलावा एक अहम कड़ी बौद्ध मतदाताओं की भी है जो इस सीट पर 8.3% परसेंट है।
वैसे तो इस सीट को शिवसेना की पारंपरिक सीट कहा जाता है और 1999 से यहां पर एकतरफा तौर पर शिवसेना के चंद्रकांत भाऊराव खैरे चुनाव जीतते आ रहे हैं। खैरे शिव सेना संसदीय दल के नेता भी रह चुके हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में यहाँ का चुनाव तीन तरफा होने की वजह से वह चुनाव हार गए थे।
अगर यहां इस सीट के जातीय समीकरण को जरा और खोल कर देखा जाए तो यहां पर चार लाख से ज्यादा मुस्लिम मतदाता है जो किसी भी प्रत्याशी के जीत हार में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इस सीट पर 2019 में लगभग 12 लाख लोगों ने वोट दिया था। इस सीट पर औसत मतदान लगभग 63 फीसदी होता है।
अगर 63% की औसत से भी देखें तो 4 लाख में से तकरीबन ढाई लाख मुस्लिम मतदाता चुनावी मतदान में भाग लेते हैं तो भी इम्तियाज़ जलील केवल मुस्लिम वोट से चुनाव नहीं जीत पाएंगे। अगर मुस्लिम एकतरफा तौर पर भी वोट करें तो भी उनके जीतने के चांस नहीं होंगे।
कुल मिलाकर बात यह है कि अगर इस सीट पर इम्तियाज जलील को दुबारा सांसदी का चुनाव जीतना है तो मुस्लिम मतदाताओं के साथ उन्हें किसी न किसी दूसरे समुदाय का भी व्यापक सतह पर वोट चाहिए होगा। अगर 2019 के आंकड़ों को थोड़ा गहराई से देखेंगे तो आपको समझ में आएगा कि उनको मिलने वाले 388784 वोट में ठीक-तक गिनती बौद्ध और दलित समुदाय के लोगों की भी थी।
लोकसभा चुनाव 2019 में औरंगाबाद सीट के समीकरण
इस सीट पर विधानसभा के हिसाब से अगर पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजे को देखेंगे तो आपको साफ तौर पर समझ में आएगा कि इम्तियाज जलील को सबसे ज्यादा वोट औरंगाबाद सेंट्रल (99450) और औरंगाबाद ईस्ट (92347) की सीट पर मिला था। इन सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक और मजलिस बेहद मजबूत स्थिति में है।
इसके अलावा औरंगाबाद पश्चिम (आरक्षित) सीट से भी उन्हें 71239 वोट मिला था। वहीं उनका सबसे खराब प्रदर्शन कन्नड़ (34263) और वैजापुर (35462) विधानसभा सीट पर था। वही गंगापुर (56023) विधानसभा में भी उन्होंने अच्छा प्रदर्शन करते हुए शिवसेना के प्रत्याशी के लगभग बराबर ही वोट हासिल किया था।
2019 के चुनाव नतीजे को थोड़ा और गहराई से देखेंगे तो आपको समझ में आएगा कि AIMIM इन छह विधानसभा सीटों में से दो विधानसभा सेगमेंट औरंगाबाद मध्य और औरंगाबाद पूर्व में आगे थी। वहीं निर्दलीय उम्मीदवार हर्षवर्धन दादा गंगापुर विधानसभा में आगे थे। वहीं शिवसेना तीन विधानसभा कन्नड़ (Kannad), औरंगाबाद पश्चिम (Aurangabad West) और वैजापुर (Vaijapur) में आगे रही थी।
इम्तियाज़ जलील की जीत की वजह
अगर गहराई से इस लोकसभा सीट के 2019 के नतीजे का अध्ययन किया जाए तो आपको समझ में आएगा कि इस सीट पर तीन तरफा चुनावी लड़ाई की वजह से इम्तियाज जलील बेहद कम मार्जिन 4,492 वोट से चुनाव जीते थे।
इससे पहले वाले 2014 के चुनाव में शिवसेना प्रत्याशी को एकतरफ़ा तौर पर 5 लाख से ज्यादा वोट मिला था। वही 2019 में शिवसेना प्रत्याशी चंद्रकांत खैरे जो भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रहे थे उनको 383759 वोट मिले थे वहीं इम्तियाज जलील ने 388784 वोटो के साथ इस सीट पर जीत दर्ज की थी।
अब इसमें अहम कड़ी यह है कि बागी उम्मीदवार हर्षवर्धन दादा (HARSHWARDHANDADA) ने इस चुनाव में 283237 वोट हासिल करके शिवसेना प्रत्याशी को हराने का काम किया था। वहीं एनसीपी (NCP) के साथ गठबंधन के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी को केवल 91688 वोट प्राप्त हुए थे।
इस चीज को अगर आपको ध्यान से समझना हो तो आप ऐसे समझ सकते हैं कि जब 2014 में शिवसेना के चंद्रकांत खैरे चुनाव जीते थे तब यहां से उनको 520559 (53%) वोट मिले थे जबकि दूसरे नंबर पर रहने वाले कांग्रेस के सुरेश पाटिल को केवल 358812 वोट मिले थे। इस सीट पर जीत का अंतर 1,62,000 वोटों का था जबकि 2019 के चुनाव में तीन तरफ़ा लड़ाई होने की वजह से AIMIM की जीत थोड़ी आसान हो गई थी।
लोकसभा 2024 में क्या हैं समीकरण ?
