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राजस्थान में निरंजन आर्य दे रहे है नियुक्तियों की सूची को फाइनल टच, काणी के ब्याह में कौतक ही कौतक
महेश झालानी
लगता है अंसतुष्ट और अशोक गहलोत के प्रति समर्पित विधायको के भाग्य में अभी मंत्री या लाभ के पद का फायदा उठाना नही लिखा है । विधायक पिछले काफी समय से इंतजार में थे कि उन्हें मंत्री नही तो किसी बोर्ड अथवा निगम का चैयरमैन अवश्य बना दिया जाएगा । शायद यह प्राक्रिया शीघ्र पूरी हो भी जाती । लेकिन पंचायत चुनाव परिणामों ने सब गुड़ गोबर कर दिया है । मंत्रिमंडल और नियुक्ति की प्राक्रिया अब और ज्यादा खिसकने की संभावना उत्पन्न होगई है । कहावत है "काणी के ब्याह में कौतक ही कौतक । यही कौतक विधायकों के साथ भी हो रहा है ।
जब भी उप चुनाव या अन्य स्थानीय निकायों के चुनाव होते है, परिणाम अक्सर सत्तारूढ़ दल के पक्ष में रहते है । लेकिन पंचायत चुनाव परिणाम एक तरह से कांग्रेस पार्टी के लिए अलार्म है । इन परिणामो ने यह तो जाहिर कर दिया है कि जनता में गहलोत सरकार के प्रति गहरी नाराजगी है और मंत्री के कामकाज से लोग नाखुश है । अशोक गहलोत और शांति धारीवाल के अलावा कमोबेश सभी मंत्री जनता से परे हटकर अपनी जेब भरने में सक्रिय है । जनता से इनका जुड़ाव समाप्त सा होगया है । परिणामतः लोगों ने कांग्रेस को धूल चटाकर अपने क्रोध का इजहार कर दिया है ।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 8 सिविल लाइंस में सिमटकर रह गए है । उनको पता ही नही है कि मंत्रिमंडल के सदस्य किस तरह लूटपाट और मनमानी कर रहे है । चारो तरफ अराजकता का सा माहौल है और प्रशासन बेपटरी पर चलने को मजबूर है । मंत्रियों की तरह अफशरशाही भी बेलगाम होकर मनमानी पर उतारू है । मुख्यमंत्री के आदेश तक की क्रियान्विति करने में भी अफसर रोड़े अटका रहे है । प्रशासन पूरी तरह अफसरों के चंगुल में आकर कराह रहा है । मंत्री तबादलों और टेंडरों तक सीमित है ।
अफशरशाही की मनमानी का एक उदाहरण ही काफी है । करीब दो माह पहले मुख्यमंत्री ने वरिष्ठ पत्रकार योजना की राशि 5 से बढ़ाकर 10 हजार रुपये प्रति माह करने का निर्देश दिया था । लेकिन वित्त सचिव अखिल अरोड़ा ने इसमे घोंचे लगाकर अपनी मनमानी का परिचय दिया है । जहाँ तक मुख्य सचिव निरंजन आर्य का सवाल है, अफसर उन्हें पीसीसी चीफ के रूप में संबोधित करते है । लोग इन्हें अफसर से ज्यादा राजनेता मानते है । वैसे भी आर्य को तीन साल बाद कांग्रेस पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ना ही है ।
राजनीति के चाणक्य अशोक गहलोत बखूबी जानते है कि मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों के बाद असन्तोष और बढ़ने की संभावना है । अभी तक निष्ठावान और सचिन पायलट समर्थक विधायक मंत्री आदि बनने की आस में खामोश बैठे है । जैसे ही मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ और जो मंत्री नही बन पाए, वे ही गहलोत के खिलाफ बगावत का झंडा उठा लेंगे । वफादार विधायक भी अपनी वफादारी का मुवावजा चाहते हैं तो सचिन के साथ भाजपा का दरवाजा खटखटाने वाले लोग भी मंत्री बनने की उम्मीद में कई महीनों से नए कपड़े सिलाए बैठे है ।
क्या होगा और कौन मंत्री बनेगा, यह तो मुख्यमंत्री ही जानते है । लेकिन यह तयशुदा है कि सचिन पायलट संमर्थक विधायको को निराश ही होना पड़ सकता है । सचिन के साथ 18 विधायक इसलिए भाजपा में जाने के लिए मानेसर भागे थे ताकि वे और ज्यादा ताकतवर बन जाये । लेकिंन छब्बे जी बनने चले लोग दुबे जी बनकर लौट आये । रमेश मीणा और विश्वेन्द्र सिंह को मंत्री पद तथा सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री व पीसीसी चीफ का पद गँवाना पड़ा । कहावत है कि स्याना कौवा गू खाता है । कमोबेश यही हाल सचिन और उनके सर्मथकों का हुआ ।
एक तो पार्टी से गद्दारी और ऊपर से मंत्री पद । क्या यह ब्लेकमेलिंग नही है ? बगावत कर मानेसर जाने वाले सचिन पायलट ने यह तो जाहिर कर दिया कि कुर्सी हथियाने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते है । कांग्रेस के प्रति समर्पण और बार्डर का सिपाही बताना केवल ढ़ोंगबाजी के अलावा कुछ नही है । अगर अमित शाह इन बागियों के लिए भाजपा के दरवाजे खोल देते तो बार्डर के ये सिपाही आज भाजपा की शान में कसीदे पढ़ते हुए कांग्रेस को सबसे नकारा और घटिया पार्टी बताते । बेचारे सचिन पायलट खुद तो डूबे ही, विश्वेन्द्र सिंह, हेमाराम तथा दीपेंद्र सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं का भी बुढापा खराब कर दिया । आज ये गहलोत से नजर मिलाने के भी काबिल नही है । हेमाराम और दीपेंद्र को गहलोत ने ही मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष बनाया था ।
पंचायत चुनाव परिणामो ने सबकी कलई खोलकर रख दी है । सचिन पायलट की भी और हेमाराम व दीपेंद्र सिंह की भी । गहलोत के खास सिपहसालार रघु शर्मा व महेन्द्र चौधरी आदि भी बुरी तरह एक्सपोज हो चुके है । इन परिणामों के बाद मुख्यमंत्री सूची में काफी फेरबदल कर सकते है । अगर वफादारों को उचित स्थान नही मिला तो वे वफादारी का लबादा हटाकर गहलोत के खिलाफ भी मोर्चा खोल सकते है । राजनीति में वफादारी और मुखालफत स्थायी नही होते ।
बहरहाल राजनीतिक नियुक्ति की सभी तैयारी हो चुकी है । सूची भी को अंतिम रूप दिया जा चुका है । फाइनल टच मुख्य सचिव कम राजनेता निरंजन आर्य दे रहे बताए । चर्चा है कि राजनीतिक नियुक्तियों में आर्य की प्रमुख भूमिका रहेगी । वे अफसरशाही से ज्यादा राजनीति में ज्यादा रुचि रखते है और उनकी राजनीतिक पकड़ भी मजबूत बताई जाती है । कुछ भी हो, इस साल मंत्रिमंडल का विस्तार या राजनीतिक नियुक्ति होगी, इसकी सम्भवना बहुत ही कम है ।