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भाजपा बनाम कांग्रेस: अब साफ हो गया राजस्थान विधान सभा चुनाव में नही होगा कोई सीएम का चेहरा, आखिर सीएम गहलोत को गुस्सा क्यों आता है?
भले ही राजस्थान में भाजपा पार्टी में मौजूद रखने वाले नेता या उनके समर्थक 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की बात पर जिद पर अड़े हुए हो लेकिन पहले भी पहले भी राजस्थान की धरा में आकर गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, राजस्थान प्रभारी अरुण सिंह और संगठन महासचिव चंद्रशेखर कई बार यह घोषणा कर चुके हैं की विधानसभा चुनाव में मोदी मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे इस सबके बावजूद आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राजस्थान के सांवरिया सेठ दौरे के दौरान स्पष्ट कर दिया कि मुख्यमंत्री का चेहरा कमल होगा और हमें कमल को जिताना है।
हालांकि भाजपा बार-बार यह बात कह चुकी है लेकिन उन्हें इस बात को क्रियान्वयन करने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही है जिसका प्रमाण यह है कि 3 दिन जेपी नड्डा और अमित शाह के जयपुर प्रवास और पिछले दो-तीन दिनों से जयपुर में चल रहे विभिन्न स्तर पर बैठकों के दौर के बावजूद भी अभी तक भाजपा अपनी एक सूची भी जारी नहीं कर पाई है। कल तो कल तो राजस्थान चुनाव प्रभारी प्रह्लाद जोशी ने भी अपने निवास स्थान पर वसुंधरा राजे से बात करने के बाद जेपी नड्डा के आवास पर जाकर भी कुछ गुफ्तगू की लेकिन कोई हल नहीं निकला। 2 दिन से चर्चा जारी है कि भाजपा की 40 से 50 प्रत्याशियों की एक सूची सिंगल नाम की बन चुकी है जिस पर कल देर रात भाजपा मुख्यालय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में भी मंथन होने के बावजूद भी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सका।
इससे स्पष्ट है कि इससे यह माना जा सकता है कि वसुंधरा राजे को भाजपा के मुख्य धारा से अलग करना काफी मुश्किल है कमो वेश यही हालत कांग्रेस में भी है जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भले ही अपने सरकार के कार्यकाल की विभिन्न योजनाओं के दम पर सरकार रिपीट करने के दावे कर रहे हो लेकिन बिना सचिन पायलट के ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता है। भले ही सचिन पायलट के और गहलोत के बीच समझौते की कई बातें कही जाती रही हो लेकिन गहलोत का मन आज भी सचिन पायलट के प्रति राजनीतिक कटुता से भरा हुआ ही दिखता है जिसका एक उदाहरण आज गांधी जयंती के अवसर पर जयपुर में देखने को मिला जब मुख्यमंत्री गहलोत और सचिन पायलट के एक दूसरे के सामने होने के बावजूद भी एक दूसरे से विश तक नहीं हुई! पिछले कुछ दिनों से मुख्यमंत्री को गुस्सा आने की आदत पड़ गई है जो आज भी देखने को मिली तब भी गांधी जयंती के कार्यक्रम में बिना भाषण दिए अचानक उठ कर चल दिए।
जिसको लेकर डोटासरा, पायलट और रंधावा के बीच कुछ काना फूसी भी चली। आज के गुस्से का कारण समझा जाता है कि जिन अजय माकन को किसी समय गहलोत अपना खास मानते थे लेकिन 25 सितंबर को विधायक दल की बैठक में अचानक उनसे ऐसी नाराजगी हुई जो राजनीतिक कट्टर दुश्मनी में बदल गई। और आज कांग्रेस ने उन्ही अजय माकन को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का कोषाध्यक्ष बना दिया। स्वाभाविक है कि ऐसे में गहलोत का मूड ऑफ हो जाए लेकिन सार्वजनिक रूप से गांधी जयंती के कार्यक्रम से चले जाना कई मायने छोड़कर जाता है।
गहलोत को अब यह समझना चाहिए कि सब कुछ उनके कहने से अब नहीं होगा अभी तो शुरुआत है जब टिकटों के वितरण की बारी आएगी ऐसे में कुछ खट्टे मीठे अनुभव उन्हें फिर उत्तेजित कर सकते हैं लेकिन अगर सामंजस की राजनीति लेकर बढ़ेंगे तो सरकार रिपीट होना आसान हो सकता है। देखने वाली बात ही होगी कि भाजपा में पहले टिकट वितरण की सूची कब जारी होती है और किस पक्ष के लोगों को अधिक टिकट मिलते हैं वहीं कांग्रेस में भी ऊंट किस करवट बैठता है!