अगर 2019 के समीकरणों को 2024 के चुनाव में फिट करके देखें तो आपको समझ में आएगा कि 2024 का लोकसभा चुनाव भी इस सीट पर कई एंगल के साथ लड़ा जायेगा। महाराष्ट्र की राजनीति में जहां शिवसेना दो हिस्सों में बंट चुकी है वहीं एनसीपी का भी दोफाड़ हो चुका है।
इसलिए शिवसेना और कांग्रेस जो यहां पर अपने प्रत्याशी उतारते हैं उनके वोटो में बंटवारे की पूरी उम्मीद है। अगर इसमें 63 फ़ीसदी के मतदान के हिसाब से भी इम्तियाज जलील को मुसलमानों का एकतरफ़ा तौर पर वोट मिले और साथ में दलित व् बौद्ध समुदाय की तरफ से उन्हें समर्थन मिले तो वो आसानी से चुनाव जीत जाएंगे।
शिवसेना का गढ़ मानी जाती है ये सीट
राजनीतिक हलकों में इस लोकसभा सीट के बारे में यह बात मशहूर है कि ये शिवसेना का गढ़ है और बहुत लंबे समय से यहां पर एकतरफ़ा तौर पर शिवसेना का सांसद ही चुना जाता रहा है। पिछले चुनाव को छोड़कर 1999 से 2014 तक चार बार लगातार चंद्रकांत खैरे यहां से सांसद चुने गए हैं। उससे पहले भी मोरेश्वर सेव दो बार सांसद और प्रदीप जायसवाल एक बार शिवसेना की तरफ से सांसद रहे हैं।
इस बार शिवसेना के दोफाड़ होने की वजह से शिव सेना के वोटों में बंटवारा होना तय है। वहीं कांग्रेस को भी एनसीपी के बंट जाने का नुक्सान जरूर उठाना पड़ेगा। ऐसे में अगर चुनाव कई एंगल का हुआ तो बहुत हद तक चांस है कि इम्तियाज़ जलील दुबारा सांसद चुने जाएँ।
साफ़ सुथरी और सर्व मान्य छवि
महाराष्ट्र की राजनीति में इम्तियाज़ जलील साफ़ सुथरी छवि के नेता माने जाते है। उनकी मुस्लिम जनता के साथ ही बाकि समुदायों में भी अच्छी पकड़ है। अपने लोकसभा क्षेत्र के जन प्रोग्रामों में उनकी लगभग 100% भागीदारी उनकी छवि को सर्व मान्य बनाती है।
लोक कल्याण के कामों के लिए सरकार से लड़ना और प्रशासन पर दबाव बनाने की उनकी छवि औरंगाबाद में काफी प्रसिद्ध है। पिछले दिनों औरंगाबाद में सम्प्रदायक दंगों की स्थिति उत्पन होने पर उनके द्वारा रात में मंदिर की रखवाली करना अभी तक लोगों के दिमाग में ताजा है।
कौन बनेगा 2024 में सांसद
अब आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में इस सीट पर चुनावी नतीजे क्या रहते हैं ये तो आने वाला समय ही बतायेगा। क्या इम्तियाज़ जलील दुबारा से इस सीट को जीत औरंगाबाद के सांसद बनेंगे अथवा दुबारा से इस सीट पर शिवसेना का कब्ज़ा होगा वो कुछ महीनों बाद लोकसभा चुनाव के नतीजों से तय हो जायेगा।