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मोदी से नहीं डरने वाले राहुल को कांग्रेसी डरा रहे हैं!
शकील अख्तर
कांग्रेस के नेताओं के सब्र का बाँध टूटने लगा है। सत्ता से दूरी कांग्रेसियों से बर्दाश्त नहीं होती है। लेकिन सत्ता की वापसी के लिये जनता में जाने, अपनी कमियां ढूंढने के बदले वे आपस में ही एक दूसरे से लड़ने लगे हैं। देश की सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा समय सत्ता में रही पार्टी पिछले छह साल से अपनी हार पर विलाप कर रही है, एक दूसरे पर ताने मार रही है और अब तो लगता है कि उसे इसे रोने धोने में मजा आने लगा है। आदत पड़ गई है। वह इस सिलसिले को छोड़ने को तैयार नहीं दिखती।
यूपीए सरकार में मंत्री रहे नेताओं ने सार्वजनिक रूप से ट्वीट करके जो सवाल उठाए हैं उनसे अधिकांश कांग्रेसी आश्चर्यचकित है कि ये मुद्दे हैं कहां? इनका आज की तारीख में क्या औचित्य है? पिछले कुछ दिनों से फिर प्याले में तूफान उठा हुआ है! क्या यह इसलिए है कि 10 अगस्त नजदीक आ रही है? सोनिया गांधी का एक साल पूरा हो रहा है। पिछले साल 2019 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष छोड़ना पड़ा था। उन्हें लगा था कि पार्टी में वे अकेले पड़ गए। पार्टी अध्यक्ष को जो समर्थन मिलना चाहिए था उन्हें नहीं मिला। ऐसे में उत्पन्न हुई असमंजस की स्थिति में कांग्रेस ने कई प्रयोग करने की कोशिशें की।
2014 फिर 2019 की हार के कारणों की पड़ताल के लिए तो कोई कमेटी बनाई नहीं मगर नए अध्यक्ष की खोज, उस खोज की प्रक्रिया के लिए जाने कितनी औपचारिक और अनौपचारिक कमेटियां बना डालीं। आज जिस यूपीए की उपलब्धियों की बिना प्रसंग चर्चा कर रहे हैं उसे तो कभी मीडिया पर बता नहीं पाए मगर नए अध्यक्ष के लिए परिवार के बाहर का होना क्यों जरूरी है इस पर पचासों स्टोरियां मीडिया में प्लांट करवा दीं। अब दस अगस्त के बाद क्या होगा? सोनिया गांधी को हटने नहीं दिया जायेगा? अस्वस्थता की हालत में ही उन्हें कंटिन्यू करवाया जाएगा? मगर कब तक?
कांग्रेस को ढूंढना इन सवालों के जवाब चाहिए थे। मगर वे छह साल पुरानी सरकार जिसे खुद इन सबने मिलकर डुबोया है के लिए एक दूसरे पर सवाल उठा रहे हैं। कांग्रेस ऐसी नाव हो गई है कि पार उतारने की चिंता के बदले सब एक दूसरे को धकेलने में लगे हैं। इस बात से बेफिक्र कि कहीं इस चक्कर में नाव ही न डूब जाए।
आज जिस दस साल के शासन का बात कर रहे हैं उसमें और क्या किया? यही किया! दस साल सबसे बड़े मंत्री और राष्ट्रपति रहे प्रणव मुखर्जी ने क्या किया? जिस समय राहुल संघ से सवाल रहे थे उस समय प्रणव मुखर्जी नागपुर के संघ मुख्यालय में हाजरी लगा रहे थे। और कांग्रेस के कुछ नेता उनकी इस नागपुर यात्रा का समर्थन कर रहे थे। कांग्रेस के मंत्रियों ने दस साल खूब मजे किए, कभी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की साफ सुथरी इमेज की चिन्ता नहीं की लेकिन आज अचानक से मनमोहन सिंह की नई प्रतिमा गढ़ने लग गए। क्या बताएं? भाजपा को सत्ता में आए छह साल हुए हैं। कभी किसी चुनाव में पैसे की कमी पड़ी? दस साल सरकार में रहने के बाद जब कांग्रेस 2014 का चुनाव लड़ रही थी तो प्रत्याशियों से कहा जा रहा था कि पैसे नहीं है। एक प्रदेश में विधानसभा चुनाव थे वहां के कांग्रेस अध्यक्ष और उनके साथ एक बड़े नेता कांग्रेस मुख्यालय में रो रहे थे। उनसे कहा गया था कि चुनाव के खर्च के लिए खुद व्यवस्था करें!
