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मस्जिद का धार्मिक चरित्र छह महीने में अदालत में तय होगा, अवैध कॉलोनी के मामले में यथास्थिति
आज के अखबारों में ज्ञानव्यापी मस्जिद से संबंधित इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले की खबर है और यह 1991 के उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम के बावजूद है। खबरों के अनुसार अदालत ने माना कि 1991 से लंबित सिविल वाद (अब या अब भी) सुनवाई योग्य है। यही नहीं, अदालत ने छह माह में सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया है। कहने की जरूरत नहीं है कि इस बीच लोकसभा चुनाव भी होने हैं। अमर उजाला में इस खबर का शीर्षक है, स्वामित्व व सर्वे से जुड़ी मुस्लिम पक्ष की पांचों याचिकाएं खारिज। दूसरी ओर, आज ही अमर उजाला में ही इसी खबर के नीचे छपी खबर में बताया गया है, राष्ट्रीय राजधानी की अवैध कॉलोनियों में अब तीन साल तक नहीं होगी तोड़फोड़। यह विशेष प्रावधान विधेयक के जरिये हुआ है। मोटे तौर पर इसका मतलब हुआ ज्ञानव्यापी मस्जिद का धार्मिक चरित्र तो छह महीने में अदालत में तय होगा पर अवैध कॉलोनी के मामले में यथास्थिति रहेगी। एक व्यवस्था अदालती है और दूसरी सरकारी। इसके राजनीतिक मायने तो हैं ही, उसकी चर्चा नहीं है।
आज के अखबारों में 141 सांसद निलंबित किये जाने खबर उतनी ही प्राथमिकता से है जितनी कल थी हालांकि मीडिया के लिए आज एक और मुद्दा है मिमिक्री। आइये देखें कैसे। आप जानते हैं कि संसद के दोनों सदनों से 141 सदस्य निलंबित किये जा चुके हैं। यह एक गढ़े हुए मामले में महुआ मोइत्रा की सदस्यता खत्म करने और संसद की सुरक्षा भेदकर लोकसभा में, "तानाशाही नहीं चलेगी" का नारा लगने के बाद हुआ है। अखबारों में निलंबन की खबर तो छप रही है पर उसके कारण, उसके पीछे की मनमानी या तानाशाही की आलोचना आदि की चर्चा नहीं के बराबर है। कल मैंने लिखा था कि यह सब नरेन्द्र मोदी को मजबूत दिखाने की कोशिश में लगता है। इसके साथ उनकी गारंटी का प्रचार तो है ही। कहने की जरूरत नहीं है कि गारंटी का प्रचार पिछले वायदों और घोषणाओं की चर्चा के बिना होता है। उदाहरण के लिए नरेन्द्र मोदी ने हर साल दो करोड़ नौकरियों का वादा किया था पर नौकरियां तो छोड़िये, सरकार नौकरी के लिए उपाय या प्रयास करती भी नहीं दिखती।
यही नहीं, जो कारोबार (और विपक्षी राजनीति) चल रही है उसे भी अस्तव्यस्त करने के प्रयास होते रहे हैं। नोटबंदी और जीएसटी के अलावा कितने ही मामले वसूली के लिये या भिन्न कारणों से लोगों को नियंत्रित करने के नजर आये हैं और इसमें संतोषजनक कार्रवाई नहीं दिखी है। ताजा मामला न्यूजक्लिक का है। आज छपी एक खबर के अनुसार, न्यूजक्लिक ने एक बयान में कहा है कि सरकारी एजेंसियां कंपनी को अपने बैंक खाते का इस्तेमाल नहीं करने दे रही हैं। इस कारण कर्मचारियों को वेतन नहीं दिया जा सकता है। कंपनी के दो अधिकारी पहले से जेल में हैं और मामले की जांच चल रही है। कहने की जरूरत नहीं है कि अगर किसी संस्थान को जांच चलने तक काम नहीं करने दिया और नियमानुसार प्राप्त निवेश की ही जांच महीनों, वर्षों चले, बिना सबूत जेल में रहने की स्थितियां हों तो कोई व्यवसाय क्यों करेगा? व्यवसाय नहीं चले तो कोई वेतन कैसे दे। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों कांग्रेस सांसद के ठिकानों से 350 करोड़ रुपये बरामद होने की खबर खूब छपी।
