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तकदीर हो तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जैसी!
1 अक्टूबर को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत ने राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन आरसीए अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल कर दिया है। वैभव का निर्विरोध अध्यक्ष बनना तय है। मतदान चार अक्टूबर को प्रस्तावित है। लेकिन रामेश्वर डूडी के पीछे हट जाने से जाहिर है कि वैभव ही आरसीए के अध्यक्ष बनेंगे। वैभव ने गत लोक सभा का चुनाव जोधपुर से लड़ा था, लेकिन सांसद नहीं बन सके। तब वैभव की उम्मीदवारी और हार को लेकर मुख्यमंत्री पर भी सवाल उठे। यहां तक प्रचारित किया गया कि कांग्रेस के तब के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी गहलोत की भूमिका से नाराज हैं। लेकिन इसे अशोक गहलोत की तकदीर ही कहा जाएगा कि लाख विरोध के बाद भी बेटे को आरसीए का अध्यक्ष बनवा रहे हैं। यदि कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व गहलोत से नाराज होता तो वे अपने पुत्र को क्रिकेट की राजनीति में नहीं फंसाते।
वैभव को अध्यक्ष नहीं बनने के लिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम सचिन पायलट के समर्थक माने जाने वाले क्रिकेट के दिग्गज नेता रामेश्वर डूडी ने पूरी ताकत लगा दी। स्वयं को अध्यक्ष पद का दावेदार घोषित करते हुए यहां तक कहा कि वैभव गहलोत के लिए सत्ता का दुरुपयोग हो रहा है। डूडी ने जिस तरह क्रिकेट की राजनीति में विरोध का झंडा उठाया उससे साफ जाहिर था कि कांग्रेस की राजनीति की लड़ाई सड़कों पर आ गई है। लेकिन इसे अशोक गहलोत की तकदीर ही कहा जाएगा कि उनके विरोधी अपने आप पस्त हो गए। लोकसभा का चुनाव हारने के बाद भी वैभव गहलोत आरसीए के अध्यक्ष बनने जा रहे हैं। जबकि प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट बार बार कह रहे हैं कि कांग्रेस के जिन कार्यकर्ताओं ने पांच साल खून पसीना बहाकर प्रदेश में सरकार बनवाई है उन्हें पहले सम्मान मिलना चाहिए।
सूत्रों की माने तो पायलट के विरोध के चलते ही मंत्रिमंडल का विस्तार भी टला है। इसमें कोई दो राय नहीं कि अशोक गहलोत राजनीति के मजे खिलाड़ी है और समय के साथ अपने विरोधियों को जवाब देते हैं। सब जानते हैं कि सचिन पायलट के समर्थक अभी तक भी गहलोत को सीएम के पद पर पचा नहीं पा रहे हैं। समर्थकों को लगता है कि मुख्यमंत्री की जिस कुर्सी पर पायलट का हक था, उस पर गहलोत बैठे हुए हैं। पायलट ने भी अपने इस दर्द को कई बार सार्वजनिक तौर पर कहा है। पायलट का कहना है कि जब राजस्थान में कांग्रेस के मात्र 21 विधायक थे, तब उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व दिया गया। भाजपा के शासन में पांच साल संघर्ष किया इसलिए प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी है। असल में मुख्यमंत्री बनने के बाद गहलोत ने जिस तरह से सरकार को मजबूती है उससे भी पायलट नाखुश हैं। मालूम हो कि हाल ही में बसपा के सभी छह विधायकों को कांग्रेस में शामिल किया गया है, लेकिन ऐसे विधायकों ने पन्द्रह दिन गुजर जाने के बाद भी कांग्रेस की सदस्यता नहीं ली है। यह अपने आप में अजीब बात है कि जिन विधायकों को विधानसभा के अध्यक्ष ने कांग्रेस विधायक के तौर पर मान्यता दे दी उन विधायकों के पास कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता नहीं है।
जोशी की रणनीति सफल
वैभव गहलोत के आरसीए का अध्यक्ष बनने में अशोक गहलोत की तकदीर का खेल तो है ही इसके साथ ही आरसीए के मौजूदा अध्यक्ष सीपी जोशी की भी रणनीति रही है। सीपी जोशी शुरू से ही प्रयासरत थे कि वैभव गहलोत को आरसीए का अध्यक्ष बनाया जाए। लेकिन कांग्रेस के ही नेता रामेश्वर डूडी के मैदान में कूद पडऩे से कई समस्याएं खड़ी हो गई। लेकिन जोशी ने जो रणनीति बनाई उसकी वजह से अब डूडी को पीछे हटना पड़ा है। सवाल यह भी है कि जिस तरह से डूडी को हार का सामना करना पड़ा, उसे डूडी किस तरह पचाएंगे? भाजपा के शासन में डूडी ने ही विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता की भूमिका निभाई थी, लेकिन गत विधानसभा के चुनाव में डूडी बीकानेर से हार गए। यदि डूडी जीतते तो आज कांग्रेस सरकार में केबिनेट मंत्री होते। भले ही डूडी विधायक का चुनाव हार गए, लेकिन उम्मीद थी कि कांग्रेस की सरकार बनने पर उन्हें किसी राज्यस्तरीय संस्था का अध्यक्ष बनाकर मंत्री पद की सुविधाएं दी जाएंगी, लेकिन नौ माह गुजर जाने के बाद भी डूडी को लाभ कोई पद नहीं मिला है।