उस समय कांग्रेस के 24 अकबर रोड मुख्यालय में कहा जाता था कि कांग्रेस गरीब पार्टी है, मगर कांग्रेसी देश के सबसे अमीर नेता! पिछले छह साल में बीजेपी के पास पैसा आया, बीजेपी के नेताओं के पास नहीं। और कांग्रेस के दस साल में कांग्रेस का खजाना नहीं भरा, नेताओं की तिजोरियां भर गईं। कहा जाता था कि अगर कोई कांग्रेस का नेता कहीं से सौ रु. लाता था तो उसमें से दस भी बड़ी मुश्किल से पार्टी फंड में जमा कराता था। जबकि भाजपा का कोई पुराना धाकड़ नेता ही ऐसा होगा जो सौ के सौ ही पार्टी फंड में नहीं देकर 80 या 90 जमा करवाए। बाकी अधिकांश पूरा पैसा पार्टी की जानकारी में लातेहैं। यूपीए सरकार में प्रणव मुखर्जी के मुकाबले के दूसरे सबसे बड़े मंत्री के पास एक बार संगठन के एक बड़े नेता गए। पार्टी को कुछ पैसों की जरूरत थी। मंत्री जी सुनते ही चिल्लाए " एम आई ए थीफ? " क्या में चोर हूं? वरिष्ठ नेता बेचारे उल्टे पाँव भागे। अपने स्वार्थों में कांग्रेसी नेता इतने पागल हो गए कि आपसी लड़ाई में मनमोहन के उस प्रसिद्ध कथन को हथियार बना रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा था इतिहास मेरे साथ ज्यादा न्यायपूर्ण और उदार होगा।
मिलिंद देवड़ा जी यह बात उन्होंने उस समय के विपक्ष और मीडिया के लिए कही थी। कांग्रेस के लोगों के लिए नहीं। मनमोहन सिंह के नाम का इस्तेमाल करने वाले क्या उन्हें राहुल गांधी या नेहरू गांधी परिवार के सामने खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं? क्या वे कांग्रेसी खुद इतिहास भूल गए? सोनिया, राहुल, प्रियंका तीनों ने जैसा मनमोहन सिंह को समर्थन दिया है वैसी मिसाल इतिहास में कम मिलेगी। न्यूक्लीयर डील के समय सोनिया ने कहा था सरकार जाए तो जाए हम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ खड़े हैं। लेफ्ट के समर्थन वापसी की चेतावनी के कारण जब मनमोहन सिंह भारी तनाव में थे तो राहुल और प्रियंका ने भी यही बात दोहराई थी। मनमोहन सिंह के पहले प्रेस एडवाइजर संजय बारू ने सोनिया और राहुल के खिलाफ कैसी साजिशें कीं। क्या क्या नहीं कहा, लिखा। मगर मनमोहन सिंह के सम्मान की खातिर परिवार ने कभी सच्चाई बताने की भी कोशिश नहीं की। उन मनमोहन सिंह के नाम का इस्तेमाल किसे डराने के लिए किया जा रहा है? राहुल गांधी को?
जो राहुल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूरी केन्द्र सरकार, मीडिया, ट्रोल आर्मी से नहीं डर रहा हो वह इन कांग्रेसियों से डर जाएगा?
कांग्रेस को इस समय लड़ने की जरूरत है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा से। मगर उन्हें आपसी लड़ाईयों से फुर्सत नहीं है। कांग्रेस के बारे में कहा जाता है कि जब भी कोई कांग्रेसी नेता घर से चना सत्तू बाँध के निकलता है उसकी पत्नी या घर वाले समझ जाते हैं कि अब वह विरोधी को निपटाए बिना घर वापस नहीं आएगा। विरोधी मतलब भाजपा या दूसरी पार्टी का नेता नहीं, बल्कि कांग्रेस में उसका प्रतिद्वंद्वी। कांग्रेसी, कांग्रेसी को निपटाने में माहिर है। कांग्रेस के इस सबसे बुरे समय में भी वह सत्तारूढ़ पार्टी से लड़ने की नहीं सोच रहा बल्कि पार्टी के आन्तरिक गड़े मुद्दे उखाड़कर आपस में एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है।
शकील अख्तर
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। नवभारत टाइम्स के राजनीतिक संपादक एवं चीफ आफ ब्यूरो रहे हैं।)