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गहलोत और पायलट में घमासान बरकरार, गले मिलने का नाटक समाप्त : अब पीठ में छुरा घोंपने की तैयारी
महेश झालानी
कांग्रेस के राजस्थान से प्रभारी अजय माकन समूचे प्रदेश का दौरा कर ले या कितने ही नेता, कार्यकर्ताओ से संपर्क करे, निचोड़ यही निकलेगा कि प्रदेश में पार्टी के बीच अव्वल दर्जे की मारधाड़ मची हुई है तथा पार्टी को नेताओ ने टुकड़ो में बांटकर रख दिया है। जितने नेता, उतने धड़े। माकन क्या, तीन सदस्यीय कमेटी भी लहूलुहान पड़ी इस पार्टी का इलाज करने में असहाय साबित होगी। बल्कि मेरा तो यह भी मानना है कि मंत्रिमंडल का विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों के बाद कांग्रेस पार्टी में और ज्यादा असन्तोष एवं मारपीट होगी। क्योंकि गहलोत और पायलट गुट को पार्टी की नही, अपने वजूद में इजाफा करने की ज्यादा चिंता है।
गहलोत और सचिन के हाथ अवश्य मिले है, लेकिन दिल अभी नही। दोनो एक दूसरे की पीठ में खंजर भोपने के लिय्ये घात लगाए बैठे है। वास्तविक रूप से दोनों के दोनो के दिल मिल जाएंगे, इसकी कल्पना करना भी बेमानी है। जन्मदिन के बहाने सचिन ने अपनी ताकत का प्रदर्शन कर फ़िल्म की शुरुआत तो करदी है, लेकिन शक्ति प्रदर्शन का यह सिलसिला तब तक नही थमने वाला है जब तक गहलोत या पायलट में से किसी एक को राजस्थान से दूर नही भेजा जाता। अगर दोनो ही राजस्थान में रहते है तो सिर फुटव्वल और शक्ति प्रदर्शन का सिलसिला जारी रहने की सौ फीसदी संभावना रहेगी।
माकन ने दूसरे चरण का दौरा आज से प्रारम्भ कर दिया है। इस दौरे में हाथ कुछ नही लगने वाला है, अलावा एक दूसरे की शिकायत, कार्यकर्ताओ की उपेक्षा के। कांग्रेस के कार्यकर्ता पिछले छह-सात साल से लाभ का पद हासिल करने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। इस दौरे में आपसी चुगली के अलावा नेतागण अपना बायोडाटा पेश करने की ज्यादा कोशिश करेगें। ऐसे मे नतीजा सिफर साबित होगा।
माकन रिपोर्ट दे या नही, कमेटी और आलाकमान को बखूबी पता है कि अन्य राज्यो की तरह राजस्थान में पार्टी का ढांचा क्षत-विक्षत हो चुका है और अनुशासन की बात करना बेमानी है। माना कि पार्टी में तात्कालिक असन्तोष को दूर करने के लिए अविनाश पांडे के स्थान पर अजय माकन को नियुक्त कर तीन जनों की कमेटी बना दी गई है। लेकिन यह कमेटी कोई यथोचित हल खोज पाएगी, इसकी संभावना दूर दूर तक नजर नही आती।
पार्टी में सबसे पहले सख्त अनुशासन की आवश्यकता है। आज अनुशासन पूरी तरह जर्जर हो चुका है और आलाकमान असहाय जैसी स्थिति में है। अनुशासन के अभाव की वजह से ही बीजेपी में जाने के लिए पार्टी के 19 विधायक मानेसर जाकर सरेआम आलाकमान के वजूद को चुनोती देते है। बजाय इन बागी विधायकों को पार्टी से धक्के मारने के आलाकमान गले लगाकर अनुशासन की स्वयं धज्जियां उड़ा रहा है।
बागियों को इस तरह गले लगाना कांग्रेस पार्टी की एक ऐसी भूल है जिसकी जिंदगी भर भरपाई नही हो सकती है। इस घटना ने बागियों के लिए फ्लड गेट खोल दिया है। कांग्रेस पार्टी की शव यात्रा तो पहले से निकल रही है । अगरचे आलाकमान इन 19 विधयकों के लिए पार्टी के दरवाजे बंद कर दिए जाते तो आलाकमान के इस फैसले का दूरगामी सुपरिणाम सामने आता। लेकिन पायलट एंड कम्पनी की घर वापसी से पार्टी का सारा माहौल अशांत,अस्वच्छ और तनावपूर्ण होगया है।
अगर कांग्रेस पार्टी का अंतिम संस्कार नही हो, उससे पूर्व आलाकमान को कोई निर्णायक कदम उठाना चाहिए। अजय माकन को भेजकर टॉफी बांटने से समस्या का कोई समाधान नही निकलने वाला है। बल्कि इससे और वैमनश्यता तथा दूरियां बढ़ेगी। आलाकमान को स्पस्ट रूप से घोषणा करनी चाहिए कि जिन्होंने बगावत की है, वे किसी पद की उम्मीद छोड़ दे। अगर आलाकमान ने ऐसा नही किया तो ब्लैकमेलिंग की प्रवृति बढ़ने लगेगी।
देश कोरोना से जूझ रहा है। प्रदेश की आर्थिक हालत दयनीय है। मुख्यमंत्री को जनता पर रहम खाते हुए अविलम्ब मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों पर प्रतिबंध की घोषणा करनी चाहिए। मुख्यमंत्री को या तो यह कहना चाहिए कि वर्तमान में सरकार का कामकाज सही नही चल रहा है। अगर चल रहा है तो राजनीतिक नियुक्ति तथा मंत्रिमंडल का विस्तार क्यों ? अपनी कुर्सी बचाने के लिए सरकारी धन को लुटाना अपराध ही नही, नैतिक रूप से महापाप है। उम्मीद है कि गांधीवादी अशोक गहलोत वैश्विक महामारी के दौर में सरकारी धन को नाली में नही बहाएंगे। मंत्रिमंडल विस्तार राजनीतिक दृष्टि से भी गहलोत के लिए बड़ा आत्मघाती साबित होगा। जो आज गहलोत के साथ है, मंत्रिमंडल में जगह नही मिलने पर पायलट की तर्ज पर बगावत का झंडा उठा सकते है।