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यशवंत सिन्हा को अपना उम्मीदवार घोषित कर विपक्ष ने कर दिया सरेंडर
हालांकि राष्ट्रपति पद के लिए यशवंत सिन्हा को खड़ा करके विपक्ष यह सोच रहा है कि उसने भाजपा को चुनौती देने की कोशिश की है जबकि सच्चाई यह है कि विपक्ष पूरी तरह भाजपा के सामने नतमस्तक हो गया है। यशवंत सिन्हा खुद भी पक्के भाजपाई रहे हैं और उनका पुत्र मोदी सरकार में केंद्र में मंत्री रहा है तो भाजपा से आयात करके विपक्ष ने अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित कर दिया तो इसे क्या कहा जाए कि विपक्ष की इतनी बड़ी बड़ी कांग्रेस जैसी पार्टियों या अन्य दलों के पास कोई ऐसी शख्सियत नहीं थी जिसे वह राष्ट्रपति पद के लायक समझती हों। चुनाव होता है और उसमें हार जीत होती है इस बार भी होगी और अक्सर केंद्र में सत्तासीन पार्टी के उम्मीदवार ही विजयी होते रहे हैं, इस बार भी कोई तीर नहीं लगेगा और भाजपा की उम्मीदवार राष्ट्रपति बन जाएंगी।
विपक्ष के इस कदम ने उन लोगों को मायूस किया है जो भाजपा विरोधी राजनीति करते हैं या उसका समर्थन करते हैं। उन लोगों को लगने लगा है कि क्या अब देश भाजपामय हो चुका है और विपक्षी दलों के नाम पर कुछ लोग टाइम पास कर रहे हैं। ऐसी बातें सोचने वाले लोगों की बात में दम भी है क्योंकि विपक्ष यदि भाजपा के सधाए घोड़े पर सवारी करने की कोशिश करेगा तो इसका संदेश यही जाएगा कि विपक्ष के पास अब अपनी सवारी नहीं है। इससे पहले भी विपक्षी पार्टियों के विधायकों का भाजपा में जाकर सरकारें बनवाना भी विपक्ष की चिंता रहती थी लेकिन इस बार तो खुद विपक्ष ने सरेंडर किया है। राजनीतिक माहिरीन का मानना है कि कम से कम कांग्रेस को अपना कोई पुराना कांग्रेसी ही मैदान में लाना चाहिए था जिससे यह संदेश बना रहता कि कांग्रेस हर मौके पर भाजपा को टक्कर देने की कोशिश करती रही है।
वरिष्ठ पत्रकार सलीम अख्तर सिद्दीकी लिखते हैं कि मौजूदा सरकार को विपक्ष काम नहीं करने दे रहा। हर अच्छे काम का विरोध करता है। सरकार का हर मास्टर स्ट्रोक विपक्ष के लिए जनता विरोधी होता है। महंगाई किसके लिए? जनता के हित के लिए। बेरोज़गारी से किसका भला हो रहा है? जनता का ही ना। पेट्रोल 100 का क्यों खरीद रहे हैं? जिससे देश का भला हो। हज़ार का सिलेंडर किसके लिए? जनता की भलाई के लिए। अब विपक्ष अग्निवीरो के खिलाफ उतर आया है। हर काम में टोका-टाकी, धरना प्रदर्शन!! ये आदर्श विपक्ष नहीं है। आदर्श विपक्ष वो था, जो आज सत्ता पक्ष है। कभी सरकार के काम की आलोचना नहीं की। महंगाई पर कभी सरकार को नहीं घेरा। भ्र्ष्टाचार पर भी विपक्ष चुप रहा। गैस के दाम बढ़ने पर कभी सिलेंडर सर पर रखकर सड़कों पर प्रदर्शन नहीं किया। पेट्रोल की कीमतें बढ़ने पर उसे देशहित में बताया। कभी संसद में हंगामा नहीं किया। संसद का सत्र शांतिपूर्ण तरीके से चलवाया। संसद का एक मिनट भी बर्बाद नहीं होने दिया। कभी संसद से वाकआउट नहीं किया। एक विपक्ष वो था, एक विपक्ष ये है। अगर विपक्ष सरकार के काम में अड़ंगे ने डाले तो देश की 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी जल्दी बन जाए। डॉलर धरती में समा जाए। पेट्रोल 40 का बिकने लगे तो सिलेंडर 400 का हो जाए। लेकिन विपक्ष काम करने दे तभी तो कुछ हो। विपक्ष भी देखिये, पिद्दी न पिद्दी का शोरबा! कितना उछलता है। हमें वही पिछला वाला विपक्ष चाहिए, शांत, सौम्य और सरकार को काम करने देने वाला।
सरकारें तो चाहती हैं कि विपक्ष शांत बैठ जाए या दम तोड़ दे लेकिन विपक्ष खुद अपनी साख खोना शुरू कर दे तो सत्ता पक्ष कुछ नहीं कह सकते। विपक्ष द्वारा यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित करने के कदम का समर्थन करने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इससे भाजपा और उसके सहयोगी दलों में टूटफूट होने की संभावना बनेगी। एनडीए में घुसपैठ करने का मौका मिलेगा और यशवंत सिन्हा अपनी पुरानी भाजपाई और संघ की पृष्ठभूमि का फायदा उठाकर समर्थन हासिल कर लेंगे और जीतने की उम्मीद बन सकती है। ठीक है विपक्ष समर्थित यह तर्क दे रहे हैं लेकिन ऐसा होने की उम्मीद बहुत कम है क्योंकि अमितशाह के होते और महाराष्ट्र में पिछले दो दिनों में जो कुछ हुआ उससे ज़ाहिर हो रहा है कि भाजपा कहीं भी कोई ढिलाई छोड़ना नहीं चाहती। भाजपा ने आदिवासी महिला को उम्मीदवार बनाकर एक बड़ा झटका विपक्ष पहले ही दे दिया है। लेकिन कुल मिलाकर विपक्ष को इस कदम का नुक़सान होने वाला है लेकिन विपक्ष के नीतिनिर्धारकों को और योजना बनाने वालों को शायद इस बात का एहसास हो।