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प्रचारकों की कथनी और करनी का अंतर, प्रचारक पत्रकारिता की खबर का एक नमूना
घुस कर मारने, छप्पन ईंची सीना के दावे, लाल आंख दिखाने की जरूरत और लव लेटर लिखने का मजाक उड़ाने वाली सरकार पुलवामा मामले पर डेढ़ साल बाद 'कार्रवाई' करने की सोच रही है। 'कार्रवाई' यह कि महीने के अंत तक गृहमंत्रालय दस्तावेज तैयार कर लेगा और फिर अदालत से अनुमति मांगी जाएगी कि पाकिस्तान को न्यायिक आग्रह भेजा जाए और यह पुलवामा पर पाकिस्तान से 'सहयोग' मांगने वाला अपनी तरह का पहला न्यायिक आग्रह होगा। महंगे पेगासस सॉफ्टवेयर से आम भारतीय नागरिकों की जासूसी करने वाली भारत सरकार पाकिस्तान से उसके नागरिकों (या आतंकियों) के संचार विवरण मांग रही है। ऐसे, जैसे वहां भी यहां की तरह लोकतंत्र कुछ ज्यादा ही हो।
कहने की जरूरत नहीं है कि यह सब बादलों की आड़ में पाकिस्तान पर किए गए हवाई हमले में 300 से ज्यादा आतंकवादी मार देने की ऐतिहासिक कार्रवाई के बाद भी किया जा रहा है। और इस खबर से लग रहा है कि साजिश करने वाले सभी जिन्दा हैं जो मारे गए उनके बारे में राम (या अल्लाह जानें)। अपने जो मर गए और बच गए वह सब राम भरोसे। खास बात यह है कि एनआईए ने इस मामले में भी 13,500 पेज की चार्जशीट बनाई है। खबर में यह भी लिखा है कि भारत पाकिस्तान को 2016 में भी न्यायिक आग्रह भेज चुका है पर उसका कोई फायदा नहीं हुआ है। फिर भी यह खबर है और सरकारी विज्ञप्ति नहीं है। सूत्रों के हवाले से एक्सक्लूसिव बाईलाइन वाली खबर है। आप चाहें तो इसे खबर मानिए। नहीं मानकर भी क्या कर सकते हैं।
हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर है। मैं इस खबर के खास अंश को हिन्दी में यह बताने के लिए पोस्ट कर रहा हूं कि यह आज की 'खबर' है। वैसे प्रचारक पत्रकारिता की खबर का एक नमूना है यह। आप खुश होइए और रहिए कि सरकार काम कर रही है। घुस कर नहीं तो क्या? लव लेटर तो नहीं ही लिख रही है। अंग्रेजी में प्रकाशित इस खबर के शीर्षक का अनुवाद होगा, पुलवामा के सात साजिशकर्ताओं के बारे में सूचना मांगने के लिए तैयार है भारत। जनता की मांग पर बलात्कार के आरोपियों को तो मुठभेड़ में मार दिया जाता है, आरोप लगाने वाली के मुकर जाने पर मामला उठा भी लिया जाता है पर भारतीय सैनिकों की जान लेने वालों के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर डेढ़ साल बाद उनका विवरण (उनके आकाओं से) मांगा जा रहा है, लव लेटर लिखा जा रहा है और उसकी सूचना सूत्रों से देने की पत्रकारिता चल रही है।
बचपन में बताया जाता था, काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । पल में प्रलय होएगी,बहुरि करेगा कब ॥ और हम तभी कहते थे, आज करे सो कल कर, कल करे सो परसों, जल्दी-जल्दी क्या लगी है अभी तो जीना है बरसों। इस सरकार के लिए इसमें यथोचित सुधार कर लीजिए, अभी तो राज करना है बरसों। जय हो। चीन ने जो किया उसके बारे में बात बाद में होगी।