Archived

शरद पूर्णिमा पर इस साल 17 साल बाद बन रहा है,सर्वार्थ सिद्धि योग, जाने महत्व और पूजन विधि

Alok Mishra
4 Oct 2017 10:36 AM GMT
शरद पूर्णिमा पर  इस साल 17 साल बाद बन रहा है,सर्वार्थ सिद्धि योग, जाने महत्व और पूजन विधि
x
शरदपूर्णिमा का पर्व गुरुवार को श्रद्धा उल्लास से मनाया जाएगा. इस वर्ष अमृत सिद्धि योग में चंद्रमा सोलह कला से पूर्ण होकर अमृत बरसाएगा.
नई दिल्ली : शरदपूर्णिमा का पर्व गुरुवार को श्रद्धा उल्लास से मनाया जाएगा. इस वर्ष अमृत सिद्धि योग में चंद्रमा सोलह कला से पूर्ण होकर अमृत बरसाएगा.
शरद पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा व्रत और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है तथा कुछ क्षेत्रों में इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है.
शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा व भगवान विष्णु का पूजन कर, व्रत कथा पढ़ी जाती है. धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन चन्द्र अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होते हैं. इस मौके पर आइए जानते हैं पौराणिक एवं प्रचलित कथा...
पौराणिक एवं प्रचलित कथा
एक कथा के अनुसार एक साहुकार को दो पुत्रियां थीं. दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं. लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी. इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी.
उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है.
पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है.
उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया. बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ. जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया. उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया. फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया. बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका लहंगा बच्चे का छू गया.
बच्चा लहंगा छूते ही रोने लगा. तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी. मेरे बैठने से यह मर जाता. तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था. तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है.
उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया.
ऐसे करें पूजन
शरद पूर्णिमा मां लक्ष्मी, चंद्र देव, भगवान शिव, कुबेर और कृष्ण की आराधना करने का शुभ पर्व है। चंद्र की शुभ्र किरणें जब आंगन में बिखरेंगी तब बरसेगी खुशियां, और मिलेगा दिव्य लक्ष्मी के साथ इन सभी देवताओं का शुभ आशीर्वाद.
शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी को मनाने का मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः

शरद पूर्णिमा की रात कुबेर को मनाने का मंत्र
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्याधिपतये
धन धान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।।

शरद पूर्णिमा पर भगवान शिव की इस मंत्र से पूजा करें
शिवलिंग का जल स्नान कराने के बाद पंचोपचार पूजा यानी सफेद चंदन, अक्षत, बिल्वपत्र, आंकडे के फूल व मिठाई का भोग लगाकर इस आसान शिव मंत्र का ध्यान कर जीवन में शुभ-लाभ की कामना करें - यह शिव मंत्र मृत्युभय, दरिद्रता व हानि से रक्षा करने वाला माना गया है-

पंचवक्त्र: कराग्रै: स्वैर्दशभिश्चैव धारयन्।
अभयं प्रसादं शक्तिं शूलं खट्वाङ्गमीश्वर:।।
दक्षै: करैर्वामकैश्च भुजंग चाक्षसूत्रकम्।
डमरुकं नीलोत्पलं बीजपूरकमुक्तमम्।।

यह है रासलीला का खास गोपीकृष्ण मंत्र
कहते हैं शरद पूर्णिमा की रात भगवान कृष्ण ने गोपियों संग रास रचाया था. इसमें हर गोपी के साथ एक कृष्ण नाच रहे थे .गोपियों को लगता रहा कि कान्हा बस उनके साथ ही थिरक रहे हैं. अत: इस रात गोपीकृष्ण मंत्र का पाठ करने का महत्व है.
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री'
शरद पूर्णिमा की रात मिलेगी चंद्र देव की कृपा...

ॐ चं चंद्रमस्यै नम:
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।

पंडितों के अनुसार पूर्णिमा, और रेवती नक्षत्र मिलकर इस दिन अमृत सिद्धि योग बनाएंगे. ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा अमृत बरसाता है. उसके खीर में सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. शरद पूर्णिमा पर सर्वार्थ सिद्धि योग का होना बहुत अच्छा माना गया है. इस शुभ योग में खरीदारी करने से घर में बरकत बनी रहती है. गुरुवार की रात 08.50 से सर्वार्थ सिद्धि योग बनेगा. इस योग में की गई खरीदारी शुभ लाभप्रद मानी जाती है. शुक्रवार को सूर्योदय से ही अमृत सिद्धि योग बन रहा है. इन शुभ मुहूर्तों में वाहन, खाता-रोकड़, आभूषण, वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक आइटम, मोबाइल, कंप्यूटर, फर्नीचर, व्यापार आरंभ, ग्रह प्रवेश, भूमि पूजन करना शुभ फलदायी होगा.
आयुर्वेद में भी शरद ऋतु का वर्णन किया गया है. इसके अनुसार शरद में दिन बहुत गर्म और रात बहुत ठंडी होती है. इस ऋतु में पित्त या एसिडिटी का प्रकोप ज्यादा होता है. इसके लिए ठंडे दूध और चावल को खाना अच्छा माना जाता है. यही वजह है कि शरद ऋतु में दूध मिश्रित खीर बनाने का प्रावधान है. साथ ही इस खीर को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए, जहां इस पर चंद्रमा की किरणें पड़े, ताकि वह अमृतमयी हो जाए. इस खीर को खाने से बीमारियों से निजात मिलती है. खासकर दमा और सांस की तकलीफ में यह खीर अमृत के समान है. शरद पूर्णिमा की रात चांद की किरणें धरती पर छिटककर अन्न-वनस्पति आदि में औषधीय गुणों को सींचती है. स्वास्थ्य की दृष्टि से शरद पूर्णिमा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है.

Next Story