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पंजाब कांग्रेस के असंतुष्ट नेता नवजोत सिंह सिद्धू की मांग पर न केवल तत्काल सुलह कमेटी का गठन किया गया बल्कि मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को दो बार कमेटी के सामने उपस्थित होने के लिए विवश होना पड़ा । जबकि असन्तुष्ट सचिन पायलट दिल्ली में केवल चक्कर काटने को विवश है ।
उधर कई बार दिल्ली के चक्कर काटने के बाद भी सचिन पायलट को आलाकमान ने एक बार भी घास नही डाली । भले ही प्रभारी अजय माकन कुछ भी बयान देते रहे हो । लेकिन हकीकत यह है कि कांग्रेस आलाकमान की पायलट से मुलाकात करने में कोई रुचि नही है । पिछली यात्रा के दौरान वे छह दिन तक आलाकमान से बुलावे का इंतजार करते रहे । मगर कोई बुलावा नही आया । यहां तक कि समय देने के बाद भी प्रियंका ने मुलाकात या फोन पर बात करना मुनासिब नही समझा । अंततः उन्हें बैरंग जयपुर लौटना पड़ा ।
सुलह के लिए पिछले दिनों कमलनाथ को नियुक्त किया गया था ताकि वे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट से बातचीत कर कोई सम्मानजनक रास्ता खोजे । लेकिन वे इस पचड़े से दूर है तथा उन्होंने सुलह के लिए कोई प्रयास नही किये । जो मांग पायलट कर रहे है, उनको गहलोत कतई मानने को तैयार नही है । पायलट अपने खेमे के छह विधायकों को मंत्री बनवाना चाहते है । जबकि गहलोत एक केबिनेट और दो राज्य मंत्री बनाने पर बेमन से राजी हुए है । कमलनाथ जानते है कि वे इस पचड़े में पड़े तो उनके गहलोत से सम्बन्ध खराब होने की संभावना है । इसलिए वे अभी तक निष्क्रिय है ।
हाल ही में दिल्ली प्रवास के दौरान पायलट ने राहुल, प्रियंका और सोनिया सहित कुछ कांग्रेसी नेताओं से बातचीत करने का प्रयास किया । लेकिन उनको कोई सफलता हासिल नही हुई । पायलट की दिल्ली दरबार मे हो रही बेकद्री से उनके समर्थकों में घोर निराशा का माहौल है । इसलिए दिन-ब-दिन उनके समर्थको की संख्या निरन्तर कमी आती जा रही है । कभी पायलट के कट्टर समर्थक रहे विश्वेन्द्र अब गहलोत की भाषा बोलने लगे है ।
अवसाद और निराशा के शिकार पायलट के समर्थक दिशाविहीन होकर रोज नए नए तमाशे करने में सक्रिय है । कभी ट्विटर पर ट्रेंड तो कभी पोस्टर वार । दरअसल पायलट के तरकश में अब कोई तीर नही बचा है । जितने तीर थे, वे सब चला चुके है । लेकिन सारे तीर फ्लॉप साबित हुए । ऐसे में हताश होना स्वाभाविक है । न आलाकमान तवज्जो दे रहा है और न ही अशोक गहलोत । पीसीसी कार्यालय में उनके लिए फिलहाल उनके लिए कोई जगह नही बची है ।
जब व्यक्ति हताशा से घिर जाता है तो वह सही और गलत फैसले करने की हालत में नही रहता है । कमोबेश यही हाल इन दिनों पायलट का है । उनको सूझ नही रहा है कि वे करे तो करें क्या ? कांग्रेस में उनकी कद्र नही । बीजेपी में जाने का कोई औचित्य नजर नही आता है । जहां तक तीसरा मोर्चा बनाने की बात है, राजनीतिक आत्महत्या के अलावा कुछ नही है । एक ऐसा स्मार्ट नेता जिसने अपनी मूर्खता और जल्दबाजी में खुद के अलावा 18 विधायकों का राजनीतिक भविष्य चौपट कर दिया ।
पायलट के पास इन दिनों कोई काम-धाम तो है नही, इसलिए किसी बहाने से विधायको से मिलने के लिए सक्रिय है । चूंकि गहलोत को अपनी ताकत का एहसास कराना था, इसलिए राजगढ़ के विधायक जौहरीलाल मीणा तथा कठूमर के बाबूलाल बैरवा के यहां बिन बुलाए पहुंच गए । मीणा की पत्नी का निधन कुछ दिन पहले हुआ था । मातम जताने की आड़ में पायलट उनके घर पहुंच गए । जबकि गहलोत के पक्के समर्थक है ।
अलवर यात्रा के दौरान कठूमर तहसील के गांव समूची गांव में पायलट तथाकथित शहीद शेरसिंह यादव के यहां श्रद्धांजलि देने के लिए गए । जबकि हकीकत यह है कि शेरसिंह की मौत हार्ट अटैक से हुई थी । उसके परिजनों ने बाकायदा पायलट को ज्ञापन सौंपकर शेरसिंह को शहीद का दर्जा देने और स्कूल का नाम शेरसिंह रखने की मांग की थी । इसी तरह भिवाड़ी में भी हार्ट अटैक से मृत्यु के शिकार हुए व्यक्ति को भी शहीद के नाम पर श्रद्धांजलि दी गई ।
कोरोना काल मे अनेक निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारों ने अपनी जान गंवाई । मीडिया को अपना सबसे बड़ा (केवल दिल्ली का मीडिया) बताने वाले पायलट ने इन पत्रकारों की मृत्यु पर न तो श्रद्धांजलि व्यक्त की और न ही ट्वीट कर संवेदना व्यक्त की । पत्रिका के आशीष का पूरा परिवार कोरोना की भेंट चढ़ गया । पहले माँ, फिर आशीष स्वयं तथा अंत मे पिता भी चल बसे । बहिन ने सभी का अंतिम संस्कार किया ।
मौत पर झूठे टसुए बहाने वाले नेताओं को चाहिए था कि वे आपदा से घिरे पत्रकारों को सांत्वना देते । लेकिन इससे फायदा क्या होता ? पत्रकार जौहरी लाल मीणा या शेरसिंह की तरह राजनीतिक इस्तेमाल वाली मशीन थोड़े ही है जिसके लिए सांत्वना के दो शब्द खर्च किये । पत्रकार केवल और केवल अपने स्वार्थों की सिद्धि का औजार मात्र है । पायलट से बढ़िया तो प्रतापसिंह खाचरियावास है जिन्होंने पत्रकारों के घर जाकर संवेदना व्यक्त करने के अलावा आर्थिक मदद की ।