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कांग्रेस के लिए अशोक गहलोत साबित हुए पनौती, पांच साल चलता रहा कुर्सी बचाने का नंगा नाच
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प्रदेश की जनता ने एक लुटेरी, भ्रस्ट तथा संवेदनहीन सरकार को उखाड़ कर फेंक दिया है । मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अहंकार और भ्रस्टाचार की वजह से वे खुद तो डूबे ही, इसके अतिरिक्त प्रदेश के लाखो कांग्रेसियों के सपनो को भी उन्होंने अपने अहंकार के चलते चकानाचूर कर दिया । कांग्रेस की शर्मनाक पराजय के लिए गहलोत तो जिम्मेदार है ही, इसके अलावा सोनिया गांधी, राहुल, प्रियंका, खड़गे और प्रभारी महासचिव सुखजिंदर सिंह रंधावा को भी आरोप मुक्त नही किया जा सकता है । इन लोगों अकर्मण्यता की वजह से गहलोत ने प्रदेश में पांच साल तक अपनी कुर्सी बचाने का नंगा और बेशर्म नाच किया ।
हकीकत यह है कि अशोक गहलोत पार्टी के लिए पूरी तरह पनौती साबित हुए । इनकी शर्मनाक और वाहियात हरकतों की वजह से पार्टी को मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ में भी हार का सामना करना पड़ा । पार्टी की अर्थी उठाने की तैयारी उसी दिन शुरू होगई थी जिस वक्त उन्होंने सचिन पायलट को नकारा, निकम्मा आदि फूहड़ शब्दों से विभूषित किया ।
स्वयंघोषित गांधीवादी अशोक गहलोत ने कुर्सी की खातिर प्रदेश का अरबो रुपये विज्ञापन के नाम पर फूंककर मनमानी का परिचय दिया । पूरे पांच साल तक अफसर, विधायक और चिलमची लूटने के कारोबार में व्यस्त रहे ।
इस हकीकत से कोई इनकार नही कर सकता कि गहलोत ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए कई प्रकार के घृणित प्रपंच किये । कुर्सी उनकी सबसे बड़ी खुराक है । कुर्सी की खातिर उन्होंने विधायको को लूटने का लाइसेंस जारी कर दिया । नतीजतन विधायको और गहलोत के इर्द गिर्द के अफसरों एवं चमचो ने सरकारी खजाना लूटने के अलावा जनता की जेब पर भी बेशर्मी से डाका डाला । जनता को ध्यान होगा कि किस तरह जब सरकार होटलो में कैद थी, तब विधायको की ओर से जमकर लूटपाट की गई । खान के आवंटन से लेकर तबादलो के थोक में आदेश जारी हुए ।
अगर गहलोत सरकार को सबसे "भ्रस्ट और निकम्मी" सरकार का खिताब दिया जाए तो कतई अतिशयोक्ति नही होगी ।
चूँकि गहलोत की सरकार को बचाने में कांग्रेस के अलावा निर्दलीयों और बसपा विधायकों का बहुत बड़ा योगदान रहा है । एवज में गहलोत ने सभी विधायकों को दोनों हाथों से लूटने की खुली छूट दे दी । गहलोत इस जुमले का विधायको ने भरपूर लुत्फ उठाया कि तुम मांगते मांगते थक जाओगे और मैं देते नही थकूंगा । मुख्यमंत्री की इस "सदाशयता" का विधायको, मंत्रियो, अफसरों और चमचो ने जमकर फायदा उठाया । कहने को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत थे । जबकि सारे काम उप मुख्यमंत्री देवाराम सैनी, रघुवीर सैनी, धर्मेन्द्र राठौड़ आदि के इशारे पर होते थे । लूट की इस छूट में अफसरों ने भी जमकर लाभ उठाया ।
कहने को दिल्ली में कांग्रेस का कोई "आलाकमान" बताया जाता है । लेकिन गहलोत ने तथाकथित आलाकमान को सदैव अपनी जेब मे रखा । सोनिया हो या खड़गे, सब के सब गहलोत के इशारे पर कत्थक करते नजर आए । तथाकथित आलाकमान के निर्देश पर मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन एक लाइन का प्रस्ताव पारित कराने के लिए 25 सितम्बर को जयपुर आए । सत्ता के भूखे भेड़िये ने ऐसा प्रपंच रचा कि खड़गे और माकन को बैरंग दिल्ली लौटना पड़ा । राजस्थान की राजनीति में धूर्तता की इससे बड़ी मिसाल देखने को नही मिल सकती ।
