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इस्तीफे के बाद हेमाराम का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू: मैं मंत्री पद का भूखा नही हूँ - हेमाराम चौधरी
महेश झालानी
कांग्रेस के असन्तुष्ट नेता हेमाराम चौधरी ने इस बात का खंडन किया है कि उनकी मुख्यमंत्री या राजस्व मंत्री से कोई नाराजगी है। मुख्यमंत्रीजी हमारे नेता है। इस लिहाज से उनका सम्मान करना प्रत्येक कांग्रेसी विधायक का बुनियादी दायित्व है । जहां तक हरीश चौधरी से अदावत की बात है, मेरे किसी से भी खराब सम्बन्ध नही है। यह कहना है हेमाराम चौधरी का। उन्होंने कहाकि हरीश जी मेरे छोटे भाई के समान है तथा वे मेरा पूरा सम्मान देते है। ऐसे में अदावत की बात करना बेमानी और कल्पित है।
इस्तीफा देने के बाद खुद हरीशजी तथा पीसीसी अध्यक्ष गोविंदसिंह डोटासरा का फोन आया था। दोनों यही जानना चाहते थे कि आखिर मैंने अचानक इस्तीफा क्यो दिया। मुझे न तो मंत्री पद का लालच है और न ही मैंने व्यक्तिगत कार्य को लेकर इस्तीफा दिया। मैं केवल इतना चाहता हूँ कि मेरे विधानसभा क्षेत्र गुढ़ामलानी में समुचित विकास हो। इस क्षेत्र की जनता ने मुझे 6 बार चुनकर विधानसभा भेजा है। अगर मैं उनकी कसौटी पर खरा नही उतरता हूँ तो व्यर्थ है विधायक बने रहना। इसी को दृष्टिगत रखते हुए मुझे इस्तीफा देने के लिए बाध्य होना पड़ा।
इस्तीफा देने के बाद हेमाराम चौधरी ने विस्तार से हर मुद्दे पर खुलकर चर्चा की और अपना पक्ष रखा। उन्होंने इस बात को भी बेहूदा बताया कि इस्तीफा सचिन पायलट के इशारे पर दिया गया। हकीकत यह है कि उन्हें इस्तीफा भेजने के बाद इस बात का पता लगा। मेरे घर वालो तक को इस्तीफे की भनक नही थी। मैं भावुक और सवेदनशील व्यक्ति हूँ। जब मुझे लगा कि मैं क्षेत्र की जनता के प्रति न्याय नही कर पा रहा हूँ, मैंने बिना सोचे समझे विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफा भिजवा दिया। निर्णय अब अध्यक्ष को करना है। मैं पहले भी क्षेत्रीय जनता के प्रति समर्पित और आस्थावान था और विधायक नही रहते हुए भी वही समर्पण भाव रहेगा।
इस्तीफे के बाद हेमाराम से डोटासरा, हरीश चौधरी तथा सचिन पायलट ने ही बात की है। अजय माकन या मुख्यमंत्री ने उनसे अभी तक कोई बात नही की है। पायलट ने हेमाराम से अचानक इस्तीफे का कारण पूछा। उन्होंने कहाकि इस्तीफा देने से पूर्व एक बार मुझसे बात तो कर लेते। हेमाराम का यही जवाब था कि वे जो ठान लेते है, उसे पूरा करके ही मानते है। हरीश चौधरी और पीसीसी चीफ को स्पस्ट तौर बता दिया कि क्षेत्रीय जनता विकास कार्यो से महरूम है। जनता के बुनियादी कार्य मसलन बिजली, पानी, चिकित्सा, नरेगा आदि के कार्य उचित मात्रा में नही हो रहे है। लिहाजा मैंने इस्तीफा देना मुनासिब समझा।
यदि मुख्यमंत्री फोन कर आपके कार्य करने का भरोसा दे तब ? यह पूछने पर हेमाराम ने कहाकि यह काल्पनिक सवाल है। जब फोन आएगा, तब विचार किया जाएगा। अगर मुख्यमंत्री आपको मंत्री बनाने का भरोसा दे तो क्या इस्तीफा वापिस ले लेंगे ? जवाब देते उन्होंने कहाकि मैं मंत्री पद का लालची नही हूँ और न ही मैंने ब्लैकमेल करने की गरज से इस्तीफा दिया है । मै भावुक हूँ अवश्य हूँ। तत्कालीन ऊर्जा मंत्री चन्द्रभान ने मेरे क्षेत्र में टांसफार्मर लगाने से इनकार कर दिया तो मैं विधानसभा में रोने लग गया। भूखा अवश्य हूँ, लेकिन काम कराने का। मरते दम तक यही लालसा रहेगी कि क्षेत्र का ज्यादा से ज्यादा विकास हो।
इस्तीफे पर पेंच
विधानसभा नियमों के अनुसार ईमेल या व्हाट्सएप्प से भेजे इस्तीफे के सम्बंध में एक्सपर्ट की अलग अलग राय है। कुछ लोगो का मानना है कि ईमेल से भेजे इस्तीफे पर अध्यक्ष निर्णय लेने के लिए बाध्य है। जबकि पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाड़ी का कथन है कि जब तक सम्बन्धित विधायक खुद अध्यक्ष के समक्ष उपस्थित होकर स्वलिखित इस्तीफा प्रस्तुत नही करता, तब तक अध्यक्ष को निर्णय लेने का कोई अधिकार नही है। पश्चिम बंगाल में अध्यक्ष ने सुधेन्दु को व्यक्तिशः बुलाया। इसके बाद ही इस्तीफा स्वीकार किया गया। जब इस बारे में हेमाराम का ध्यान आकर्षित किया तो उन्होंने कहाकि अध्यक्ष उन्हें तलब करेंगे तो वे उपस्थित होने के लिए तैयार है।