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माजिद अली खान
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं वैसे वैसे राज्य की सियासत अब्बा जान और चाचा जान मैं उलझती जा रही है. भारतीय जनता पार्टी धीरे-धीरे अपने परंपरागत राजनीतिक ढंग पर लौट रही है और फिर उसी सुर में बयानबाजी शुरू हो गई है जिससे माहौल को सांप्रदायिक रंग देकर ध्रुवीकरण किया जा सके. लेकिन यह बिल्कुल भी दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि भारतीय जनता पार्टी को इस अपने परंपरागत रवैया से ज्यादा फायदा पहुंचेगा बल्कि उसे नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. फिलहाल जो राजनीतिक परिदृश्य उत्तर प्रदेश में बन रहा है उससे यही लगता है कि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का मुकाबला खुद उनसे ही है क्योंकि उन्हें हराने के लिए विपक्ष कहीं मौजूद नहीं है. बल्कि सरकार की अपनी नाकामियां ही भारतीय जनता पार्टी को हराने में अहम भूमिका निभाएंगी.
भारतीय जनता पार्टी अपनी सरकारों के काबिल होने का कितना ही दावा करें लेकिन यह दावा उस समय बिल्कुल एक मजाक लगता है जब देश के अलग-अलग प्रदेशों से बच्चों के वायरल बुखार व अन्य बुखार से मरने की खबरें बहुतायत से मिल रही हों और इसके उलट भारतीय जनता पार्टी और उसकी सरकारें अपनी सत्ता के बुखार में घिरी हुई हों कि आखिर अगले पांच साल के लिए सत्ता पुनः कैसे कबज़ाई जाए. राष्ट्रीय आपराधिक रिकार्ड ब्यूरो द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश अपराध में आज भी सबसे अव्वल बना हुआ है ऐसे में यह अनुमान लगाना आसान हो जाता है की उत्तर प्रदेश की सियासत का ऊंट किस करवट बैठने वाला है.
यदि हम विपक्ष में शामिल दलों पर नजर डालें तो किसी भी दल की तैयारी से यह नहीं लग रहा कि कोई विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को हराने की कोशिश में लगा हुआ है. राज्य में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का ढीला ढाला रवैया लोगों को बेचैन किए हुए है. पश्चिम उत्तर प्रदेश में हालांकि भारतीय जनता पार्टी कमजोर नजर आ रही है उसका कारण भी किसान आंदोलन के कारण लामबंद हुए जाट समाज और राष्ट्रीय लोकदल की मेहनत और किसान नेताओं का भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मुखर होना है. इसीलिए भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्यादा मेहनत ना कर पूर्वी उत्तर प्रदेश और मध्य उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में फोकस करने की योजना बनाई है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चर्चित यह बयान भी पूर्वी उत्तर प्रदेश में दिया गया कि 2017 से पहले राशन अब्बा जान कहने वाले खा जाया करते थे इस ओर इशारा कर रहा है कि वह पूर्वी उत्तर प्रदेश को सांप्रदायिक रूप से बांट गैर मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण अपने पक्ष में कराने की कोशिशों में जुट गए हैं. समाजवादी पार्टी के अलावा कांग्रेस का वजूद अभी उत्तर प्रदेश में नहीं बन पा रहा है. कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी समय समय बाद राज्य का दौरा भी कर रही हैं लेकिन अभी कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला कर सकेगी या अपना बहुत बड़ा वजूद दिखा पाएगी ऐसा कहना मुश्किल लग रहा है. शायद कांग्रेस भी समाजवादी पार्टी के सहारे भारतीय जनता पार्टी को हराना चाह रही है जैसे बंगाल में ममता बनर्जी को आगे कर कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी को चित कर दिया. अब सारा दारोमदार समाजवादी पार्टी के ऊपर है कि वह योगी सरकार की हार जीत में अपना योगदान रखना चाहती है या नहीं.
चुनावी तैयारियों में तो सिर्फ भाजपा ही सबसे आगे नजर आती है. सोशल मीडिया पर भाजपा समर्थित डिजिटल चैनलों की रिपोर्टिंग देखकर तो यही महसूस होता है कि भारतीय जनता पार्टी फिर राज्य की कमान संभालने के लिए आतुर है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि फिलहाल जो स्थिति है उसमें योगी सरकार ही खुद को हराएगी या जीताएगी. अबकी बार राज्य में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस इत्तिहादुल मुसलिमीन की एंट्री ने भी माहौल को गर्म कर रखा है.
ओवैसी और उनके समर्थक लगातार सपा, बसपा और कांग्रेस को मुसलमानो की बदहाली का शिकार बताकर मुस्लिम समाज को कन्फयूज़ कर रहे हैं जिसकी वजह से ओवैसी के आलोचक ओवैसी पर भाजपा को मदद करने का आरोप भी लगा रहे हैं. किसान नेता राकेश टिकैत ने ओवैसी साहब को भाजपा का चचाजान बताकर बहस को और अधिक बढ़ा दिया है. कुल मिलाकर देखा जाए कि उत्तर प्रदेश में सियासी बिसात बिछनी शुरू हो गयी है लेकिन इतना तय दीख रहा है कि फिलहाल भाजपा ही पक्ष है और खुद ही विपक्ष है.