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डॉ. वेदप्रताप वैदिक
राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे या न दें, यह प्रश्न मुझसे कई टीवी चैनलों ने कांग्रेस-कार्यसमिति की बैठक के पहले पूछा तो मैंने कहा कि अगर वह दें तो भी कांग्रेस उसे स्वीकार नहीं करेगी। अब यही हुआ। कांग्रेस अब एक लोकतांत्रिक पार्टी नहीं, प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन चुकी है। यदि राहुल का इस्तीफा हो ही जाता तो बताइए कि क्या यह कंपनी विधवा नहीं हो जाती ? इसका बोझ कौन उठाता ? किस कांग्रेसी नेता की ऐसी हैसियत है कि वह कांग्रेस को चला सके ?
कांग्रेस में नेता हैं ही कहां ? सब नौकर हैं, जैसे कि किसी कंपनी में होते हैं। इंदिराजी के वक्त इसे अंग्रेजी में नेशनल कांग्रेस कहा जाता था याने एन.सी.। मैं इसकी हिंदी किया करता था। एन. का अर्थ नौकर और सी. का अर्थ चाकर। याने 'नौकर-चाकर कांग्रेस'। आप प्रधानमंत्री बन जाएं या राष्ट्रपति। यदि आप कांग्रेसी हैं तो आपकी हैसियत इंदिरा गांधी परिवार के नौकर-चाकर की ही रहेगी। इसका अर्थ यह नहीं कि कांग्रेस मे योग्य लोगों का अभाव है। कांग्रेस में अब भी दर्जन भर लोग ऐसे हैं, जो प्रधानमंत्री बनने के लायक हैं लेकिन पिछले 50 साल में कांग्रेस का स्वरुप ऐसा हो गया है कि यदि राहुल और प्रियंका उसका नेतृत्व न करें तो उसे बिखरते देर नहीं लगेगी।
कांग्रेस का जिंदा रहना और मजबूत होना देश के लोकतंत्र के लिए बेहद जरुरी है। अब अगले पांच साल तक एक भाई-भाई पार्टी का मुकाबला एक भाई-बहन पार्टी करेगी। अमित और नरेंद्र के मुकाबले राहुल और प्रियंका होंगे। भाजपा भी अब कांग्रेस-जैसी बनती जा रही है। दोनों पार्टियों के चरित्र में एकरुपता आती जा रही है। कांग्रेस कार्यसमिति ने राहुल को पूर्ण अधिकार दे दिया है कि वह पार्टी का ढांचा बदल दे। ढांचा बदलने का अर्थ क्या है ? क्या नए लोगों को पद दे देने से ढांचा बदल जाएगा ? ढांचा बदलने का पहला कदम यह है कि पार्टी के हर पद के लिए चुनाव होना चाहिए। अध्यक्ष पद के लिए भी। ऊपर से लोगों को नहीं थोपा जाना चाहिए। दूसरा, अपनी अकड़ छोड़कर देश की लगभग सभी प्रांतीय पार्टियों का महासंघ खड़ा करना चाहिए। तीसरा, सबसे बड़ा काम जो कांग्रेस को करना चाहिए, वह यह कि जन-आंदोलन और जन-जागरण के अभियान चलाने चाहिए
। ऐसे अभियान जो पार्टियों की क्यारियां भी तोड़ डालें। जैसे अभियान कभी महात्मा गांधी और बाद में डाॅ. लोहिया ने चलाए थे। जैसे जात-तोड़ो, अंग्रेजी हटाओ, नर-नारी समता, भारत-पाक महासंघ, विश्व-निरस्त्रीकरण, संभव बराबरी। इस तरह के अभियानों में सर्व शिक्षा, सर्व स्वास्थ्य, सर्व सुरक्षा, पंथ-निरपेक्ष, नशाबंदी, रिश्वतमुक्ति, दहेजमुक्ति जैसे अभियान भी जोड़े जा सकते हैं। इन अभियानों में सभी पार्टियों के लोग भाग ले सकते हैं। अभी तो कांग्रेस पार्टी की देखादेखी सभी पार्टियों के कार्यकर्त्ताओं ने अपने आप को 'दलालों की फौज' बना लिया है। वे वोट और नोट कबाड़ना ही अपना पवित्र कर्तव्य समझते हैं। यदि राहुल कुछ हिम्मत करें तो कांग्रेस ही नहीं, भारत की राजनीति को भी सही दिशा मिल सकती है।