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प्रमोद रंजन
असम के कार्बी जिला में स्थिति तनावपूर्ण है। जिला में धारा 144 लगा दी गई है। आदिवासी समुदाय आरएसएस के विरोध में नारे लगा रहा है। आरएएस और भारतीय जनता पार्टी ने पूरे पूर्वोत्तर भारत में पिछले वर्षों में अच्छी पैठ बना ली है। कुछ दूसरे मुद्दों को उठाकर अब आदिवासी समुदाय इसका प्रतिकार कर रहा है। चूंकि आरएसएस के इस प्रचार में बाहर से आए लोग ही शामिल हैं, इसलिए उनका विरोध हो रहा है।
2014 के बाद यह पहली बार है जब पूर्वोत्तर भारत में ब्राह्मणीकरण का विरोध हो रहा है। अन्यथा यह माना जा रहा था कि पूर्वोत्तर से आरएसएस की विचारधारा से तालमेल बिठा लिया है।
कार्बी आनलांग जिला का मुख्यालय दीफू है, जहां मैं रहता हूं। यह इलाका नागलैंड से सटा खूबसूरत, शांत, जंगलों से घिरा और बेहद संपन्न जैव-विविधता वाला इलाका है। कारबी अनलांग असम के अन्य भागों से सांस्कृतिक रूप से काफी भिन्न है। कारबी, दिमाशा बोडो, कुकी, थाई आयटन, गारो आदि यहां रहने वाली जनजातियां हैं, जो मंगोलियन नस्ल की हैं। भाषाई रूप से यह तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार का इलाका है,जिसमें अरुणाचल प्रदेश, नागलैंड से लेकर मिजोरम तक का इलाका आता है।
यहां की देशज जातियों में से कुछ क्रिश्चन हैं तो कुछ अपने पारंपरिक एनिमिस्ट (Animist) रिवाजों को मानने वाले हैं, जिन्हें आरएसएस हिंदू कहकर अपने फोल्ड में करने की कोशिश करता है।
पूर्वोत्तर के अन्य स्थानों की तरह कार्बी अनलांग जिला में भी बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, बंगाल, नेपाल से काफी लोग आकर स्थाई रूप से बसे हैं और कई पीढ़ियों से यहीं हैं। इनमें से कुछ छोटी-बड़ी दुकानदारियां, तो कुछ खेती-बारी करते हैं। इनमें से कुछ की जमीनें कानूनी रूप से वैध नहीं हैं। दरअसल, यह संविधान की छठी अनुसूचि का इलाका है, जहां बाहरी लोग जमीन नहीं खरीद सकते। लेकिन इससे संबंधित नियम में कुछ पेंच और छेद हैं, जिस कारण यह विवाद लगातार बना रहता है। सरकारी वन-भूमि का भी मामला रहता है, जिस पर अवैध कब्जा करने में बाहरी और स्थानीय दोनों शामिल हैं।
15 फरवरी, 2024 की शाम इन्हीं मुद्दों को लेकर यहां की देशज जनजातियों और इन्हीं कथित बाहरी लोगों के बीच मारपीट हो गई। आज पूरा बाजार बंद है और चारों ओर सन्नाटा है। बाजार में छाई इस निर्जनता में राममंदिर वाली ध्वजाएं फहरा रही हैं। राममंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के दौरान पूरे बाजार को इन ध्वजाओं से पाट दिया गया था, जो अब भी हर जगह मौजूद हैं। जो कुछ हो रहा है, उसे इन ध्वजाओं को लगाए जाने की प्रतिक्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में भी देखा जा रहा है।
इन सबके बीच धर्म को लाने की कवायद शुरु है। आम दिन होता तो मामला जल्दी सुलझ जाता, लेकिन लोकसभा चुनाव सामने है, इसलिए इस विवाद को बढ़ाने वाले भी सक्रिय हो गए हैं। मणिपुर की हालत हम देख ही रहे हैं। कार्बी अनालांग को उसी रास्ते पर ले जाने की काेशिश की जा रही है।