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अशोक गहलोत को दिल्ली भिजवाने की चाल पूरी तरह असफल साबित होकर रह गई है। मैडम सोनिया गांधी तथा कुछ वरिष्ठ नेता चाहते है कि गहलोत को कांग्रेस का कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किया जाए ताकि पार्टी की जर्जर स्थिति को मजबूत किया जा सके । लेकिन गहलोत ने इस प्रस्ताव को सिरे से खरिज कर दिया है। वर्तमान में कांग्रेस दिन प्रतिदिन खंडहर में तब्दील होती जा रही है । अगर समय रहते पुख्ता मरम्मत नही हुई तो इसका वजूद समाप्त होकर रह जाएगा। कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी उम्र के अलावा स्वास्थ्य की दृष्टि से अब पार्टी का सफलता से संचालन करने में असहाय है। अहमद पटेल के निधन से वे पूरी तरह अपंग होकर रह गई है।
इस समय अशोक गहलोत ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति है जो अहमद पटेल की पूर्ति कर सकते है। उन्हें लंबा राजनीतिक तजुर्बा है तथा गांधी परिवार के प्रति वफादार भी है । जोड़तोड़ की राजनीति में भी ये पारंगत है । अगर ये राजनीति के माहिर खिलाड़ी नही होते तो पायलट अब तक उनको पटखनी देकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो जाते। अपनी जादूगरी की वजह से वे डूबती सरकार को बचाने में पूरी तरह कामयाब रहे ।
सोनिया बखूबी जानती है कि राहुल या प्रियंका राजनीतिक रूप से परिपक्व नही है। इसलिए वे अपना राजनीतिक सलाहकार नियुक्त करने के अलावा ऐसे व्यक्ति के हाथ मे पार्टी की कमान सौपना चाहती है जो इसके काबिल हो। इस वक्त केवल अशोक गहलोत ही इस डूबते जहाज को बचाने में कुछ हद तक सफल हो सकते है। आने वाले विधानसभा चुनावों का परिणाम पहले से ही घोषित है । कांग्रेस को बुरी तरह पराजय का सामना करना पड़ेगा । यूपी में कांग्रेस चौथे स्थान पर रहे तो कोई ताज्जुब नही होना चाहिए ।
सपा पहले ही कांग्रेस से गठबंधन करके देख चुकी है । कांग्रेस से मायावती समझौता करेगी, इसकी संभावना दिखाई नही देता। अकेले अपने दम पर कांग्रेस लड़ती है तो नतीजा पहले से ही सामने है, पायलट अच्छे प्रचारक तो हो सकते है, लेकिन वे राजनीतिक कलाबाजी से नावाकिफ है । यदि उनमे थोड़ी सी भी राजनीतिक समझ होती तो वे बगावत करके गुड़गांव नही भागते । गुड़गांव जाना उनकी सबसे बड़ी मूर्खता और बचकानी हरकत थी जिसका खामियाजा उनको और समर्थको को आज तक भुगतना पड़ रहा है ।
अगरचे गहलोत को कांग्रेस की कमान सौप दी जाए तो वे करिश्मा दिखा सकते है । सोनिया गांधी की दिली इच्छा है कि गहलोत पार्टी की कमान संभालने के अलावा उनके राजनीतिक सलाहकार के रूप में भी कार्य करें जिससे आए दिन के झगड़े-टन्टों से निजात पाई जा सके । कांग्रेस में आज गहलोत सर्वग्राह्य नेता है । इनकी साख भी है और राजनीतिक जोड़तोड़ में ये नरेंद्र मोदी और अमित शाह से इक्कीस है, बीस नही ।
भरोसेमंद सूत्रों ने बताया कि कुमारी शैलजा और डीके शिवकुमार सोनिया का यही संदेश लेकर गहलोत के पास आए थे। कुमारी शैलजा ने मैडम सोनिया की ख्वाहिश बताते हुए गहलोत से आग्रह किया कि पार्टी को आज उनकी जरूरत है । इसलिए उन्हें पार्टी हित मे कार्यवाहक अध्यक्ष का पद स्वीकार करना चाहिए। जब शैलजा से पार नही पड़ी तो डीके शिवकुमार को जयपुर भेजा गया ।
गहलोत और शिवकुमार के बीच प्रगाढ़ सम्बन्ध है। इसी को दृष्टिगत रखते हुए सोनिया ने उन्हें जयपुर भेजा। दोनों के बीच लम्बी बातचीत हुई। गहलोत का यही कहना था कि वे राजस्थान की राजनीति से दूर नही जाना चाहते है। वैसे पार्टी का हर निर्णय उनके लिए सर्वोपरि है । जहाँ तक पसंद का सवाल है, वे दिल्ली जाने की ख्वाहिश नही रखते है। शिवकुमार और शैलजा की ओर से कहा गया कि वे जिसे चाहे मुख्यमंत्री बना सकते है ।
सोनिया नही चाहती है कि गहलोत पर अपना निर्णय थोपा जाए। उनकी इच्छा है कि गहलोत सहर्ष उनके प्रस्ताव को स्वीकार करें । हो सकता है कि 17 अगस्त के बाद सोनिया किसी अन्य नेता को भी जयपुर भेज सकती है जो गहलोत को कन्विन्स कर सके। यह नेता कमलनाथ या गुलामनबी आजाद भी हो सकते है ।
हालांकि आजकल गुलाम नबी और मैडम के रिश्ते मधुर नही है । लेकिन गहलोत को मनाने में गुलाम नबी का इस्तेमाल किया जा सकता है । यह तयशुदा बात है कि गहलोत किसी भी हालत में राजस्थान छोड़कर जाने वाले नही है । ऐसे में कमलनाथ को राजनीतिक सलाहकार बनाने पर विचार किया जा सकता है । जहां तक मंत्रीमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों का प्रश्न है, मैडम सोनिया के विदेश से लौटने के बाद ही कुछ निर्णय होने की संभावना है।