
आनंद पाल की माँ अजमेर लोकसभा चुनाव पर बदल सकती है तस्वीर, बीजेपी की मुश्किलें बड़ी

अजमेर लोकसभा सांसद और भाजपा के कद्दावर नेता सांवरलाल जाट के निधन के बाद राजस्थान की अजमेर सीट पर 29 जनवरी को उपचुनाव होगा. अजमेर को भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता है जहां पिछले आठ लोकसभा चुनावों में छह बार भाजपा ने अपना परचम लहराया है. यदि विधानसभा सीटों की बात करें तो भी इस जिले के आठ में से सात विधायक भारतीय जनता पार्टी से आते हैं.
लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि इस बार अजमेर की लड़ाई भाजपा के लिए आसान नहीं रहने वाली है. बताया जा रहा है कि अलग-अलग कारणों के चलते प्रदेश और क्षेत्र में भाजपा के समर्थक माने जाने वाले दो प्रमुख समुदाय इस चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में जाते दिख रहे हैं.
यह समझने के लिए पहले एक नज़र अजमेर के जातिगत समीकरणों पर डालते हैं. अजमेर जाट और गुर्जर समुदाय के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है. यहां के करीब 18 लाख वोटरों में इन दोनों समुदायों से ताल्लुक रखने वाले मतदाताओं की संख्या करीब दो-दो लाख है.
इनके बाद क्षेत्र में मुस्लिम और अनुसूचित जाति के वोटर हैं जो संख्या में जाटों और गुर्जरों के लगभग बराबर हैं. अब यदि दूसरे समुदायों की बात करें तो यहां राजपूत और ब्राह्मण डेढ़-डेढ़ लाख. सिंधी, माली, वैश्य और रावत करीब एक लाख और रावणा राजपूत 65 हजार की संख्या में हैं. बाकी के वोटर यहां के अन्य समुदायों से संबंध रखते हैं जो संख्या में अपेक्षाकृत कम हैं.
