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कांग्रेस की चिता को अग्नि देने की दिग्गजो में होड़, गहलोत और सचिन मिलकर कर रहे है प्रदेश का कबाड़ा
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राजस्थान के ताजा पूरे घटनाक्रम पर दृष्टिपात करे तो निचोड़ यही निकलता है कि आलाकमान ने अपनी मूर्खता और नासमझी का परिचय दिया । मैं बहुत दिनों से यह जवाब खोजता आ रहा हूँ कि आलाकमान का मतलब क्या है और कांग्रेस पार्टी का असल आलाकमान आखिर है कौन ? सोनिया ? राहुल ? या प्रियंका ? बहरहाल कोई भी हो, तीनो पार्टी के क्रियाकर्म करने में सक्रिय है । पांच राज्यो की शर्मनाक पराजय के बाद पार्टी नेताओं को कुछ सीख लेनी चाहिए थी । बजाय सीख के कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में इस बात का जबरदस्त कम्पीटिशन छिड़ा हुआ है कि पार्टी का बेहतर क्रियाकर्म कैसे किया जाए ।
मैं पिछले तीन साल से कांग्रेस और राजस्थान की लड़ाई के बारे में लिखता आ रहा हूँ । कई बार सोचा कि इस दो कौड़ी की पार्टी के लिये मैं अपना वक्त जाया क्यों करू ? फिर सोचा कि उम्र के इस पड़ाव में टाइम पास करने के लिए इससे बेहतर कोई पार्टी नही है जिसमे संस्पेंस है, जबरदस्त मारधाड़ है और रोमांच है ही । पार्टी में हो रही मारधाड़ से बहुत मजा आ रहा है । मैं इस खोज में जुटा हुआ हूँ कि राजस्थान में हुई इस मारधाड़ के पीछे मोदी, अमित शाह, ईडी या सीबीआई का हाथ तो नही है ? क्योंकि कांग्रेसियो में इनदिनों इनको गाली देने की होड़ मची हुई है ।
पिछले 45 साल से राजस्थान की राजनीति का करीब से तमाशा देख रहा हूँ । बीजेपी को भी और कांग्रेस को भी । जब मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर ने अपनी ही केबिनेट मंत्री नरेंद्र सिंह भाटी को बर्खास्त किया था । बजाय आदेश मानने के भाटी दिल्ली चले गए तो सीएम ने आरएसी की मदद से नरेंद्र सिंह भाटी और विधायक शिवराम शर्मा को सोते समय कच्छे और बनियान में जोधपुर हाउस से खदेड़ा था । मैं उस नजारे का भी गवाह हूँ जब घनश्याम तिवाड़ी ने सीएम वसुंधरा राजे के बाहर धरना दिया था । कई ऐतिहासिक राजनीतिक घटनाओं का चश्मदीद भी रहा हूँ तो राजनेताओ के कुरूप और कालिख से पुते चेहरे भी देखने को मिले । लेकिन ताजा घटना प्रदेश की सबसे शर्मनाक और निंदनीय घटना है ।
बहरहाल, आलाकमान ने किया वह बेहद नासमझी और घटिया कृत्य था । अजय माकन ने विधायको को बगावत के लिए उकसाया, यह और भी घटियापन था । लेकिन गहलोत ने पर्दे के पीछे रहकर जो षड्यंत्र किया, राजनीति के पन्नो में काले अक्षरों में अंकित होकर रह गया है । सचिन पायलट जब मानेसर चले गए थे तब गहलोत ने किन शब्दो का इस्तेमाल किया, दोहराने की आवश्यकता नही है । अगर पायलट की बगावत थी तो गहलोत के इस कृत्य को क्या नाम दिया जाए, बताने की आवश्यकता नही है । जिस वक्त पायलट ने बगावत कर मानेसर में डेरा डाला था, मैंने तब भी उस कृत्य को बगावत की पराकाष्ठा बताया था । और आज गहलोत ने किया, यह शोभनीय है ?
माना कि विधायको को पायलट स्वीकार नही था तो अपनी बात कहने के और भी रास्ते थे । समानांतर बैठक बुलाकर पार्टी की देशव्यापी मय्यत निकाल दी । जिस वक्त पायलट मानेसर से लौटकर आए थे तब उन्हें गले किसने लगाया था, अमित शाह या मोदी ने ? उस वक्त बागियों के सरदार को गहलोत ने गले से लगाते हुए मुस्कराकर फ़ोटो खिंचवाई थी । तब गहलोत ने बयान दिया था कि बच्चों से कभी कभी गलती हो जाती है । दरअसल, उस वक्त पायलट को गले लगाने से गहलोत की कुर्सी पर कोई आंच नही आ रही थी । इस बार उनका भड़कना, क्रोधित होना इसलिए वाजिब कहा जा सकता है क्योंकि कुर्सी पूरी तरह खतरे में पड़ गई थी । आज की तारीख में भगवान भी कुर्सी छोड़ने के लिए राजी नही होंगे ।
अंग्रेजी बोलने या अच्छी बाइट देने से कोई नेता नही हो जाता है । उसी प्रकार सर पर टोपी पहनने से भी कोई गांधी नही बन जाता है । व्यक्ति ईमानदार तभी तक है जब तक कि उसको रिश्वत खाने का मौका नही मिलता है । असली परख तभी होती है जब अवसर भी मिला और रिश्वत को हाथ भी नही लगाई । वफादारी की परख का जब मौका आया तो गहलोत ने अपना खेल दिखाते हुए अपना असली चेहरा उजागर कर दिया । गहलोत का यह कहना कि उन्हें समानांतर बैठक के बारे में कोई जानकारी नही थी । फिर यह कहना कि विधायक उनके वश में नही है । जब विधायको का वे विश्वास ही खो चुके है तो फिर उनको कुर्सी पर बैठने का अधिकार है ?
