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भाजपा नही खोल रही सचिन के लिए दरवाजा, अब तेरा क्या होगा पायलट ?
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महेश झालानी
हर कोई राजनीतिक पंडित इस पहेली को सुलझाने में लगा हुआ है कि आखिर सचिन पायलट का राजनीतिक भविष्य होगा क्या। कुछ लोगो का मानना है पायलट का भविष्य खल्लास तो कुछ यह मानकर चल रहे है कि उसने अभी तक तुरुप का इक्का ओपन नही किया है। पत्ता ओपन होने के बाद ही कुछ जोड़-बाकी किया जा सकता है।
पायलट के पास तीन विकल्प है। भाजपा में जाना, नए गुट का निर्माण और तीसरा घर वापसी। हालांकि उन्होंने अभी तक कांग्रेस पार्टी से ना तो नाता तोडा है और न ही पार्टी के खिलाफ कुछ बोला है। राजनीति के जानकार इनकी चुप्पी के कई अर्थ निकाल रहे है । क्या वे घर वापसी के लिए लालायित है ? भाजपा उनसे अछूत की मानिंद व्यवहार करने लगी है ?
पायलट कई बार साफ तौर पर कह चुके है कि वे किसी भी हालत में भाजपा में नही जा रहे है। हालांकि राजनेताओं की ना जबान का भरोसा होता है और न ही चरित्र का। इसलिए पक्के तौर पर फिलहाल यह नही कहा जा सकता है कि वे भाजपा में नही जाएंगे। भले ही पायलट और उनके साथी भाजपा में नही जा रहे हो, लेकिन पोषित तो वे भाजपा से ही है। भाजपा की फेंकी झूठन से होटलों का खर्च चल रहा है। नही तो वे सार्वजनिक करें कि पांच सितारा होटलों का खर्चा कौन और क्यों कर रहा है।
भाजपा ने जैकपॉट समझकर सचिन पर दांव खेला था। लेकिन यह घोड़ा फिलहाल लंगड़ा ही साबित रहा है। इसलिए भाजपा ने भी अब पायलट और उनके साथियों से दूरी बना ली है। पायलट रोज बीजेपी के दरवाजे पर डोर बेल बजाते है। लेकिन अंदर से कोई दरवाजा खोलने को राजी नही है। इसलिए बेचारे पायलट और उनके समर्थकों को यह बयान देना पड़ रहा है कि वे भाजपा में नही जा रहे है। जाएंगे तो तब, जब कोई बुलायेगा। बेचारों को आये दिन झेंप मिटानी पड़ती है।
फ्यूज पायलट के लिए भाजपा का दरवाजा बंद है। सवाल उठता है कि पायलट करे तो करे क्या ? फिलहाल तीसरा मोर्चा या नई पार्टी बनाना सचिन के बूते से बाहर की बात है। 30-35 का दावा करने वाले पायलट अपने डिब्बे में 18 से ज्यादा विधायको को जोड़ नही पाए है। ऐसा व्यक्ति क्या खाक नई पार्टी बनाएगा ? चूँकि भाजपा की नजर में पायलट मरा सांप है, इसलिए वह पायलट से दूरी बनाए हुए है। जो खर्चा किया जा रहा हैं, भाजपा उसे भविष्य के लिए इंवेस्टमेंट मान रही है।
पायलट के पास अब एक विकल्प बचा है - वापिस घर आने का। हालांकि पायलट या इनके किसी साथी ने कांग्रेस इसलिये नही छोड़ी ताकि संकट के समय मुँह छिपाने के लिए कोई जगह बची रहे। इसलिये कांग्रेस के खिलाफ बयान से बचने के अलावा वे डोटासरा तथा सीपी जोशी को बधाई देंने से भी नही चूक रहे है। उधर कांग्रेस को भी यह उम्मीद है कि देर-सवेर ये लौटकर तो आएंगे ही। लिहाजा पार्टी ने अभी तक इनके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नही की है।
