अरविन्द चोटिया
बाड़मेर में बीजेपी के दावेदारों के संदर्भ में चर्चा के दौरान एक दिलचस्प कहावत सुनने को मिली। कहावत है ‘मढ़ी छोटी, बाबा घणा’। आगे बढ़ता गया तो यह कहावत हर जगह अलग-अलग पार्टी के लिए मुफीद बैठती गई। सबसे मजेदार तो ये है कि जहां जो पार्टी हार रही है या लगातार हार रही है, वहां उसके बाबाओं यानी दावेदारों की संख्या ज्यादा है।
बाड़मेर में ही बीजेपी पिछले तीन चुनाव हार चुकी है लेकिन यहां बीजेपी के बड़े-बड़े दावेदार ही 5-6 से ज्यादा हैं। केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी, पूर्व सांसद कर्नल सोनाराम, प्रियंका चौधरी, मृदुरेखा चौधरी, रूपाराम आदि-आदि।
नागौर में कांग्रेस पिछला चुनाव हार गई थी। अब यहां हरेंद्र मिर्धा, हबीबुर्रहमान, सहदेव चौधरी सहित कोई 29 दावेदार हैं। जयपुर की फुलेरा विधानसभा सीट से कांग्रेस पिछले बीस साल से लगातार हार रही है। लेकिन कांग्रेस के टिकट के दावेदार यहां भी पूरे 28 हैं।
सबसे मजेदार आप सीकर की दांतारामगढ़ सीट को मानेंगे या जयपुर की चौमूं को, यह फैसला आपको करना है। सीकर की दांतारामगढ़ सीट को बीजेपी अपनी स्थापना के बाद कभी नहीं जीत पाई। यहां से बीजेपी ने गजानंद कुमावत को प्रत्याशी घोषित कर दिया है लेकिन उनके अलावा 24 दावेदार और भी थे, जिनके मन में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने की इच्छा रह ही गई।
और चौमूं, यहां पिछले दो चुनाव से बीजेपी के रामलाल शर्मा चुनाव जीत रहे हैं लेकिन अखबार की सुर्खियां बनी थीं यहां से कांग्रेस के 109 दावेदार। इतने पर ही बात खत्म हो जाती तो बात ही क्या होती। इसके बाद पांच और दावेदार सामने आए बताए। अब यहां से कांग्रेस की टिकट के दावेदार हैं 114।
इस पूरी कहानी का मजेदार पहलू यह है कि जिन दावेदारों को टिकट नहीं मिलती, उनमें से सबसे तगड़े दावेदार या तो दूसरी पार्टी का दामन थामते हैं या निर्दलीय ही मैदान में आकर अपनी दमदारी दिखाते हैं।
आपकी जानकारी में इस तरह के जो भी विधानसभा क्षेत्र हैं वहां की जानकारी साझा कीजिए।