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गहलोत समेट सकते है बोरिया बिस्तर, सचिन के भाग्य का फैसला होगा शीघ्र जानिए कैसे!
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सच ही कहा था कि जब राजस्थान का मुख्यमंत्री बदला जाएगा, तब किसी को कानो कान खबर तक नही होगी । लगता है कि गहलोत की कही हुई बात सच होती दिखाई दे रही है । कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन का मानस बना लिया है जिसका परिणाम शीघ्र दिखाई दे सकता है । सचिन पायलट मुख्यमंत्री होंगे और गहलोत होंगे निवर्तमान मुख्यमंत्री ।
आपको याद होगा कि पिछले दिनों एक समारोह में गहलोत ने कहा था कि वे 1998 में अपना त्यागपत्र सोनिया गांधी को सौंपकर आ गए थे । उनका कहना था कि जब मुख्यमंत्री बदला जाएगा, किसी को इसका इल्म भी नही होगा । लगता है कि गहलोत का कार्यकाल पूरा हो चुका है और इनके स्थान पर कभी भी सचिन पायलट की ताजपोशी हो सकती है ।
लगता है कि इस बात का अशोक गहलोत को भी अहसास हो चुका है । इसलिए इनदिनों वे उन अखबारों को जमकर कोस रहे है जो इनके अनुकूल खबरें नही छाप रहे है । गोदी मीडिया के लिए मुख्यमंत्री ने खजाने का दरवाजा खोल दिया है । विधायको को निर्ममता से लूटने की छूट पहले ही मिली हुई है । आलाकमान के फैसले से वाकिफ गहलोत ने सीएमओ से अनावश्यक कागजों की छंटनी प्रारम्भ कर दी है । ऐसा तभी होता है जब किसी व्यक्ति की विदाई होती है । आज पायलट के कॉन्फिडेंस को देखते हुए लगता है जल्द उनके जैकपॉट हाथ लगने वाला है ।
विभिन्न राजनीतिक मुद्दों को लेकर सचिन पायलट से काफी देर तक चर्चा हुई । सचिन ने भी जवाब देने में कोई कंजूसी नही बरती । काफी लंबी चली चर्चा के दौरान राजनीति से इतर कोई बात नही हुई । बात पहले भी होती रही है । लेकिन आज उनकी बात में गजब का आत्मविश्वास और भारी वजन था । उन्होंने जोर देते हुए कहाकि सोनिया गांधी एक परिपक्व नेता है । उनका निर्णय निश्चय ही प्रदेश की जनता के अनुरूप होगा । निर्णय कब सामने आएगा, इस बारे में उन्होंने कुछ नही बताया ।
सचिन से जब यह पूछा गया कि आपकी और सोनिया गांधी से मुलाकात हुई थी । बातचीत का निचोड़ क्या था ? "बहुत विस्तार से बातचीत हुई । मैंने उनके सामने 2023 और 2024 का तफसील से विजन रखा । वे मेरे प्रस्ताव पर पूरी तरह सहमत थी । निश्चय ही पार्टी हित में जल्द ही ऐसे निर्णय लेगी, जिससे कांग्रेस को आगामी चुनावों में फायदा मिले ।
शीघ्र से मतलब ? पिछले डेढ़ साल से आप और आपके समर्थक उम्मीद लगाकर बैठे है, बदले में मिला क्या ? जवाब देते हुए सचिन ने कहाकि मैं मानता हूँ कि कुछ देरी हुई है । लेकिन अब सोनिया जी के साथ साथ राहुल और प्रियंका भी एक्शन मोड में है । पांच राज्यों की पराजय से हमे बहुत कुछ सीखने को मिला है और आगे ऐसी पुनरावृति नही हो, इस पर अध्यक्षा महोदय चिंतित भी है और सक्रिय भी ।
मैं यह मानकर चलू कि आप पीसीसी चीफ........? बात काटते हुए बोले-इस पद पर तो मैं सात साल तक काम कर चुका हूँ । इस पद की कोई लालसा नही है । यानी आपकी सूई सीएम पद पर अटकी हुई है । मेरी बात को उन्होंने फिर काटा । "ऐसा मैंने कब कहां ?" आपकी बात से तो यही ध्वनि निकल रही है । सफाई देते हुए पायलट बोले- "शीर्ष नेतृत्व जो भी जिम्मेदारी देगा, पूरी ईमानदारी, निष्ठा और समर्पित होकर पूरी करूँगा ।"
