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राजनीति में बदलते जनसेवक के स्वरूप !

Special Coverage News
2 April 2019 5:07 AM GMT
राजनीति में बदलते जनसेवक के स्वरूप !
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राजनीति सेवा की जगह व्यवसाय का रूप धारण करने लगी और राजनेता जनसेवक की जगह जमींदार की तरह साहब बन गये।फलस्वरूप राजनीति में जनता का दिल जीतने के लिए सेवा ईमानदारी संघषशील जुझारू की जगह फिल्मी सितारों एवं अपराधिक प्रवृत्तियों का आना शुरू हो गया।

लोकतंत्र में राजनीति को व्यवसाय नहीं बल्कि सेवा होती है जिसमें कमाई नहीं बल्कि जनता जनार्दन की सेवा की जाती है।आजादी के बाद से राजनीति को जनता की सेवा करने का एक सशक्त माध्यम माना जाता है और इसी भावना से लोग राजनीति में आते थे।आजादी के नायक सत्य अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी ने इसीलिए वकालत के जरिए धन कमाने की जगह राजनीति को अपने जीवन का मुख्य ध्येय बनाकर एक धोती और एक लगोटी धारण करने का संकल्प लेकर जन आंदोलन की शुरुआत की थी।आजादी के बाद चाहे जवाहरलाल नेहरु रहे हो चाहे दीनदयाल उपाध्याय सरदार वल्लभ भाई पटेल लालबहादुर शास्त्री, लोकनायक जयप्रकाश नारायण नानाजी देशमुख या डॉ राममनोहर लोहिया आदि रहे हो सभी ने जनता जनार्दन की सेवा को राजनीति का मुख्य लक्ष्य माना।


लोकतंत्र में राजनीति धनबल के आधार पर नहीं बल्कि जनबल के आधार पर होती है और जो जनता की सेवा करता है वह धनवान हो ही नहीं सकता है।एक समय था जबकि लोग जनता के साथ रहकर उनके दुखदर्द में भागीदार बनते थे और जनता का दिल जीतकर उनका समर्थन एवं वोट लेकर बिना धन खर्च किये सासंद विधायक के रूप में उनके प्रतिनिधि बन जाते थे।वह अपना सारा जीवन जनता को समर्पित कर देते थे और जनता उनकी सेवा से खुश होकर उनके खाने कपड़े रहने की खुद व्यवस्था अपने पैसे से करती थी और उनकी एक आवाज पर मरने मिटने पर आमादा हो जाती थी। चुनाव आने पर जनता खुद साथ जाकर टिकट खरीदकर उन्हें इलेक्शन लड़ाकर उन्हें अपना प्रतिनिधि या अगुवा बनाकर लोकसभा या विधानसभा भेज देती थी।


यही कारण था कि उस समय आज जैसा महंगा चुनाव एवं चुनाव प्रचार नहीं होता था बल्कि दस बीस हजार एवं दो चार इक्का तांगा साइकिल एवं एक दो जीप से चुनाव लड़ लिया जाता था।उस समय राजनीति में लोग कहते थे कि खूब ईमानदारी के साथ जनता की सेवा करो और जनता सेवा से खुश होकर अपना कीमती वोट देकर विधायक सासंद बना देगी।यही कारण था कि सत्तर के दशक तक राजनीति में स्वच्छ एवं ईमानदार छबि वाले गरीब लोगों का राजनीति में बोलबाला था और लोग विधायक सासंद बनने के बावजूद सरकारी बस या रेल से यात्रा करते थे क्योंकि कीमती लग्जरी वाहन खरीदने की उनकी बुतात नहीं होती थी।यही कारण था कि आजादी के बाद सासंद विधायक को जनता के मध्य जाकर उनसे मिलने के लिए सरकारी निःशुल्क वाहन उपलब्ध कराने की व्यवस्था हमारे संविधान में की गई थी।समय के साथ साथ राजनीति में बदलाव आया और राजनीति में सेवा भाव गायब होने लगा और बाहुबलियों का प्रभुत्व बढ़ने लगा।लोग सेवा ईमानदारी की जगह धनबल को महत्व देने लगे और राजनीति जनसेवा से दूर होकर लोकतांत्रिक मर्यादाओं को तार तार करके रातों रात धनवान बनने का साधन बनने लगी।


इतना ही नहीं बल्कि राजनीति सेवा की जगह व्यवसाय का रूप धारण करने लगी और राजनेता जनसेवक की जगह जमींदार की तरह साहब बन गये।फलस्वरूप राजनीति में जनता का दिल जीतने के लिए सेवा ईमानदारी संघषशील जुझारू की जगह फिल्मी सितारों एवं अपराधिक प्रवृत्तियों का आना शुरू हो गया।जो लोग असली जनसेवक ईमानदार जनसंघर्ष करने वाले थे वह राजनीति से गायब होने लगे और चुनाव जीतने के तरह तरह के हथकंडे अपनाये जाने लगे।राजनीति में चुनाव जीतने के लिए जातिवाद धर्म सम्प्रदायवाद को बढ़ावा देकर समाज को विखंडित कर झूठे वायदों का सहारा लिया जाने लगा है तथा उद्योगपतियों एवं फिल्मी हस्तियों के साथ रंगमंच से जुड़े लोगों का राजनीति में प्रवेश हो गया है। इस समय चुनाव का दौर चल रहा है और विभिन्न क्षेत्रों के नये नये चेहरे जनसेवक बनकर चुनावी मैदान में आने लगे।


इनमे राजनेताओं के साथ साथ जनता को नाच गाकर खुश करके धन कमाने वाले कलाकार भी शामिल हैं।राजनीति में फिल्मी कलाकारों को पहले इतना महत्व नहीं मिलता था जितना आज के दौर में मिलने लगा है।अबतक शत्रुघ्न सिन्हा, मुजफ्फर अली, हेमामालिनी,रजनीकांत, जयललिता जयप्रदा, मनोज तिवारी जैसी फिल्मी हस्तियां ही राजनीति में सक्रिय थी किन्तु इस बार तो चुनावी वैतरणी पार करने के लिए सपना चौधरी, निरहुआ जैसे लोगों को शामिल करके जनता का सेवक बनाने की कोशिश की जा रही है।

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