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राजस्थान सियासी संग्राम का नया अध्याय शुरू: आखिर ससुर काम आया दामाद के, घमासान के साथ फिर होगी बगावत
महेश झालानी
जब मैंने यह लिखा कि दुनिया की कोई भी अदालत अशोक गहलोत को कुर्सी से नही हटा सकती है। साथ ही यह भी लिखा था कि सचिन पायलट को अन्ततः समझौता करना पड़ेगा। इसके अलावा इनके पास कोई विकल्प नही है। उस वक्त लोगो ने मुझे गहलोत का चमचा बताते हुए पायलट का विरोधी करार दिया था। बहरहाल ! कुछ भी हो, अक्षरशः वही हुआ, जो मैंने लिखा था।
मैं कोई भविष्यवक्ता नही हूँ और न ही मैंने कोई तुक्केबाजी की थी। एक विश्लेषक के नाते वही परोसा, जो मुझे दिखाई दे रहा था। पायलट आज कितनी भी मासूमियत के साथ झूठ बोल ले। लेकिन हकीकत यह है कि वह मुख्यमंत्री बनने की गरज से जयपुर छोड़कर हरियाणा भागे थे। सबकुछ पहले से तय था। परंतु अपने वादे के मुताबिक सचिन 30 विधायकों का बंदोबस्त नही कर पाए।
भाजपा ने मरे सांप को गले मे डालने से इनकार कर दिया। भाजपा के दरवाजे सचिन और उसके साथियों के लिए बंद होगये। सचिन डोर बेल बजाते रहे, लेकिन भाजपा ने अपना दरवाजा खोलना मुनासिब नही समझा । अंततः बुद्धू की भांति झूठ के पुलिंदों के साथ वापिस जयपुर लौट आये। कांग्रेस की स्थिति आज धर्मशाला की मानिंद होगई है। कोई कभी भी जा सकता है और वापिस लौटने पर फूल मालाओं के साथ स्वागत भी होता है। ऊपर से तुर्रा यह है कि सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नही कहा जाता है।
सचिन जैसे व्यक्ति जिसने एक माह तक पार्टी का जमकर बाजा बजाया, कोर्ट में घसीटने की टुच्ची हरकत की और सौ विधायको की बाड़ेबंदी कराकर करोड़ो रूपये का पलीता लगाया। ऐसे व्यक्ति को भूला कहा जा सकता है ? कभी नही। ऐसे लोग जयचन्द की श्रेणी में आते है। अगर पार्टी इन जयचन्दों को गले लगाती रही तो कांग्रेस पार्टी को अगले चुनाव में रोने के लिए मजदूर भी नही मिलेंगे।
सचिन की सबसे बड़ी खासियत है कि अपनी आकर्षक मुस्कराहट तथा मासूमियत से ये मन मे छिपे शैतान को उजागर नही होने देते है। हकीकत यह है कि इस मासूम चेहरे के पीछे एक शैतान छिपा हुआ है जो अपने स्वार्थ के वशीभूत उस पार्टी की भी बेरहमी से हत्या कर सकता है जिसने उसे भारी इज्जत बख्शी। सही मायनों में कांग्रेस को भाजपा या अमित शाह से उतना खतरा नही है जितना सचिन जैसे ढोंगी और फरेबियों से है।
सचिन पार्टी में लौट तो गए है। लेकिन तेवर वही है। कुर्सी मांगना बुरी बात नही है। परंतु इसके लिए धैर्य भी जरूरी है। विधानसभा के परिणाम आने के साथ ही मुख्यमंत्री की कुर्सी मांगने के लिए उस वक्त भी बगावत पर उतर आए। जैसे तैसे डिप्टी सीएम पद के लिए राजी किया गया तो मंच पर कुर्सी को लेकर मचल पड़े। गहलोत के खिलाफ बगावत का बिगुल तो उसी दिन बज गया था। लेकिन तब गहलोत ने अपना धैर्य नही खोया। इसका नतीजा यह हुआ कि अपनी ही पार्टी का अंतिम संस्कार करने के लिए सचिन भाजपा से भी हाथ मिलाने से भी नही चुके।
मीडिया को अपनी मोहक मुस्कराहट से प्रभावित करने वाले सचिन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिये झूठ पर झूठ बोला। सचिन का कथन था कि उन्होंने कभी भी पार्टी या नेताओ के खिलाफ कुछ नही बोला। अगर यह बात है तो उन्होंने यह बयान क्यों दिया कि गहलोत सरकार अल्पमत में आगई है। इससे घातक बयान और कोई हो सकता है ? हकीकत यह है कि सचिन को जितने ओछे हथकंडे अपनाने थे, उसने आजमाए। जब चारो ओर से पराजय होने लगी तो उसके पास गिड़गिड़ाने के अलावा कोई चारा नही था।
अशोक गहलोत अच्छे प्रशासक नही है। उन्होंने अफसरों का मंत्रियो के खिलाफ इस्तेमाल भी किया होगा। देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करना भी गैर वाजिब था। इसके लिए सचिन पायलट एन्ड कंपनी आज की तरह पहले भी प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर अपनी नाराजगी का इजहार कर सकती थी। या फिर यह कंपनी आलाकमान से मुलाकात करती। अगर उनकी सुनवाई नही होती, तब हरियाणा सरकार के टुकडे तोड़ने चाहिए थे।
जब बीजेपी ने अपने सारे रास्ते बंद कर दिए तो मजबूरीवश सचिन को कहना पड़ा कि वे बीजेपी में नही जा रहे है। तीसरा मोर्चा या नया दल बनाने की हैसियत सचिन में थी नही । इसके पास घर वापिस लौटने के अलावा कोई चारा नही था। बहुमत गहलोत के पास था, इसलिए कोई भी अदालत उनको कुर्सी से बेदखल कर नही सकती थी। इसलिए मैंने दृढ़तापूर्वक विषम स्थितियों में भी सचिन के लौटने व गहलोत की कुर्सी सुरक्षित रहने का दावा किया था।
इस पूरे एपिसोड में सचिन तो एक्सपोज हुए ही, इसके अलावा कांग्रेस आलाकमान की बेवकूफी भी उजागर होकर रह गई। यह साबित होगया है कि पार्टी में संकट को त्वरित गति से निपटाने की योग्यता तथा क्षमता नही है। अगर अस्तुनष्ट विधायक सचिन के कपड़े फाड़ने पर आमादा नही होते तो यह मामला अभी और लटक सकता था। विधायकों का मानना था कि मानेसर में फोकट की रोटी तोड़ने से अब कुछ नही होने वाला है। विधानसभा में गहलोत बहुमत साबित करने के साथ साथ उनको अयोग्य साबित करवा देंगे।
इससे असन्तुष्ट विधायक आतंकित हो गये। नतीजतन सचिन खेमे में जब बिखराव तथा निराशा का माहौल उतपन्न होने लगा तो पायलट एकाएक सक्रिय हो गये। कल तक जो सचिन किसी का फोन उठाने से गुरेज करते थे, वह एकाएक सक्रिय हो गया। पहले अपने ससुर फारुख अब्दुल्ला के आगे हाथ जोड़े। तत्पश्चात केसी वेणुगोपाल को सक्रिय किया गया। अगर आलाकमान पहले ही सक्रिय हो जाता तो ना पार्टी की किरकिरी होती और न ही सोनिया गांधी की। फिलहाल युद्धविराम हुआ है। इंटरवेल के बाद की फ़िल्म अभी बाकी है।