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ईडी और सीबीआई से भयभीत विपक्ष को देश की चिंता क्यों नहीं?
माजिद अली खान सहायक संपादक
लोकतान्त्रिक व्यवस्था में विपक्ष की भूमिका भी बहुत अहम् होती है. सत्ता पर काबिज़ पार्टी जहाँ अपने हितों को ध्यान में रख कर काम करती है वहीँ विपक्षी पार्टियां उसे जनहित के मुद्दों पर लौटने तथा संवैधानिक ज़िम्मेदारियों को पूरा करने पर मजबूर करती है. इसी व्यवस्था के ज़रिये उम्मीद बनती है की देश मे जनता की आवाज़ सरकार तक पहुँच जाएगी और किसी भी कमज़ोर और उपेक्षित वर्ग को सरकार से नाउम्मीद नहीं होना पड़ेगा.
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत जिसमे बहुत सारे समुदाय, बहुत सारी जातियां, अल्पसंख्यक समुदाय रहते हैं में फिलहाल पक्ष विपक्ष की स्थिति बहुत अजीब सी हो गयी है. भाजपा के सत्ता में आने के बाद जहाँ सत्तारूढ़ दल अपने हिंदूवादी एजेंडा का शोर मचा कर समुदाय विशेष के खिलाफ बहुसंख्यक समुदाय को ध्रुवीकृत करने की कोशिशे लगातार करता रहता है वहीँ विपक्षी पार्टियों का रवैया एक डरपोक गिरोह जैसा नज़र आ रहा है. इस खौफ के पीछे है ईडी और सीबीआई का डंडा जो सरकार के इशारे पर लगातार विपक्षी नेताओ पर चक्र रहता है. विपक्ष की इस कमज़ोरी और बेलगाम होते सत्ताधारी लोगो के कारनामो से देश से लेकर विदेशो तक यानि हर पूरी दुनिया में भारत की छवि धूमिल हुई है.
अभी कुछ दिन पहले पैग़ंबर मुहम्मद पर हुई टिप्पणी से जो भारत के खिलाफ मुस्लिम देशो में विरोधी स्वर तेज़ हुए ये आज़ादी के बाद से ऐसा पहला मौक़ा रहा है. मुस्लिम देशो में भारत की छवि सदा इतनी अच्छी रही है की कश्मीर मसले पर कभी किसी मुस्लिम खासतौर से अरब देशो ने पाकिस्तान की हिमायत नहीं की. लेकिन ताज़ा घटनाक्रम में भारत का विरोध ज़्यादा हुआ जिसका असर सीधा देश की अर्थव्यवस्था पर होना लाज़िमी है. वैसे तो भाजपा की सरकार आने के बाद से मुस्लिम समुदाय के खिलाफ देश में घटनाएं बढ़ गयी थी लेकिन कुछ दिनों से उनमे और तेज़ी आयी है. पैग़म्बर मुहामद पर टिप्पणी के बाद हुए प्रदर्शनों में पुलिस के रवैय्ये और मुसलमानो के घरो पर बुलडोज़र चलने की घटनाओ ने भी दुनिया में भारत की आलोचनाओं को बढ़ा दिया है.
इन सब घटनाओ से बेखबर विपक्ष ये नहीं समझ पा रहा है की सरकार और भाजपा की इन करतूतों से देश का सामूहिक नुक्सान हो रहा है. विपक्षी पार्टियों को समुदाय विशेष के वोट तो चाहिए लेकिन जब उस समुदाय के खिलाफ घटनाएं घटती हैं तो विपक्षी पार्टियां चुप्पी साध लेती हैं. आखिर ऐसा कौन सा डर है जो इन दलों को सताता है. सियासी माहिरीन का कहना है कि भाजपा के हिंदुत्व कार्ड के सामने पार्टियों के पास नतमस्तक होने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है.सिकुलर पार्टी कहलाने वाली पार्टियां हकीकत में सेकुलर शब्द से पीछा छुड़ाने के लिए बेचैन हैं. देश के सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने रोज़ा इफ्तार पार्टी इसलिए बंद कर दी थी की कहीं उसे हिन्दू विरोधी करार न दे दिया जाये.
हालाँकि भाजपा ने फिर भी कांग्रेस को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, देश के धर्मनिरपेक्ष तबके का कहना है की बिना खौफ सेकुलर पार्टियों को सिकुलरिज़्म पर खड़ा रहना चाहिए. कुछ सियासी विशेषज्ञों का मानना है की ये कथित सिकुलर पार्टियों के नेता अक्सर भ्रसटाचार के मुक़दमे ईडी और सीबीआई के झेल रही हैं और उनमे हिम्मत ही नहीं है की वह सरकार का विरोध कर सकें. विपक्ष का ये डर सही मायने में उन्हें तो बचा रहा है लेकिन देश को गर्त में धकेल रहा है. विपक्ष को गंभीरता से इस पर विचार करना चाहिए. और अगर वह ऐसा नहीं कर सकते तो उन्हें राजनीति छोड़ देनी चाहिए. फिलहाल की राजनीति में मुस्लिम समुदाय को विपक्ष मान लिया गया है जो देश की दशा और दिशा के लिए बिलकुल ठीक नहीं है.