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हम कांग्रेस नहीं बल्कि कांग्रेस के कल्चर का नतीजा भुगत रहे हैं
तुषार सिंह
राम मंदिर पर बुरा लगा? मुझे भी लगा। मोदी पर गुस्सा आ रहा है? मुझे भी आ रहा है। खीज उतारने को बदला लेने का मन कर रहा है? मेरा भी कर रहा है। तो क्या मोदी से बदला लेना है? बस मुझे यही नहीं करना है।
कारण?
कारण यह है कि जब मोदी ने कहा कि "कांग्रेस मुक्त" भारत... तो सबने कहा हां! कांग्रेस मुक्त भारत। लेकिन जब मोदी ने कहा कि कांग्रेस मुक्त भारत अर्थात कांग्रेसी कल्चर मुक्त भारत.... तो किसी ने ये सुना ही नहीं, आज जो हम भुगत रहे हैं वो कांग्रेस नहीं बल्कि कांग्रेस के कल्चर का नतीजा है।
हमें लगा कि सरकार बदल दी और सब बदल जायेगा.. मगर भूल गए कि सरकार बदली है, सिस्टम नहीं.. उसपर बैठे लोग नहीं... वो लोग जो कॉंग्रेस के हैं, उसके कल्चर में फले फूले हैं। इन्हें भी तो बदलना है।
इसी लिए मोदी से बदला नहीं लेना है मुझे.. क्योंकि राम मंदिर बन जाय तो भी ऐसा नही कि सब बढ़िया हो जाएगा। न ये पहली समस्या है और न ये आखरी समस्या है। जब तक कांग्रेसी कल्चर रहेगा, हिंदुओं से जुड़ी समस्या रहेगी।
अब दिक्कत ये है कि ये एक बहुत पेचीदा सिस्टम है। इतना पेचीदा कि आपातकाल लगाने वाली इंदिरा भी इसे अपने अनुसार नहीं कर सकी। कर पाती तो वो भी वैसे ही सिस्टम को कर देती जैसा आज शी जिनपिंग ने अपने लिए किया है कि माओ के बाद दूसरा ऐसा शख्स है जिसका कहा ही कानून बन जाय।
आप सिर्फ चुनाव में ही देखो तो लोकसभा और राज्यसभा ही इस तरह बनाई गई हैं कि आप लोकसभा जीत जाओ तो भी हारने वाले राज्यसभा से आपकी नीतियों को अटका दें और राज्यसभा में पकड़ बनाने के लिए आप राज्य में मेहनत करें और वहां चुनाव जीतें और तब तक पता चला कि आप लोकसभा ही हार गए।
ये सिर्फ एक उदाहरण है इस सिस्टम का..
ऐसे ही नौकरशाही है, ऐसा ही क़ानूनशाही और ऐसा ही अन्य जगह.. ये लोग भी इस तरह भर्ती किये जाते हैं कि किसी का बाप इन्हें न निकाल सके और एक को निकालो तो दूसरा उसे बचाने को खड़ा हो जाय.. ऊपर से विपक्ष और मीडिया भी तो है जो सत्ताधारी यदि हिन्दू हितेषी है तो उसके खिलाफ खड़ा होने को और इसे अन्तराष्ट्रीय तानाशाही घोषित करवाने को सदैव खड़ी रहती है।
इंदिरा ने हर किसी को अपने कब्जे में करने की कोशिश की थी लेकिन असफल रही.. आज मोदी करेगा तो असफल ही होगा। इसके बजाय वही किया जाय जो इंदिरा ने बाद में किया कि हर सिस्टम में अपने लोग भर दो.. इसे सोनिया ने आगे बढ़ाया और आज उसी का नतीजा है कि सरकार तो आपकी है मगर सिस्टम उनके हिसाब से काम करता है।
इस जहर की काट दूसरा जहर ही है, उसके सिवा कुछ नही। आपको भी अपने लोग भरने होंगे और उसमें समय इसलिए लगेगा कि जब ये लोग हटेंगे तो ही वो आएंगे और उससे पहले आपके पास इतने लोग तैयार भी होने चाहिए जगह भरने को।
हम वामपंथियों पर गुस्सा होते हैं कि हर जगह हर संस्थान में ये हैं लेकिन उसका दूसरा सत्य ये है कि आपने अपने लोग तैयार ही नहीं किये जो उनकी जगह ले लें और फिर जब आप सिर्फ इक्के दुक्के को उनके बीच भेजते हो तो उसका हाल वही होता है जो सेंसर बोर्ड के पहलाज निहलानी का या FTTI के गजेंद्र सिंग का या जो विबेक अग्निहोत्री बोलता है कि बॉलीवुड ने तो मुझे बाहर निकाल फेंक दिया इंडस्ट्री से।
अब सीधा और सरल उपाय है.. इन्वेस्ट करो और समय दो.. अच्छा रिजल्ट ऐसे ही नहीं आता और यदि कोई और उपाय हो तो उसे सबके सामने रखो। सिर्फ चिल्लाने भर से या किसी को गाली देने भर से समस्या का हल तो नहीं निकलेगा, उल्टा जहां जहां आज मजबूत हो भी, उसे भी गवा दोगे। तुम्हारा रंग बदलना भी सरकार को दुविधा में ही डालता है।
इसके अलावा एक और उपाय है- भीड़तंत्र अर्थात सड़को पर उतर अपनी लड़ाई लड़ना, जैसा सबरीमाला में हिन्दू लड़े और सफल हुए.. मगर हम लोग अभाषी दुनिया के शेर हैं, सड़को पर नही उतर सकते.. यहीं से जिसे गरियाना हैं गरिया देते हैं और मठाधीषि चमका देते हैं। ऊपर से एक मुद्दा हो तो उतरने की सोचे भीं.. यहां तो कदम कदम पर हिन्दू जुतियाया जाता है।
कड़वा है मगर यही सत्य है।