गहलोत साहब । मैं आपको बिन मांगे सलाह दे रहा हूँ कि आप बार बार बयान बदल कर खुद अपनी तौहीन मत कराइये । पिछले एक महीने के बयानों की आप स्वयं समीक्षा कीजिये , आपको खुद एहसास हो जाएगा कि कितनी बार झूठ बोला और कितनी बार सच । राजनीति में झूठ और फरेब सब जायज है । लेकिन उतना, जितना आटे में नमक । लेकिन यहां तो नमक में आटा मिलाया जा रहा है । गहलोत साहब । आप 50 साल से कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए हो । उम्र के इस पड़ाव में बगावत करना या बगावत का षड्यंत्र रचना व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ध्वस्त करता है । इतने साल तक जो प्रतिष्ठा अर्जित की है उसे सुभाष गर्ग और धर्मेंद्र राठौड़ जैसे अवसरवादियों के इशारे पर मत गंवाइए । वक्त आने पर ये लोग आपको पहचानने से भी इंकार कर देंगे ।
ठीक है कि आप कुछ दिन अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब हो सकते हो । लेकिन इससे होगा क्या ? कोई भी व्यक्ति जिंदगी भर के लिए पट्टा लिखवाकर नही लाया है । मानता हूँ कि कुर्सी जाने से बेहद तकलीफ होती है । लेकिन कुर्सी से इतना भी मोह क्यो ? अगर सचिन पायलट ने कुर्सी पाने के लिए बगावत की थी तो आप भी तो उसी का अनुशरण कर रहे हो । दोनो के बीच फर्क क्या है ? हकीकत यह है कि आप दोनों की आपसी लड़ाई की वजह से प्रशासन लकवाग्रस्त हो चुका है । अफसर लूटने में व्यस्त है तो आप दोनों लड़ने में मस्त । आप दोनों की लड़ाई के बीच बेचारी जनता बुरी तरह कराह रही है ।
गहलोत साहब । आपका बहुत ही गौरवशाली अतीत रहा है । लोग आपको राजनीति का आदर्श मानते रहे थे । ईमानदारी और संवेदनशीलता का आपको पर्याय माना जाता रहा है । आपने जनता के हित मे अनेक कल्याणकारी योजनाओं को लांच किया है । पूरे देश मे आप युवाओं के लिए एक मिसाल थे । फिर अपने ही हाथ से अपनी प्रतिष्ठा की किरकिरी क्यों ? आप एक वर्ग विशेष से घिरे हुए हो, इसलिए आपको पता नही है कि ताजा एपिसोड के बाद आपकी प्रतिष्ठा का कितना ग्राफ गिरा है । यह ग्राफ और ज्यादा गिरे, इससे पहले सम्भलने की आवश्यकता है । अन्यथा......?
सचिन साहब । आपको भी एक नेक सलाह है । गर्म गर्म खाने के चक्कर मे पहले ही आप अपना मुंह जला चुके हो । आपने ढाई साल तक जिस धैर्य और संयम का परिचय दिया है, वह काबिलेतारीफ है । काश ! ऐसा धैर्य मॉनेसर जाते वक्त भी दिखाते तो आज राजस्थान की यह हालत नही होती । राजस्थान में जो भी राजनीतिक उठापटक हुई है, उसके लिए एकमात्र आप जिम्मेदार हो । अगर आपको गहलोत से इतना ही परहेज था तो आपने डिप्टी सीएम का पद क्यो स्वीकार किया ? है आपके पास कोई जवाब ? जब इतना इंतजार किया है तो कुछ दिन और कीजिये । अन्यथा....?
बिगड़ बहुत कुछ चुका है । पार्टी की पूरी प्रतिष्ठा की फजीहत होगई है । लोगो के चेहरे से शराफत का नकाब उतर चुका है । प्रदेश की योजनाएं दम तोड़ने लगी है । कांग्रेस पार्टी की अस्थियां हरिद्वार में प्रवाहित करनी पड़े, इससे पहले दोनों गुटों को सम्भलने की आवश्यकता है । वरना आने वाली पीढ़ी किताबो में या गूगल पर ढूंढेगी तो देखने को मिलेगा कि कभी कांग्रेस पार्टी हुआ करती थी । निश्चित रूप से आज कांग्रेस संकट से बुरी तरह जूझ रही है । वक्त लड़ाई का नही, इसको सहारा देने का है । उम्मीद की जानी चाहिए कि कुर्सी से ऊपर उठकर सभी कांग्रेसजनों को एक मिसाल पेश करनी चाहिए । अन्यथा....? काँग्रेसीजन अमित शाह की जोड़तोड़ से भलीभांति वाकिफ है ।
और अंत मे .....भंवर जितेंद्र सिंह जैसे दोगले लोगो से सावधान रहने की जरूरत है । एक तरफ तो वे राहुल की दोस्ती का दम्भ भरते है । दूसरी ओर पार्टी की बगावत की आग में घी डालने का काम कर रहे है । टीकाराम जूली और दीपचंद खैरिया को समानांतर बैठक में जाने के लिए इन्होंने ही बाध्य किया था । ऐसे ही अवसरवादी लोगो की वजह से कांग्रेस तबाह और बर्बाद हुई है । जब तक ऐसे लोगो को पार्टी से बाहर नही किया जाएगा, तब तक कोई भी देवता, ईश्वर, भगवान आदि भी कांग्रेस को डूबने से बचा नही सकती है । ॐ शांति ॐ