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राजीव गांधी के जीवन की वे तीन बड़ी भूलें जो आज तक उनका पीछा नहीं छोड़ती!
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की आज पुण्यतिथि (21 मई) है. साल 1991 में आज ही के दिन तमिलनाडु में लिट्टे के आतंकियों ने उनकी हत्या कर दी थी. राजीव गांधी और उनकी शख्सियत एक खुली किताब की तरह थी. जिसे पढ़ सकने वाले पढ़ते भी थे और जिन्हें पढ़ने और समझने का शऊर नहीं होता था वे उन्हें सिर्फ और सिर्फ नेहरू/गांधी परिवाद के एक प्यादे की तरह देखकर उनकी खिल्ली उड़ाने, उन्हें अपशब्द कहने और मरने के बाद भी उनकी शहादत को सलाम करने की बजाय, बकौल खुद नरेंद्र मोदी के 2019 के चुनावी बयान-देश का सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी तक कह डालने में अपनी शान समझते रहते हैं।
उनकी शहादत के इस दुखद याद दिवस पर उन्हें मेरी भावभीनी विनम्र श्रद्धांजलि
उनकी शख्सियत के जिस खास पहलू को सबसे बेमिसाल पहलू समझता हूं, वो तो उनकी वो पारखी नज़र है जिसने सोनिया को अपने वैवाहिक जीवन सफर का हमराही बनाया और भारत की आदर्श बहू, दो बच्चों की आदर्श मां और करोड़ों भारतवासियों के दिलों को जीतने वाली भारतीय महिला के रूप में देश को सौंप कर इस दुनिया से ये पैगाम देकर रुखसत हो गए।
उनके जीवन की तीन विशिष्ट राजनीतिक भूलें भी इतिहास में दर्ज हो चुकी हैं जिन्हें इस अवसर पर याद करना भी मुझे जरूरी लगता है!
उनकी पहली राजनीतिक भूल थी शाहबानो गुजारा भत्ता मामले में सुप्रीमकोर्ट के न्यायोचित फैसले को संवैधानिक संशोधन के जरिये निष्प्रभावी करके मुस्लिम समाज के पीछे देखू कठमुल्ले वर्ग का समर्थन जिसने संकीर्ण हिंदुत्व की मुस्लिम विरोधी सांप्रदायिकता को बढ़ावा देकर आरएसएस को एक और हथियार मुहैय्या करा दिया।
दूसरी राजनीतिक भूल थी बाबरी मस्जिद में 1994 में चोरी से रखी गई रामलला की मूर्ति के दर्शन हेतु, अदालती आदेश से लगी रोक के खिलाफ, ताले खुलवाकर साम्प्रदायिक और संकीर्ण हिंदुत्ववादी आरएसएस को एक और हथियार देना।
उनकी तीसरी राजनीतिक भूल रही, श्रीलंका की अंदरूनी राजनीति में चल रही लिट्टे(तमिल )विरोधी शासकीय पक्ष के समर्थन में भारतीय सेना को श्रीलंका भेजना जिसके चलते भारत के तमिल भी उनके दुश्मन बन गए और इसी दुश्मनी ने उनकी जान ले ली।