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अरविन्द चोटिया। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने पुलिस के अफसरों को कह दिया है कि पुलिस जो मांगेगी, वह मिलेगा। बस, बदमाश प्रदेश में आने से डरें। अखबार वाले जब यह खबर तैयार कर रहे थे, तब साथ-साथ ही उनको कुछ और खबरें भी तैयार करनी पड़ रही थीं। उनको यह भी बताना था कि जोधपुर में टोल नाके पर गुर्जर को बुरी तरह पीटा गया। नागौर के एक गांव में दबंगों ने एक सरपंच को एक पैर पर खड़े रखने के बाद हुक्का-पानी बंद कर दिया गया। सीकर में एक परिवार को गांव से बेदखल कर दिया गया। बीकानेर में दो सूने मकानों में चोरों ने सेंध लगा दी। जयपुर के पचकोडिया में दुकानदार से मारपीट कर कुचलने का प्रयास किया गया और 90 हजार रुपए छीन लिए। उदयपुर में एक दंपती से मारपीट कर एक लाख रुपए छीन लिए गए। जयपुर में भी कुछ महिलाएं घरों में काम करने के बहाने सामान पार करने के आरोप में पकड़ी गईं और और तो और स्वयं मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नाम से 20 से ज्यादा ट्विटर हैंडल न जाने किस-किस ने बना लिए। उन पर ब्लू टिक भी ले लिए।
ये कुछ खबरें हैं जो आज के ही अखबार में हैं। अखबार रोज अपराध की खबरों से भरे रहते हैं। लेकिन यह सब होता क्यों है? पुलिस का डर ही नहीं रहा। पिछले पूरे पांच साल पुलिस का मनोबल नेताओं का बंधक रहा। नेताओं ने जैसे चाहा, वैसे चलाया। उनके खिलाफ किसी ने फेसबुक पर टिप्पणी कर दी तो उसको सबक सिखाओ। कोई कहा नहीं मान रहा तो उसकी बैंड बजाओ। विधायक जी का आदमी है तो कोई हाथ डाल ही नहीं सकता। सरकार हमेशा खतरे में ही रही। समझौते पर समझौते हुए। नई सरकार के विधायकों ने भी पुरानी सरकार के विधायकों के वे ‘ठाठ’ देखे हैं। नई सरकार को चाहिए कि पुलिस को पूरी तरह फ्री हैंड दे। विधायकों को इतने पावर कभी नहीं दें कि वे पुलिस को अपने इशारे पर नचा सकें। पुलिस का मनोबल इतना ऊंचा कर दीजिए कि अपराध को रोकने की चुनौती वह खुद ले। जब आपने कहा कि पुलिस जो मांगेगी, वह मिलेगा। वैसे ही पुलिस वालों ने अपनी-अपनी मांगों की लिस्ट ट्विटर पर शेयर करनी शुरू कर दी। वे आपके भाव नहीं समझ पाए लेकिन हां, उनकी भी मांगें हैं। उनकी मांगें भी पूरी होनी चाहिए। उनके भी परिवार हैं। उनकी जरूरतें भी हैं। इनकी मांगें भी पूरी कीजिए और इन्हें जोरदार ट्रेनिंग भी दीजिए।
एक काम जो सबसे जरूरी है। पुलिस की नौकरी में सबसे बड़ा विषय होता है पदस्थापन। मलाईदार पद और बर्फ वाले पदों के बारे में राजस्थान का आम आदमी भी बहुत अच्छे से जानने लग गया है। चर्चाओं से भी और अखबारों में आई खबरों से भी। थानों की नीलामी के बारे में भी लोग सुन-सुनकर पढ़-पढ़कर समझने लगे हैं। आप तो खैर, राजनीति में ही हैं। भले ही सरकार का अनुभव न रहा हो लेकिन यह एक कड़वी सच्चाई है। मलाईदार थाने किसको मिलते हैं और कैसे मिलते हैं और कोई बर्फ में कब लगता है, क्यों लगता है, कैसे लगता है और किनके कहने पर लगता है। जब लोग इन बातों को समझते हैं तो आप भी समझते ही होंगे। इस मामले को आपने सलटा दिया तो समझ लीजिए आधी समस्याएं तो इसके साथ ही खत्म हो जाएंगी।
पुलिस में बहुत सारे काबिल और ईमानदार अफसर हैं। ऊंचे पदों पर भी और निचले पदों पर भी। उनको आगे लाइए। उन्हें प्रोत्साहन दीजिए। राजस्थान की जनता पुलिस की कद्र करना जानती है। कोरोना के दौर में जब पुलिस ने मानवीय चेहरा दिखाया तो जनता ने भी उमड़कर रेस्पांस दिया था। फिर पुलिस भी अपने पुराने दौर में लौट गई और लोग भी। हालांकि जनता को यह पता है कि पुलिस उसके लिए ही है और पुलिस को भी यह पता है कि वह जनता के लिए ही है। बस, दोनों ओर भरोसा बंधाने और बढ़ाने के लिए आपको पुल का काम करना है। बाकी चीजें खुद ब खुद सही होती चली जाएंगी। मुझे उम्मीद है कि पुलिस तो आपकी हरी झंडी का ही इंतजार कर रही है। जिस दिन आपने ये चीजें कर दी, हमारे राजस्थान की व्यवस्थाएं बहुत जल्दी पटरी पर आ जाएंगी। हम नए साल से यह भी उम्मीद कर सकते हैं कि 2024 का साल कानून-व्यवस्था के लिहाज से बेहतरीन होगा।
#एक_बेरोजगार_पत्रकार_की_डायरी का आज चौथा दिन था। आज की डायरी में सरकार को कानून-व्यवस्था को लेकर कुछ सुझाव दिए गए हैं। अगर कुछ सुझाव छूट गए हैं तो आप भी दीजिए। बताइए कि सरकार को क्या-क्या करना चाहिए ताकि हमारे राजस्थान को अपराध के मामले में सबसे निचले पायदान पर लाया जा सके। हमें उम्मीद है कि सरकार जनता के सुझावों को अहमियत देगी। अपराध मुक्त राज्य हर सरकार की प्राथमिकता होता है और होना चाहिए।