चंडीगढ़

सस्ती राजनैतिक लोकप्रियता और पंजाबी मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की कारीडोर समारोह में शिरकत से उपजे विवाद पर विशेष

Special Coverage News
4 Dec 2018 2:52 AM GMT
सस्ती राजनैतिक लोकप्रियता और पंजाबी मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की कारीडोर समारोह में शिरकत से उपजे विवाद पर विशेष
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आजकल राजनीति में सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए लीक से हटकर कार्य करने और तीखे बेमतलबी बयान देकर फंसता देखकर पलट जाने का जैसे एक रिवाज बनता जा रहा है।राजनीति का स्तर इतना घटिया हो गया है कि लोग मीडिया की सुर्खियों में बने रहने के लिए देश की स्मिता एकता अखंडता को राजनैतिक बिसात पर दाँव लगाने से बाज नहीं आ रहें हैं।आजादी मिलने के बाद से ही पग पग हमसे दुश्मनी मानकर दुश्मनों जैसी हरकत करने वाला पाकिस्तान जहाँ एक तरफ खुद आतंकवाद का बढ़ावा देकर आतंकी गतिविधियों को संचालित कर बेगुनाह लोगों के खून बहा रहा है वहीं दूसरी तरफ हमारे देश के कुछ राजनेता अभिनेता इतने बेशर्म बेहया देशद्रोही जैसे हैं जो पाकिस्तान को अपना दोस्त मानकर वहाँ पर उसे अमनपसंद एवं सेकुलर मान वहाँ जाकर हिन्दुस्तान विरोधी तत्वों के गले मिलकर वहाँ पर गुलछर्रे उड़ाने में जरा भी गुरेज नहीं कर रहे हैं।


ऐसे नमकहराम नेताओं में राष्ट्रीय राजनैतिक दल के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा रही है और समय समय ऐसे तमाम पर्दाफाश भी हो चुके हैं। ताज्जुब तो इस बात का है कि हमारे कुछ राजनेता पाकिस्तानी के कसीदे पढ़ते समय अपने आपको अपने बाप को और अपनी औकात को भूल जाते हैं लेकिन जब मामला फंसने लगता है तो पल्टी मारकर मीडिया को दोषी ठहरा कर अपने को सच्चा देशभक्त साबित करने लगते हैं। पाकिस्तान की खास बात तह है कि वह हमसे दुश्मनी अदा करने के लिए खुद तो आतंकी नर्सरी तैयार कर ही रहा है और उसका इस्तेमाल हमारे खिलाफ लगातार कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ वह हमारे देश में भी चाहे देशद्रोही पाकिस्तानी सरपरस्त काश्मीरी हो चाहे खालिस्तान समर्थक पंजाबी हो या फिर चाहे नक्सली आंतकी हो , वहाँ पर भारत विरोधी मुहिम को हवा देकर परवान चढ़ाने की कोशिश कर रहा है।


भारत सरकार के कड़े रूख एवं स्वर्ण मंदिर आपरेशन के बाद खालिस्तानी आतंकवाद तो दब गया है लेकिन काश्मीरी एवं नक्सली आतंकवादी आज भी सक्रिय हैं। खालिस्तानी आतंकवाद का ठंडा पड़ना पाकिस्तान को बहुत खल रहा है और वह लगातार उसे पुनर्जीवित करने में जुटा है। पाकिस्तान स्थित करतारपुर गुरूद्वारा जाने के लिये कारीडोर बनाकर वह एक बार फिर खालिस्तानी आतंकियों को संरक्षण देकर हमारे लिए मुसीबत पैदा करने का ख्वाब देख रहा है। अभी पिछले महीने पंजाब सरकार के मंत्री एवं पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने पाकिस्तान की यात्रा करके भारत की गरिमा को धूलधूसरित करते हुए पाकिस्तानी सरकार से इस कोरीडोर की मांग की थी और वहाँ के सेनाध्यक्ष से गले मिलकर उनकी पीठ थपथपाने के मामले में उन्हें भारी फजीहत का सामना करना पड़ा था।


जैसा कि सभी जानते हैं कि सिद्धू कांग्रेस के टिकट पर जीतकर विधायक बनकर मंत्री बने हैं लेकिन अपने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह को महत्व न देकर अपने पाकिस्तानी क्रिकेटर दोस्त और उसके देश को अधिक महत्व देते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो इस बार कारीडोर उद्घाटन समारोह में शामिल होने से जब देश के अन्य जिम्मेदार राजनेताओं ने जाने से मना कर दिया था उसी तरह वह भी मुख्यमंत्री के विरोध के बावजूद समारोह में भाग लेने नहीं जाते और अगर देशभक्त एवं अमनपसंद होते तो समारोह के दौरान आतंकी आकाओं से गले मिलकर देश का भाल नीचा नही करते।


तमाम विरोध के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू का लगातार पाकिस्तान जाकर बचकाना हरकतें करके देश का अपमान करना किसी भी दशा में उचित नहीं कहा जा सकता है और उन्होंने हद तो तब पार कर दी जब उन्होंने अपनी पार्टी के अगुवा राहुल गांधी को भी इस लफड़े में लपेट लिया लेकिन कुशल यह था कि इस बयान से उठे तूफान को देखकर वह बयान से तुरंत पलटी मारकर पिछले शुक्रवार को हैदराबाद में दिये बयान से ही इंकार कर दिया है।वरिष्ठ कांग्रेसी मंत्री सिद्धू ने कहा था कि वह पाकिस्तान करतारपुर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के कहने पर गये थे लेकिन रविवार को सोशल मीडिया पर ट्वीट करके बयान से पल्टी मार गये और कहा कि वह राहुल के कहने पर नहीं बल्कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के निमंत्रण पर गये थे।


इसके बावजूद सिद्धू की लगातार देश एवं पार्टी विरोधी हरकतों से कांग्रेस की ही फजीहत नहीं हो रही है बल्कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह भी अपमानित हुये हैं और स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि उनके बचाव में उनकी धर्मपत्नी को सामने आना पड़ा है। पंजाबी मंत्री पूर्व क्रिकेटर की लगातार हरकतों पर अगर रोक नहीं लगती है तो इसी तरह वह अपने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री दोस्त के बुलावे पर वहीं जाकर देश की स्मिता को दाँव पर लगाते रहेगें।मुख्यमंत्री को अपनी कैबिनेट टीम का कैप्टन न मानकर पार्टी अध्यक्ष को कैप्टन मानना लोकतांत्रिक मर्यादाओं के विपरीत है और ऐसी स्थिति में उन्हें एक मिनट भी मंत्री की कुर्सी पर बने रहने का हक नहीं है।

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