राष्ट्रीय

देश की सबसे पुरानी पार्टी की जिम्मेदारी, सफलताओं-विफलताओं का बोझ, सौभाग्य या दुर्भाग्य से गांधी, क्या सोच रहा होगा ?

Shiv Kumar Mishra
27 July 2022 2:01 PM IST
देश की सबसे पुरानी पार्टी की जिम्मेदारी, सफलताओं-विफलताओं का बोझ, सौभाग्य या दुर्भाग्य से गांधी, क्या सोच रहा होगा ?
x
क्या सोचता होगा राहुल नाम का यह शख्स

राहुल गांधी नामका यह शख्स जिसके कंधों पर देश की सबसे पुरानी पार्टी की जिम्मेदारी, उसकी सफलताओं-विफलताओं का बोझ है जो सौभाग्य या दुर्भाग्य से गांधी भी है -- क्या सोच रहा होगा ?

तस्वीर देखिए. उसकी आंखों में अकेलापन, अपनों की धोखेबाजी से मिला दर्द और ढेर सारे अनुत्तरित सवालों का जखीरा दिखाई पड़ेगा.

क्या सोचता होगा राहुल नाम का यह शख्स : क्या यह वही मुल्क है जिसके लिए उसके बाप के चीथड़े उड़ा दिए गए थे? अंतिम संस्कार करते वक्त, वह अपने पिता का मुंह तक नहीं देख पाया था. यही देश है जिसके लिए उसकी दादी ने अपने शरीर में सैकड़ों गोलियां खाई थीं?

जिन लोगों की भावनाओं का लिहाज करते हुए उसकी मां ने प्रधानमंत्री का पद छोड़ा था, वो सब इसी देश के नागरिक हैं फिर इतना अपमान, इतनी गालियां और इतना जलालत क्यूं?

क्या सिर्फ इसलिए कि वह इटली में पैदा हो गई थी या इसलिए कि उसने इस मुल्क से, इस मुल्क के एक नागरिक से प्यार किया? भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, सूचना को अधिकार बनाने वाली स्त्री का योगदान यह मुल्क भूल गया.

पिछले आठ सालों में सोनिया गांधी के लिए जो शब्द इस्तेमाल किए गए हैं, उन्हें जिस तरह से बदनाम किया गया है उससे यही साबित होता है कि हमारा समाज नैतिक पतन की,निकृष्ठता की हर सीमा पार कर चुका है.

कल दिन भर टीवी मीडिया ने कांग्रेस के सत्याग्रह का मज़ाक उड़ाया. कवरेज इस तरह ट्विस्ट की गई थी जैसे लगा कि प्रदर्शन करना भी घृणित काम हो चुका है. कांग्रेस या किसी भी विपक्षी पार्टी के लोग किस मुद्दे पर, कहां, कितना, किस तरह प्रदर्शन करेंगे यह तय करने का हक उन्हें है न कि बीजेपी के प्रवक्ताओं को या टीवी स्टूडियो में बैठे दलालों को.

याद रखिए वक्त एक दिन सबका हिसाब करता है. जितना राहुल को जानता हूं उस हिसाब के कह सकता हूं कि उनके अंदर पर्याप्त जिद है. इस फ्रॉड और तनाशाही हूकूमत का अंत उसी जिद के हाथों होगा.

कल राहुल ने यूं ही नहीं कहा था कि सत्य ही इस तनाशाही हुकूमत का अंत करेगा.

सचाई के लिए यह जिद और इतना गहरा आग्रह राहुल के अंदर नहीं आ पाता अगर वो भोक्ता नहीं होते. आपके सामने दिल्ली के राजपथ पर जो शख्स आज अकेला बैठा है वह इस दुनिया के सबसे बड़े दर्द भोग चुका है. इसीलिए वह निडर हो चुका है.

उसका आग्रह रंग लाएगा. वक्त, विरासत, उम्र सब कुछ राहुल के पक्ष में है. देर लग सकती है लेकिन अनुभव से कह रहा हूं कि झूठ का हर किला एक न एक दिन ढह जाता है.

मुंडकोपनिषद सदियों से बताता आ रहा कि

सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः

यह बात आजतक गलत साबित नहीं हुई. राहुल भी गलत साबित नहीं होगा.

Next Story