पंजाब

स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में गाँव खटकड़ कलाँ का अलग ही है महत्व

स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में गाँव खटकड़ कलाँ का अलग ही है महत्व
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स्वतन्त्रता आन्दोलन के एक ऐसे नायक हैं जिनका नाम आते है आज भी देश के युवाओं के शरीर नई ऊर्जा और जोश का होता है संचार

शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह,स्वतन्त्रता आन्दोलन के एक ऐसे नायक हैं जिनका नाम आते है आज भी देश के युवाओं के शरीर नई ऊर्जा और जौश का संचार होने लगता है और देशभक्ति की भावना उबाल लेने लगती है। वैसे तो भगतसिंह का पूरा ही परिवार स्वतन्त्रता आन्दोलन से जुड़ा हुआ था,मगर इस कड़ी में भगतसिंह ने जो आयाम स्थापित किया, ऐसे उदाहरण इतिहास में बिरला ही मिलते हैं।

आज पूरे देश में भगतसिंह की यादगार बनी हुई हैं,जहाँ देश के लाखों युवा उनके विचारों से प्रेरणा लेने हैं। मगर उनके बुजुर्गों के गाँव खटकड़ कलाँ का अलग ही महत्व है। खटकड़ा कलाँ भगतसिंह का जन्म स्थान नहीं है बल्कि 23 मार्च,1931 में भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव की फाँसी के बाद,1938 में यहाँ उनके पिता और चाचा एक ऐतिहासिक घटना के बाद लायलपुर छोड़कर यहाँ आकर बसे थे।

वास्तव में हुआ ये था कि भगतसिंह की फाँसी के बाद,सन् 1938 में, लायलपुर में महारानी विक्टोरिया का दरबार था इसलिए पूरे शहर को बिजली की रोशनी से सजाया गया था। दरबार शुरू होने से कुछ समय पहले भगतसिंह के भाईयों कलतेज सिंह व कुलबीर सिंह ने तार काट दी ,जिससे समारोह स्थल और पूरा शहर अंधेरे में डूब गया। इस घटना से अंग्रेज सरकार तिलमिला गई। घटना स्थल पर जूता छूट जाने के कारण कुलतेज सिंह व कुलबीर सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया।

केस चला और अदालत ने दोनों भाईयों को तीन-तीन साल की सजा सुनाई। इस घटना के बाद भगतसिंह के परिवार ने लायलपुर छोड़ दिया और खटकड़ कलाँ गाँव में आकर आबाद हो गए। इसलिए 14 अगस्त को आग़ाज-दोस्ती यात्रा के शांति सैनिकों दूसरा पड़ाव खटकड़ कलाँ ही था क्योंकि खटकड़ कलाँ में शहीद-ए-आजम भगतसिंह यादगार म्यूजियम देखने की जिज्ञासा हर साथी के दिल में थी।

यह गाँव (खटकड़कलाँ) रोपड़ और जालंधर के बीच हाईवे के पास स्थित है। इस गाँव शहीद-ए-आजम भगतसिंह यादगार म्यूजियम बना हुआ है जिसके प्रांगण, 'इन्कलाब जिन्दाबाद' , नारा लगाने की मुद्रा में ,भगतसिंह की आदम कद मूर्ति लगी हुई है और बाहर उनके चाचा पिता क्रमश:सरदार किशन सिंह,सरदार अजीत सिंह और सरदार स्वर्ण सिंह की समाधियाँ बनी हुई हैं।

म्यूजियम का मुख्य भवन अत्यन्त खूबसूरत है,जिसमें भगतसिंह और उनके साथियों से सम्बन्धित हर चीज बड़ी कुशलता के साथ योजनाबद्ध तरीके से प्रदर्शित की गई है। सबसे पहले जलियाँवाला बाग का दृश्य है जिसे देखकर अनायास ही दर्शक जलियाँवाला बाग और अतीत के इतिहास में झांकने लग जाता है। इसके बाद शुरू होता भगतसिंह और उनके साथियों की यादगारों का।

भगतसिंह की जन्म पत्री,घड़ी,चिता स्थल से लाई गई हड्डियों के टुकड़े,सुखदेव की टोपी,भगतसिंह द्वारा जलियाँवाला बागसे लाई गई खून से सनी मिट्टी,फाँसी के बाद 25 मार्च के अखबारों की छांये प्रति,जेल से भगतसिंह द्वारा लिखे गये ऑरिजनल पत्रों की छाया प्रति और असैम्ली हाॅल में बंम फैके जाने के बाद के अखबारों की छाया प्रियाँ।मगर दो खास चीजें और भी हैं। एक ,भगतसिंह की फाँसी के बाद उनकी बहादुर माँ का ऑरिजनल इन्टरव्यू।

उस बहादुर माँ की निडर और गंभीर आवाज में देशभक्ति की प्रेरणा छुपी है वह आज भी सुनने वाले को भावविभोर कर देती है। दूसरा है भगतसिंह द्वारा असैम्बली बंम फैंके जाने वाली घटना का 'लाइट एण्ड साऊंड' प्रोग्राम। लगभग दो मिनट का यह प्रोग्राम,आपको क्षण भर में ही अतीत के इतिहास में पहुँचा देता है।

इस तरह हमारे स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में गाँव खटकड़ कलाँ का अलग ही महत्व है। स्वतन्त्रता संग्राम के एक महानायक की स्मृतियों को समेटे खटकड़ कलाँ गाँव युवाओं की प्रेणा का केन्द्र बन गया है।

-सिद्दीक़ अहमद मेव

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