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गहलोत पायलट की जंग, क्या खिलाएगी रंग, रंधावा के बदले सुर और गहलोत की चुप्पी से फिलहाल सस्पेंस बरकरार
रमेश शर्मा
राजस्थान कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के मध्य राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का अंत किस मोड़ पर जाकर होगा यह फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता। हां अगर नए एपिसोड की बात की जाए तो सचिन पायलट गहलोत द्वारा नालायक और निकम्मा कहे जाने के बावजूद भी उन्हें पिता तुल्य मानते हुए अपने आप को नियंत्रित रखने का प्रयास किया था लेकिन अचानक उनका धैर्य उस समय सीमा पार करता दिखा जब एक सप्ताह पहले जयपुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस मैं घोषणा के बाद भ्रष्टाचार के मामले में शहीद स्मारक पर मौन प्रदर्शन और धरने पर बैठ गए।
सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस ने ऐसा नहीं करने के संकेत भी दिए थे मगर पहले अपने अपने निर्णय पर कायम रहते हुए धरना दिया।। सचिन पायलट के इस नए तेवर को लेकर कांग्रेस में जयपुर से लेकर दिल्ली तक अचानक राजनीतिक सरगर्मियां तेजी से बढ़ती नजर आई। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सोशल मीडिया सहित कुछ मीडिया में भी गहलोत को बड़े कांग्रेसी नेताओं द्वारा अगले चुनाव के लिए फिट मानते हुए दिए गए बयानों से यह समझा जाने लगा कि इस बार पार्टी पायलट से कह सकती है।
इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि खुद प्रदेश कांग्रेस प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा ने भी कड़ा वक्तव्य जारी करते हुए कहा था कि राजस्थान को पंजाब नहीं बनने दिया जाएगा लेकिन उस वक्तव्य की हवा तब निकलती दिखाई दी जब दूसरे ही दिन रंधावा ने यह कह दिया कि कोई निर्णय जल्दबाजी में नहीं लिया जाएगा।। रंधावा द्वारा बयान दिए जाने के बाद और पहले रंधावा कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे के बीच एक दिन में तीन बार मुलाकात हुई। और तीनों ही मुलाकात में अलग-अलग बातें निकल कर सामने आई।। यह कहने की जरूरत नहीं की मौन व्रत के बाद उसी दिन सचिन पायलट दिल्ली चले गए वहां उनकी किस से मुलाकात हुई या नहीं हुई यह तो कोई भी सबूत के साथ नहीं कह सकता।
मगर सूत्रों के अनुसार इतना जरूर है कि मध्यस्थ बने कुछ नेता सचिन को राष्ट्रीय महासचिव बनाकर मामले का पट्टापेक्ष करने की जुगाड़ में रहे , मगर बताया जाता है कि पायलट ने उसे ठुकरा दिया। जिसके बाद गांधी परिवार के हस्तक्षेप की पालना में अब सचिन पायलट से बातचीत करने के लिए कांग्रेस के दो बड़े नेता कमलनाथ और वेणुगोपाल को जिम्मेदारी सौंपी गई है समझा जाता है कि आज इन दोनों नेताओं की पायलट के साथ बात हो सकती है।। दूसरी तरफ जयपुर से दिल्ली तक राजनीतिक सियासत गर्म होने के बावजूद भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा इस संबंध में कुछ भी नहीं कहा जाने के अलावा अपने अधीनस्थ मंत्रियों को भी इस प्रपंच में कोई टीका टिप्पणी भी नहीं करने की बात कही जाने से हुई स्थिति सस्पेंस की बनी हुई है।
कांग्रेस की राजनीति से जुड़े कुछ राजनीतिक पंडितों का मानना है कि जो भी होगा विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर गहलोत और पायलट के बीच कोई सकारात्मक निर्णय होगा। जो दोनों को माने होगा या फिर जबरदस्ती मानना भी पड़ सकता है।देखने वाली बात यह होगी कि 1 सप्ताह से अचानक बढ़ी सरगर्मियां किस नोट पर जाकर रुकती है!