जिस तरह अशोक गहलोत इस लड़ाई से बुरी तरह परेशान हो चुके है, उसी तरह पायलट खेमे के विधायको को भी अब घुटन होने लगी है। अब वे अंतिम निर्णय के मूड में है। उधर गहलोत की मुसीबत यह है कि वह किस किस को मंन्त्री बनाये । निर्दलीय कतार में खड़े है तो बीएसपी वालो ने भी मंन्त्री पद के लालच में समर्थन दिया है। उधर पार्टी के कई ऐसे विधायक भी है जिनके पैर कब्र में लटके हुए है। लेकिन चाहिए लालबत्ती वाली गाड़ी। इस चक्कर मे कई लोग तो घर बार छोड़कर दिल्ली और हरियाणा में धक्के खा रहे है।
वर्तमान राजनीतिक हालातों को देखते हुए लगता नही है कि पायलट के लिए भाजपा दरवाजा खोलेगी। अगर खोल भी देगी तो मिलेगा केवल बाबाजी का ठुल्लू। मान लिया जाए कि अशोक गहलोत की सरकार गिर जाती है और भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिलता है, तब भी पायलट के हाथ मे कुछ आने वाला है नही। ज्यादा से ज्यादा इन्हें उप मुख्मंयत्री पद दिया जा सकता है।
भाजपा की सरकार बनने की नौबत आई तो जो घमासान आज कांग्रेस में मचा हुआ है, उससे भी बड़ा घमासान भाजपा में मचना स्वाभाविक है। ओम माथुर, गजेंद्र सिंह शेखावत, गुलाब चंद कटारिया, अर्जुन मेघवाल, ओम बिड़ला आदि कई नेता अपनी दावेदारी जताएंगे। ऐसे में पायलट कहीं दूर कोने में खड़े नजर आएंगे। और समर्थक ? इनको तो शपथ ग्रहण समारोह का निमंत्रण तक नही मिलेगा।
भाजपा में सबसे बड़ा किरदार है वसुंधरा राजे। इनकी दावेदारी के बाद कई तो मैदान छोड़कर भाग जाएंगे। वसुंधरा के मुख्यमंन्त्री बनने में कोई कमी रहती है तो पायलट को शिकस्त देने के लिए गहलोत वसुंधरा से हाथ मिला सकते है। पायलट जैसे अधीर और अति महत्वाकांक्षी लोगों के पर काटना वसुंधरा अच्छी तरह जानती है। इनका काटा हुआ व्यक्ति पानी मांगने के भी काबिल नही रहता है। जो लोग केबिनेट मंत्री बनने के लिए दर-दर की ठोकर खा रहे है, वसुंधरा उनको सिविल लाइंस में भी नही घुसने देगी।
यह तो तय है कि छब्बे जी बनने वाले पायलट की आज हालत दुब्बे जी से भी गई बीती हो गई। खुद ने अपनी प्रतिष्ठा को बट्टा लगाया ही, साथ में अपने साथियों को भी लेकर डूब रहे है। कांग्रेस ने पायलट को पीसीसी चीफ और उप मुख्यमंत्री का पद दिया। तो क्या वे सोनिया को हटाकर खुद उनकी कुर्सी पर बैठना चाहते थे ? गहलोत को सचिन अदालती या राजनीतिक तौर पर झटका तो दे सकते है। लेकिन हाथ मे कुछ नही आने वाला है। पायलट की नासमझी, अपरिपक्वता तथा अधीरता ने उनकी सारी प्रतिष्ठा को मटियामेट कर दिया है। आने वाले दस-पांच तक उनका कोई राजनीतिक भविष्य नही है। नाऊ पायलट इज फिनिश्ड -
नोट : आपको पायलट का भविष्य क्या लगता है, विचार प्रकट करे ।
लेखक महेश झालानी वरिष्ठ पत्रकार है ये उनके निजी विचार है