आप जानते है कि आपकी एक गलती के कारण प्रदेश को कितना नुकसान उठाना पड़ा है । "कौनसी गलती ?" पायलट ने गलती बताने को कहा । क्या मानेसर जाना बगावत नही थी ? क्या बीजेपी में जाना आपकी योजना नही थी ? जवाब देते हुए पायलट बोले - अपनी बात शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचाना बगावत है ? यदि पार्टी के लोग शीर्ष नेताओं से मिलकर अपनी परेशानी के इजहार को कोई बगावत का खिताब देता है तो निश्चय ही हमने बगावत की थी ।
जहां तक बीजेपी में जाने की बात है, अगर मुझे बीजेपी या अन्य किसी पार्टी में जाना होता तो मुझे रोकने वाला कौन था ? राजनीति और ओरो के लिए पेशा हो सकती है, मेरे लिए नही । एक मिशन और लोक कल्याण के लिए उस पार्टी में आया हूँ जिसका एक गौरवशाली इतिहास रहा है । यह सवाल मुझसे कई लोग पूछ चुके है और हरएक को मैंने यही जवाब दिया है ।
यदि आपकी मांग पूरी नही हुई तब ? मेरी कौनसी मांग ? उल्टा पायलट ने मेरे से ही सवाल पूछा । "सीएम वाली ।" मान्यवर आपको स्पस्ट करना चाहता हूँ कि महत्वकांक्षा हर व्यक्ति में होती है । मैं भी इससे अछूता नही हूँ । लेकिन मैं उन लोगो से साफ कहना चाहता हूँ जो अक्सर रगड़ाई की रट लगाते रहते है । मैं पिछले 25 साल से राजनीति में हूँ । पीसीसी चीफ रहते हुए गांव गांव, ढाणी ढाणी घूमा हूँ । आम जनता और कार्यकर्ताओं की तकलीफों को नजदीक से देखा है ।
अपनी बात जारी रखते हुए कहाकि पार्टी के लिए खून-पसीना बहाने वाला कार्यकर्ता आज आक्रोशित है । मन मे उबाल है । उसके जज्बातों को सुनने वाला कोई नही है । हमे यह कतई नही भूलना चाहिए कि किसी भी पार्टी की कार्यकर्ता बैक बॉन होता है । जब कार्यकर्ता अपने यतीम समझने लगता है, समझो पार्टी का पतन प्रारम्भ होगया है । हमें आज कार्यकर्ताओ के मनोबल को जीवित रखना होगा ।
जो हिस्सा उन कार्यकर्ताओ को मिलना चाहिए था, आज उन पदों पर अफसर काबिज है । अधिकांश पदों पर कार्यकर्ताओं के बजाय रिटायर्ड अफसर काबिज होकर पार्टी कार्यकर्ताओं की आत्मा को जख्मी कर रहे है । दिल्ली के हस्तक्षेप से कुछ कार्यकर्ताओ को तनिक सम्मान मिला है । लेकिन आज भी अनेक पद ऐसे है जिन पर समर्पित कार्यकर्ताओ को नियुक्त किया जाना चाहिए ।
अपनी बात जारी रखते हुए पायलट ने पूछा जिला अध्यक्षो और नगर सुधार न्यास आदि में अध्यक्षो की नियुक्ति क्यों नही ? चुनाव में बहुत कम समय रह गया है । अगर विलम्ब पर विलम्ब होता रहा तो नियुक्ति का औचित्य ? हकीकत यह है कि कार्यकर्ताओ का सब्र अब जवाब दे चुका है । इसका खामियाजा निश्चित रूप से आगामी चुनावों में पड़ेगा ।
गहलोत साहब का कथन था कि सचिन गले मिल ले तो सारे गिले-शिकवे दूर हो सकते है । आप गले क्यो नही मिलते ? जवाब दिया पायलट ने - निश्चय ही गहलोत साहब मेरे लिए सम्मानीय है और मैं सदैव उनका आदर करता आया हूँ । लेकिन उन्होंने जिस भाषा का इस्तेमाल किया, वह शोभनीय थी ? मैं नकारा हूँ, निकम्मा हूँ और बैंगन बेचने आया हूँ । आदि आदि.........। यदि वे मेरे प्रति इतना ही अनुराग रखते है तो वे खुद क्यो नही मुझे गले लगा लेते है ?
एक बात और मैं कहना चाहता हूँ । बड़ो की इज्जत करना और उन्हें यथोचित सम्मान देना मेरे संस्कार में शामिल है । अपने सर्वेंट तक को मैं तू नही बोलता । गहलोत साहब बहुत ही मंझे और तजुर्बेकार नेता है । मैंने उनसे बहुत सीखा है । पार्टी को उनके तजुर्बे का बेहतर उपयोग करना चाहिए । उन्होंने बात साल तक राज कर लिया । उन्हें चाहिए कि नए लोगो को अपने तजुर्बों से लाभान्वित करें ।