बड़ी धूर्तता से गहलोत जयपुर से खिसक लिए और ऑपरेशन की जिम्मेदारी सौंपी शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेन्द्र राठौड़ को । एक्टिंग करने में गहलोत को महारत हासिल है । वे मरते दम तक सीएम की कुर्सी छोड़ना नही चाहते थे । इसलिए उन्होंने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद तक को ठुकरा दिया । वे बखूबी जानते थे कि एक बार उन्होंने कुर्सी छोड़ी नही, पायलट हमेशा के उस पर काबिज हो जाएंगे । इस स्थिति से बचने के लिए गहलोत ने सोनिया के सामने रोने का नाटक किया । उन्होंने तर्क दिया कि विधायक उनके नियंत्रण से बाहर चले गए थे । ऐसे में उनको विधायक दल का नेता कहलाने का कोई हक नही है ।
इस हकीकत से भी कोई इनकार नही कर सकता कि सत्ता के लिए गहलोत किसी भी हद तक जा सकते है । इतिहास गवाह है कि जब भी गहलोत सरकार के बाद चुनाव लड़ा गया, कांग्रेस का सूपड़ा साफ होगया । एक दफा 56 और दूसरी बार मिली फ़क़त 21 सीटे । इस बार का परिणाम भी आपके सामने है । जनता गहलोत सरकार के भ्रस्टाचार और लूटपाट से पूरी तरह उकता चुकी थी । नतीजतन अरबो रुपये प्रचार पर खर्च करने के बाद भी अली बाबा चालीस चोर की तरह उनकी सरकार बेआबरू होकर जाना पड़ा । झूठे वादे और गारन्टी के बजाय गहलोत कानून और व्यवस्था की स्थिति के साथ साथ लूटपाट पर रोक लगा देते तो आज शर्मनाक पराजय से रूबरू नही होना पड़ता ।
गहलोत से लूटने का तो लाइसेंस लिया जा सकता है, लेकिन सत्ता में बंटवारा उनको किसी भी हालत में स्वीकार्य नही है । पिछली दफा सचिन पायलट की वजह से सरकार बनी । जब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का वक्त आया, तब सचिन को धकिया कर जबरन खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए । सचिन ने जहर का घूँट पीया । लेकिन राजनीति के धूर्त्तधिराज ने सचिन को चैन से बैठने नही दिया । न तो सचिन के पास कोई फाइल जाती थी और न ही अफसर उनके काम करते थे । सचिन की जब कही सुनवाई नही हुई तो वे तंग आकर अपने समर्थक विधायको के साथ मानेसर चले गए । यह उनके जीवन की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल थी । वरना राजनीति का आज परिदृश्य ही कुछ और होता ।
गहलोत ने इसे विद्रोह का नाम दिया । वे इस बात को प्रचारित करने में कामयाब रहे कि सचिन उनकी सरकार गिराना चाहते थे । जबकि हकीकत कुछ और ही थी । गहलोत ने सचिन को न केवल निकम्मा और नकारा बताया बल्कि उनका उप मुख्यमंत्री का पद भी छीन लिया । यहां तक कि सचिन के खिलाफ राष्ट्रद्रोह तक का मुकदमा दर्ज किया । फेकने में गहलोत भी सिध्दहस्त है । उन्होंने सचिन और उनके समर्थकों पर कभी एक करोड़ तो कभी दस करोड़ रुपये बीजेपी से लेने का आरोप लगाया । बाद में तो वे 35 करोड़ तक उतर आए । दरअसल अन्य राजनेताओ की तरह अशोक गहलोत अव्वल दर्जे के झूठे और नौंटकीबाज है । लेकिन नौटंकी का कभी न कभी तो पटाक्षेप होता ही है ।
गहलोत के पाप का घड़ा भरा नही है । अपने दुश्मनों को निपटाने में उन्हें महारत हासिल है । नवल किशोर शर्मा, परसराम मदेरणा, शीशराम ओला, शिवचरण माथुर, रामनिवास मिर्धा, बलराम जाखड़ तक को इन्होंने बखूबी निपटाया है । इस बार भी सचिन पायलट, दिव्या मदेरणा, प्रतापसिंह खाचरियावास, ब्रजेन्द्र ओला, दीपेंद्र शेखावत, हरीश चौधरी आदि को "निपटाने" में गहलोत ने सक्रिय भूमिका अदा की । नतीजा सबके सामने है । अपनी कुर्सी बचाने के लिए गहलोत ने पूरी पार्टी का ही अस्थि विसर्जन कर दिया । अगर ये कांग्रेस में रहते है तो स्वयं भगवान भी इस पार्टी को डूबने से बचा नही सकते । इस पनौती के कारण राहुल की भारत जोड़ो यात्रा भी स्वहा होकर रह गई ।
शेष फिर कभी........