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सरकार ने अपने कदम वापिस खींच लिए वरना सरकार के गले की हड्डी बन जाती देशद्रोह की धारा!
राज्य सरकार ने देशद्रोह की धारा 124 ए में विधायकों को जारी नोटिस इसलिये वापिस लिया, क्योकि राष्ट्रीय जांच एजेन्सी (एनआईए) की ओर से शीघ्र ही जांच करने वाली थी। एनआईए जांच प्रारम्भ करती, उससे पहले ही राज्य सरकार ने देशद्रोह की धारा वापिस ले ली है।
पता चला है कि गृह मंत्रालय द्वारा एनआईए के महानिदेशक वाइसी मोदी को यह प्रकरण अध्ययन के लिए भेजा गया था। 1984 के असम-मेघालय कैडर के आईपीएस अधिकारी ने अध्ययन के बाद इस प्रकरण की जांच करने को अपनी स्वीकृति प्रदान की। गृह मंत्रालय अधिसूचना जारी करता, उससे पहले ही राज्य सरकार ने देशद्रोह की धारा को वापिस ले लिया।
संसद द्वारा 31 दिसम्बर 2008 में पारित अधिनियम के तहत गठित राष्ट्रीय जांच एजेंसी को देशद्रोह सहित आठ प्रकार के मामलों की जांच का अधिकार हासिल है। इसके लिए संबंधित राज्य से स्वीकृति की आवश्यकता नही है । सीबीआई और एनआईए में यही अंतर है कि सीबीआई जांच के लिए संबंधित राज्य की मंजूरी आवश्यक है। जबकि एनआईए के लिए किसी मंजूरी की जरूरत नही होती। अगर एनआईए द्वारा जांच प्रारम्भ की जाती तो केंद्र का दखल बढ़ जाता।
नोटिस तो वापिस होना ही था
राज्य सरकार ने एसओजी द्वारा असंतुष्ट विधायकों को जारी धारा 124 ए (राष्ट्रद्रोह) का नोटिस वापिस लेने का निर्णय लिया है। राज्य सरकार का कहना है कि विधायकों पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा नही बनता है। राज्य सरकार ने तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट, विश्वेन्द्र सिंह तथा रमेश मीणा सहित कई लोगों को यह नोटिस जारी किया था।
मैंने 13 जुलाई, 20 को ही सोशल मीडिया के जरिये साफ शब्दों में कहा था कि राज्य सरकार को यह नोटिस गौण अथवा वापिस लेना पड़ेगा। राज्य सरकार ने आज मेरे दावे पर मोहर लगादी है।
राज्य सरकार को अब एसओजी के तत्कालीन एडीजी अनिल पालीवाल तथा अपर पुलिस अधीक्षक हरिप्रसाद को चार्ज शीट जारी करनी चाहिए जिन्होंने ऐसी कठोर धारा लगाकर विधायको को मानसिक रूप से परेशान किया। पता चला है कि असंतुष्ट विधायक भी एसओजी सहित राज्य सरकार के खिलाफ मानसिक प्रताड़ना और मानहानि का मुकदमा दर्ज करवा सकते है।