जयपुर

अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच आखिर रिश्ता क्या है ?

Shiv Kumar Mishra
3 Sep 2020 6:45 AM GMT
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच आखिर रिश्ता क्या है ?
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ये रिश्ता क्या कहलाता है ? आपस मे मोहरे पीट रहे है गहलोत व सचिन

महेश झालानी

ना तो कांग्रेसियों को और न ही पार्टी नेताओं को समझ आ रहा है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच आखिर रिश्ता क्या है ? केंद्र से आये प्रभारी अजय माकन भी कई दिनों की माथा फोड़ी के बाद भी रिश्तों की गहराई को समझ नही पाए । केंद्र द्वारा रचित नाटक का मंचन लम्बा चलने वाला है । ऐसे में जिन्होंने मंत्री पद की शपथ के लिए नई पोशाक तैयार करवाई थी, उसको संदूक में बंद कर देना चाहिए ।

दरअसल हकीकत यह है कि गहलोत और सचिन के आपस मे हाथ मिलवाने के पीछे सभी का फौरी स्वार्थ था । जहां गहलोत बहुमत सिद्ध करने तक कोई कौतक से दूर रहना चाहते थे, वहीं सचिन ग्रुप की मजबूरी अपनी सदस्यता बचाना पहली प्राथमिकता थी । वैसे भी पायलट ग्रुप बुझा हुआ सुतली का बम था । इस गुट की असलियत जगजाहिर हो चुकी थी । इसलिए आलाकमान के सामने नाक रगड़ने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नही बचा था ।

आलाकमान राजस्थान जैसे बड़े प्रदेश पर भाजपा के कब्जे से आतंकित था । इसलिए ना चाहते हुए भी सचिन के साथ समझौते की रस्म अदायगी की । सभी ने अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर हाथ मिलाने का असफल नाटक का मंचन किया जिसके क्लाइमेक्स में होगी पदों की जोरदार छीना-झपटी और तगड़ी वाली मारकाट । ऐसे में हाथ मिलाने तथा आत्मसम्मान की सारी बात स्वाहा होकर रह जायेगी ।

तय हुआ था कि दोनों अर्थात अशोक गहलोत और सचिन पायलट पार्टी हित के लिए परस्पर मिलकर कार्य करेंगे । पार्टी गई तेल लेने । दोनो गुट आपस मे शिकस्त देने के लिए एक दूसरे के मोहरों को पीटने के लिए नित नई चाल रहे है । कोई विधानसभा में नही आता है तो किसी के द्वारा पीसीसी कार्यालय आने में आनाकानी की जाती है ।

राजनीति के जानकारों का मानना है कि सचिन पायलट का इरादा गुरिल्ला युद्ध के जरिये अशोक गहलोत को परेशान कर परास्त करना है । राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर पायलट पीसीसी दफ्तर गए तो गहलोत ने अपना पूर्व घोषित कार्यक्रम रद्द कर दिया । इसी तरह नीट आदि की परीक्षा निरस्ती के लिए आयोजित धरने पर अचानक सचिन के पहुँचने से गहलोत खेमे में जबरदस्त मायूसी छा गई ।

धरनास्थल पर ही सचिन पायलट जिंदाबाद के नारे लगने से स्थिति बड़ी विचित्र होगई । प्रतापसिंह खाचरियावास की तो बोलती ही बंद होगई । जो कल तक सचिन को नसीहत दे रहे थे, सामने देखकर उस खाचरियावास की घिग्घी बंध गई । सीएम और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंदसिंह डोटासरा तो धरनास्थल पर आने की हिम्मत तक नही जुटा पाए ।

क्या इसीको मन मिलना कहते है ? जिस कांग्रेस को बीजेपी से लड़ना चाहिए, वह आपस मे ही लड़कर लहूलुहान हो रही है । यह लड़ाई थम जाएगी, इसकी संभावना फिलहाल तो दूर दूर तक नजर नही आ रही है । लड़ाई किसी हद तक तभी थम सकती है जब अशोक गहलोत और सचिन पायलट में से किसी एक को दिल्ली नही भेजा जाता ।

गहलोत सीएम का पद छोड़कर दिल्ली जाने से रहे । ऐसे में सचिन को दिल्ली भेजकर युद्ध पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है । अगर ऐसा नही हुआ तो अगले विधानसभा चुनाव में विज्ञापन देने के बाद भी कांग्रेस को प्रत्याशी नही मिलेंगे । पीसीसी के बाहर ठेले पर टिकट सहज उपलब्ध होगी ।

जहां तक अजय माकन का सवाल है, इनको रिझाने के लिए दोनो गुटों के लिए जमकर चमचागिरी कर रहे है । अजय माकन रोबोट की तरह कार्य कर रहे है जिसका रिमोट आला कमान के हाथ मे है । आला कमान राजस्थान और एमपी की स्थिति से पूर्णतया परिचित था । अपनी अपरिपक्वता के कारण उसने एमपी तो खो दिया । राजस्थान हाथ से फिसलता, उससे पहले ही आला कमान नींद से जाग गया ।

सचिन गुट के आंसू पोछने के लिए हाथ मे रुमाल थमाना आवश्यक था । लिहाजा अविनाश पांडे के स्थान पर अजय माकन जैसे फ़्यूज बल्ब के जरिये राजस्थान के संकट को सुलझाने की कोशिश की है । जिस व्यक्ति के दिल्ली में एक पोस्टर नही है, उसके राजस्थान में हजारों पोस्टर लग रहे है । इससे हास्यास्पद स्थिति और क्या हो सकती है । खैर ! यही कांग्रेस की कल्चर है । दिल्ली में कांग्रेस को नेस्तनाबूद करने का गौरव भी माननीय अजय माकन को हासिल है ।

बहरहाल ! अजय माकन और तीन सदस्यीय कमेटी का नाटक अभी लम्बे समय तक चलने वाला है । जल्दी कोई फैसला हो जाएगा, इसकी उम्मीद बहुत कम है । कमेटी और प्रभारी के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि यदि सचिन खेमे के लोगों को संगठन और मंत्रिमंडल में समायोजित किया जाता है तो गहलोत गुट के विधायक तथा समर्थक बगावत कर सड़क पर उतर सकते है । यह एक ऐसी अभूतपूर्व बगावत होगी जिससे पार्टी के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह उत्पन्न हो सकता है ।

अगरचे सचिन सर्मथकों को संगठन और मंत्रिमंडल में उचित स्थान नही मिला तो बगावत ये भी करेंगे । आला कमान को इस गुट की संभावित बगावत को ज्यादा अहमियत नही देनी चाहिए । क्योंकि अब इनके लिए सभी दरवाजे बंद हो चुके है । बीजेपी पहले ही धक्के मारकर भगा चुकी है । अतः पार्टी हित मे पायलट गुट की जितनी उपेक्षा की जाएगी उसके तात्कालिक परिणाम तो सुखद होंगे ही, इसके अलावा भविष्य में कोई भी व्यक्ति विद्रोह करने से पहले कई बार विचार करेगा ।

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