इसे लेकर तरह-तरह के सवाल उठे। कांग्रेस से भी सवाल किये गये और लोगों से कहा गया कि कांग्रेस से इस बारे में क्यों नहीं पूछते। पर सच यह है कि संबंधित सांसद धीरज साहू को गिरफ्तार किये जाने की कोई खबर नहीं दिखी। मतलब जहां तथाकथित सबूत है वहां गिरफ्तारी नहीं और जहां गिरफ्तारी है वहां सबूत नहीं। इससे तो नहीं लगता है कि मामला सीधा सरल है और कारोबारियों की नजर से देखें तो डरने वाली बात जरूर है। ऐसे में अगर बहुत सारे लोग डर के मारे कारोबार नहीं कर रहे हों, बढ़ा नहीं रहे हों तो नौकरियां कैसे बढ़ेंगी? कहना आसान है कि पकौड़े बेचना रोजगार है। पर पकौड़ा बेचना भी आसान नहीं है। बाजार यूनियन से लेकर पुलिस, नेता और हिजड़ों तक को खुश रखना होता है। हर बाजार में एकाध गरीब और सांड़ तो होते ही हैं। यह स्थिति आज नहीं बनी है, वर्षों से है। पर अभी भी भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई की गारंटी ही दी जा रही है और कार्रवाई चुन कर होती है यह सबको दिख रहा है तब भी। मीडिया उसी गारंटी का प्रचार कर रहा है सो अलग।
संख्या के लिहाज से संसद के अब तक के सबसे बड़े निलंबन की खबर के शीर्षक से नहीं लग रहा है कि यह सरकार की तानाशाही या मनमानी है। इंडियन एक्सप्रेस ने आज इस खबर को सरकारी नजरिये से प्रस्तुत किया है और सरकार के हवाले से फ्लैग शीर्षक में कहा है, विधानसभा चुनाव में हार से कुंठित विपक्ष ने सदन को अपमानित किया। आपको याद होगा कि विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद शीतकालीन सत्र की शुरुआत से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्ष को क्या नसीहत दी थी। यह अलग बात है कि किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि सांसदों ने हार की कुंठा संसद में निकाल ही दी तो सरकार ऐसी मनमानी पर उतर आयेगी और तानाशाही नहीं चलेगी का नारा सुनने के बाद खुलकर तनाशाही करेगी और इंडियन एक्सप्रेस इस तरह समर्थन करेगा। प्रधानमंत्री ने तब कहा था, 'हार का गुस्सा संसद में न निकालें'। लेकिन सदस्यों ने संसद की सुरक्षा में सेंध पर गृहमंत्री से बयान मांगा तो उसे हार की कुंठा के रूप में देखा और दिखाया जा रहा है।
1. इंडियन एक्सप्रेस
विपक्षी दीर्घा लगभग खाली हो गईं : 49 और सांसद निलंबित किये गये कुल संख्या अब 141 है। इसके साथ दो खबरें हैं। एक का शीर्षक है, खरगे ने कहा - अपराध कानून विधेयक सदन में सूचीबद्ध हैं, इसलिए सरकार ने निलंबित करो, बाहर करो, जबरन पास कराओ का तरीका अपनाया है। दूसरी खबर का शीर्षक है, टीएमसी के कल्याण बनर्जी ने उपराष्ट्रपति का मजाक बनाया, राहुल ने उन्हें रिकार्ड किया; धनखड़ ने कहा शर्मनाक। इंडियन एक्सप्रेस ने उपराष्ट्रपति की मिमिक्री को भी सबसे ज्यादा महत्व दिया है।
2. हिन्दुस्तान टाइम्स
संसद में निलंबन की आंधी : गिनती 141 तक पहुंची
3. टाइम्स ऑफ इंडिया
लोककसभा के 49 और सांसद निलंबित, विपक्ष के 141 सांसद संसद से बाहर
टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस मूल खबर के साथ मिमिक्री करते सांसद कल्याण बनर्जी की फोटो दो कॉलम में छापी है और कैप्शन में बताया है कि कैमरे की तरफ पीठ किये राहुल गांधी कल्याण बनर्जी को रिकार्ड कर रहे हैं। धनखड़ ने कहा कि यह उनकी किसान की पृष्ठभूमि और राज्यसभा अध्यक्ष के पद का अपमान है। भाजपा ने कहा है कि यह लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं का मजाक है।
4. द हिन्दू
49 और सांसदों के खिलाफ कार्रवाई निलंबन जारी
अखबार ने धनखड़ नाराज उपशीर्षक से मजाक बनाये जाने की घटना का जिक्र भर किया है।
5. द टेलीग्राफ
संसद में विपक्ष पर कठोर कार्रवाई जारी शीर्षक से दो कॉलम की खबर है
मिमिक्री की खबर सिंगल कॉलम की फोटो के साथ सिंगल कॉलम में है। शीर्षक है, धनखड़ की मिमिक्री अपमान है।
6. अमर उजाला
लोकसभा में विपक्ष के 49 और सदस्य निलंबित, सिर्फ 43 बचे। उपशीर्षक है, कांग्रेस के सर्वाधिक 39 सांसदों पर कार्रवाई, दोनों सदनों में अब तक 141 सांसद निलंबित इसके साथ तीन कॉलम में छपी फोटो का शीर्षक है, विपक्ष ने तोड़ी सीमाएं, सभापति की मिमिक्री .... धनखड़ बोले - शर्मनाक। सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री का वीडियो शेयर किया जा रहा है इसमें वे राहुल गांधी की मिमिक्री कर रहे हैं। अभी यह पता नहीं चल रहा है कि संसद में प्रधानमंत्री द्वारा साथी सांसद की मिमिक्री पर भाजपा या अमर उजाला की क्या राय है।
7. नवोदय टाइम्स
अन्य खबरों और शीर्षक के साथ एक उपशीर्षक है, "गिरावट की कोई हद नहीं : धनखड़" भी छापा है। हालांकि धनखड़ के अपने व्यवहार और आचरण को कितनी पर नीच और गिरावट कहा गया है इसका हिसाब मेरे पास नहीं है। यह पश्चिम बंगाल का राज्यपाल रहते हुए है तथा लोगों का मानना है कि तब की उनकी कार्रवाई का ईनाम है यह पद।
ऐसे में धनखड़ साहब का व्यवहार और आचरण सार्वजनिक है। फिर भी कुछ सांसदों के व्यवहार से वे आहत हैं, उसे जाहिर कर रहे हैं और अखबारों ने प्रमुखता से बताया है जबकि मिमिक्री तो प्रधानमंत्री ने भी की है। साथी सांसद की संसद भवन के अंदर की है। सरकारी कैमरों और सबके सामने की है। कार्यअवधि में की है। अब की मिमिक्री तो संसद के बाहर निलंबित सांसदों ने की है। संसद भवन से बाहर निलंबित सांसदों की मिमिक्री तो मुद्दा है पर तानाशाही नहीं चलेगी का जवाब नहीं है। दूसरी ओर, अदालत ने कहा है कि (अमर उजाला के अनुसार) उपासना स्थल अधिनियम 1991 में धार्मिक चरित्र पारिभाषित नहीं किया गया है। केवल पूजा स्थल व बदलाव को पारिभाषित किया गया है। किसी स्थान का धार्मिक चरित्र क्या है यह दोनों पक्षों के दावे-प्रतिदावे व पेश सबूतों के आधार पर सक्षम अदालत तय कर सकती है। विवादित मुद्दा तथ्य व कानून का है। एक और शीर्षक के अनुसार, कानून के तहत धार्मिक चरित्र तय करने पर रोक नहीं है। मेरा मानना है कि कानूनन यह स्थिति बाबरी मस्जिद मामले में जो हुआ, जैसे हुआ और इस कारण अगर 1991 के उपासना स्थल अधिनियम लाया गया था तो उसके बावजूद है। संयोग यह भी है कि आज ही यह खबर है कि विशेष प्रावधान विधेयक पर संसद के दोनों सदनों (विपक्षी सदस्यों के निलंबन की खबर के साथ) द्वारा मुहर लगाने के बाद अवैध कॉलोनियों में तीन साल तक तोड़फोड़ नहीं होगी।