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कांग्रेसियो को अशोक गहलोत से छुटकारा पाना होगा , जेबी संगठन बना दिया है गहलोत ने कांग्रेस को
अशोक गहलोत का अहंकार और उनकी हठधर्मिता के कारण कांग्रेस को राजस्थान में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी । इसके अतिरिक्त सचिन पायलट के प्रति इनकी उदासीनता भी हार का बहुत बड़ा कारण रहा । अगर गहलोत ऊपर मुंह करके थूकते नही तो निश्चित रूप से सत्ता पर वे ही काबिज रहते ।
हकीकत यह है कि सचिन पायलट से गहलोत हाथ मिलाकर साझा सभा करते तो जनता में एक सकारात्मक संदेश जाता । नतीजतन कांग्रेस वर्षो से चली आ रही परम्परा को समाप्त कर फिर से सत्ता पर काबिज हो जाती । एक मायने में देखा जाए तो नेहरू परिवार का पूरा कुनबा गहलोत की मनमानी के समक्ष अपने को बौना समझता रहा । नतीजा यह निकला कि गहलोत की निरकुंशता बढ़ती ही चली गई और आज कांग्रेस सड़क पर आगई । गहलोत की हठधर्मिता का खामियाजा आगामी लोकसभा चुनावों में भी भुगतना पड़ेगा ।
भारत जोड़ो यात्रा के बाद यह समझा जाने लगा कि राहुल परिपक्व होगये है और पार्टी पर उनकी पकड़ मजबूत हुई है । लेकिन ऐसा नही हुआ । पप्पू आखिर पप्पू ही साबित हुआ । गहलोत के सामने पप्पू की बोली तक नही निकलती थी । यदि राहुल पार्टी पर अपना नियंत्रण रखते तो आज कांग्रेस को शर्मिंदगी नही उठानी पड़ती । अगर राहुल अपना रुतबा दिखाते तो सचिन और गहलोत को साझा सभा करने के लिए विवश होना पड़ता । लेकिन हुआ यह कि दोनों एक दूसरे के प्रत्याशियों को निपटाने में सक्रिय रहे ।
अगर गहलोत टिकटो का सही वितरण करते तो आज कांग्रेस की फिजा ही दूसरी होती । वे सीएम बनने के ख्वाहिशमंद तो थे, लेकिन उनके लक्खनो ने निकृष्टता की तमाम सीमाए लांघ दी । गहलोत ने सचिन पायलट के व्यक्तियों को तो निपटाया ही, इसके अतिरिक्त हरीश चौधरी, दिव्या मदेरणा, इन्द्रराज गुर्जर, वेदप्रकाश सोलंकी, गजराज खटाना, रघु शर्मा, प्रताप सिंह खाचरियावास, महादेव सिंह खण्डेला, दीपेंद्र सिंह को अच्छी तरह निपटाने के लिए पैसों तक का भी भरपूर इस्तेमाल किया ।
दिल्ली का तथाकथित आलाकमान सब कुछ जानते हुए भी खामोश रहा । कहा जाता है कि पैसे वाले का पाद भी सुगन्धित होता है । सबको पैसो से उपकृत करने वाले गहलोत के सामने न तो खड़गे की कोई हैसियत है और न ही राहुल की । रंधावा और केसी वेणुगोपाल को गहलोत अपनी नोक के नीचे रखता है । प्रभारी होते हुए भी रंधावा को गहलोत से मिलने के लिए घण्टो इंतजार करना पड़ता था । रंधावा ने कांग्रेस का जितना नुकसान किया, उसकी मिसाल देना भी मुश्किल है । वे नकारा, अकर्मण्य, नासमझ और भ्रस्ट प्रभारी साबित हुए । अगर उनमे थोड़ी अक्ल होती या अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते तो गहलोत और पायलट की दोस्ती हो सकती थी । रंधावा ने दोनों को जोड़ने के बजाय तोड़ने में विश्वास किया । अगर थोड़ी सी नैतिकता बची है तो रंधावा को अविलंब अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए ।
नैतिकता थी अजय माकन में । पिछले 25 सितम्बर की घटना से आहत होकर उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दिया । उधर राष्ट्रीय अध्यक्ष होते हुए भी गहलोत के समक्ष याचक बने रहे । पोस्टरों में राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के बाद भी खड़गे का फोटो नदारद रहा । खड़गे की इतनी हिम्मत नही है कि वे इस बारे में गहलोत से कोई जवाब तलब करले । हकीकत यह है कि गहलोत कांग्रेस के लिए अब बोझ बन गए है । जादू के नाम पर इन्होंने जिंदगी षड्यंत्र को ही अंजाम दिया है । आज इसी व्यक्ति के अहंकार और भ्रस्ट क्रियाकलापों के कारण कांग्रेस का पिंडदान हो चुका है । कुछ दिन गहलोत को और मनमानी करने दी तो वे पार्टी का अंतिम संस्कार भी करने से नही चूकेंगे ।
मैंने पहले ही सचिन पायलट को आगाह कर चुका था कि उनको मिलेगा केवल बाबाजी का ठुल्लू । कांग्रेस सत्ता में आ भी जाती तो गहलोत मरते दम तक कुर्सी छोड़ने वाले थे नही । हारने के बाद भजन करने के अलावा कोई विकल्प नही है । गहलोत ने अपना बुढापा तो खराब किया ही है, हजारो नौजवानों के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ किया है । अगर डूबती कांग्रेस को बचाना है तो पनौती रूपी गहलोत को बाहर का रास्ता दिखाना ही होगा ।