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पायलट को पटखनी देने में गहलोत पूरी तरह कामयाब, कांग्रेस और गहलोत की साख को लगा बट्टा
यह तो तय था कि अशोक गहलोत किसी भी हालत में सचिन पायलट को सीएम नही बनने देंगे । लेकिन गहलोत इतनी बेदर्दी और नियोजित तरीके से रायता फैलाएंगे, इसकी उम्मीद किसी भी राजनीतिक विश्लेषक को नही थी । गहलोत की एकमात्र मंशा है कि पायलट किसी भी हालत में सीएम नही बने । वे अपने मकसद में लगभग पूरी तरह कामयाब होगये है । पायलट का बदली हुई परिस्थितियों में मुख्यमंत्री बनना लगभग असंभव होगया है । यानी दुष्ट ग्रह राहु और केतु की गिरफ्त अभी भी पायलट पर बरकरार है ।
सोनिया की ओर से पायलट को मुख्यमंत्री बनाने का फरमान जारी हुआ था । इसकी अनुपालना में पर्यवेक्षक के तौर पर मल्लिकाजुर्न खड़गे और अजय माकन जयपुर आगये थे । उन्हें उम्मीद थी सारा काम आसानी से निपट जाएगा । चूंकि गहलोत को इस बात की जानकारी मिल गई थी कि यह सारा तमाशा पायलट की ताजपोशी के लिए हो रहा है तो उन्होंने "ऑपरेशन आलाकमान की फजीहत" को अंजाम देने का अभियान प्रारम्भ कर दिया । इसी ऑपरेशन के तहत कांग्रेस विधायकों ने गहलोत के "मार्गनिर्देशन" में बगावत का बिगुल बजाकर आलाकमान की देशव्यापी फजीहत करदी ।
कल खबर थी कि माहौल पायलट के पक्ष में है और कई विधायक गुपचुप तरीके से उनसे संपर्क साध रहे है तो गहलोत के कान खड़े होगये । अगर पायलट मुख्यमंत्री बन जाते है तो गहलोत की सबसे बड़ी पराजय होती । इसलिए उन्होंने पायलट को पटखनी देने के लिए अपने खास सिपहसालारों को सक्रिय किया । अंत मे क्या हुआ, बताने की आवश्यकता नही है । गहलोत खुद तो तनोट माता के दर्शन करने चले गए । पीछे से उनकी टीम के खास सिपहसालार सक्रिय होकर "ऑपरेशन आलाकमान की फजीहत" को अमली जामा पहनाने में सक्रिय होगये ।
गहलोत की सोनिया से हुई मीटिंग के दौरान उन्होंने स्पस्ट कर दिया था कि वे सबकुछ मानने को तैयार है । लेकिन इस बात पर रजामंद नही कि पायलट को सीएम बनाया जाए । पायलट के अलावा उन्हें किसी के नाम पर ऐतराज नही है । बावजूद इसके आलाकमान की ओर से पायलट को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया । गांधी परिवार ने पिछले 45 साल से गहलोत को सबकुछ दिया । पहली बार पायलट को सीएम बनाने की मांग की थी । लेकिन गहलोत ने रायता फैलाकर यह जाहिर कर दिया कि उन्हें पायलट कदापि स्वीकार नही है ।
गहलोत अपने मकसद में तो कामयाब होगये । लेकिन इस ऐपिसोड के बाद आलाकमान की तो फजीहत हुई है, इसके अलावा स्वयं गहलोत की प्रतिष्ठा पर भी जबरदस्त कलंक लग गया है । उनकी इमेज यह थी कि वे गांधी परिवार के सबसे विश्वस्त और वफादार सिपाही है । वफादारी कैसे होती है, यह कल उन्होंने जाहिर कर दिया । दरअसल सत्ता बड़ी खराब चीज होती है । जब किसी से कुर्सी छिनती है तो अच्छे अच्छे वफादारों की भी वफादारी डगमगाने लगती है । गहलोत तभी से खिन्न है जब राहुल गांधी ने उन्हें सीएम का पद छोड़ने को कहा था । सीएम की कुर्सी से उन्हें बेहद लगाव है । इसलिए जब उनके पास से कुर्सी छिनने लगी तो उनका विचलित होना स्वाभाविक था ।
मैंने 21 व 23 सितम्बर को स्पस्ट रूप से लिख दिया था कि गहलोत किसी भी परिस्थिति में पायलट को मुख्यमंत्री नही बनने देंगे । लेकिन इसके लिए वे बुरी तरह से इतना रायता फैलाएंगे, इसकी बिल्कुल भी उम्मीद नही थी । लोग उनको जादूगर कहते है । लेकिन कल उन्होंने जिस नियोजित तरीके से योजना को अंजाम दिया, इससे उनकी जादूगर वाली छवि पर कालिख पुत गया है । जनता में सन्देश गया है कि वे जादूगर नही, बहुत बड़े षड्यंत्रकरी है ।
भले ही गहलोत कितनी भी सफाई पेश करे कि विधायक उनके काबू से बाहर है । लेकिन इस हकीकत को भी कोई नजरअंदाज नही कर सकता है कि पूरी स्क्रिप्ट के राइटर भी वही है और निर्देशक भी । बदली हुई परिस्थितियों में पायलट का राजनीतिक भविष्य तो चौपट हो ही गया । इसके अलावा गहलोत के लिए भी सत्ता की कुर्सी पर बैठे रहना अब इतना आसान नही होगा । अगली बार सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही कांग्रेस की भी ऐतिहासिक फजीहत हुई है । निसन्देह है इसका लाभ बीजेपी के अलावा अन्य राजनीतिक दलों को भी मिलेगा ।