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पायलट,पुण्यतिथि और पश्चाताप, क्या पायलट की नई उडान संभव?
कोई इन्सान ऐसा नही जो दगा नहीं करता,
समय भी किसी के साथ सदा नहीं चलता ।
लोग फिजूल कोसते हैंं एक-दूजे को,
पल का सांस है, पल का पता नहीं रहता।
भले ही हाईकमान ने हाल ही यह कह दिया कि गहलोत और सचिन आगामी विधानसभा चुनाव मिल कर लड़ेंगे, लेकिन ऐसे आसार दूर तक नजर नही आ रहे, अब कुछ अलग ही समाचार तेजी से वायरल हो रहे हैंं कि सचिन शीघ्र ही अपनी नई पार्टी की घोषणा कर सकते हैं ।यह असंभव भी नही है , क्योंकि मौजूदा हालात इसी मोड पर पहुंच गए हैंं ।राजस्थान के जाने-माने पत्रकार महेश झालानी, सन 80 से 2000 तक के दो दशक तक राजस्थान के राजनीतिक जगत में इनकी तूती बोलती थी, वे लम्बे समय तक " राजस्थान पत्रिका "से जुडे रहे ।जयपुर के वयोवृद्ध पत्रकार झालानी जी का एक दौर में खासा दबदबा था ।आज जो पत्रकारिता के क्षेत्र में बुजुर्ग हो गए हैंं, वे महेश झालानी जी को बखूबी जानते होंगे ।यह उस हस्ती का नाम है जिन्होंने सन 1980 से लेकर अब तक अनेक धुरंधर राजनीतिज्ञों के कसीदे लिखे हैं ।सीएम से लेकर सांसद तक और विधायक सेलेकर कार्यकर्ता तक, बची पत्रकारिता तो उसमें नई कोंपलो को छोड दें तो शेष सभी उनकी पत्रकारिता के कायल हैं ।
आज ही गहलोत और सचिन विवाद को लेकर उनकी एक पोस्ट मुझे मिली जिसमें उन्होंने सचिन को लेकर 2021 में लिखी अपनी पोस्ट को भी शेयर किया ।दोनों के विवाद को लेकर जो मैं लिखता आ रहा हूं वह झालानी जी की पकड के इर्द-गिर्द ही है ।2021 की और अब की अपनी पोस्ट में उन्होंने भी साफ-साफ लिखा है कि सचिन गलत लोगों के गाए-गाए चल कर बहुत-कुछ खो चुके हैंं ,वे अब भी नहीं संभाले तो कुछ भी नही बचेगा ।भले ही आलाकमान ने भरोसा दे दिया हो कि उन्हें सम्मानजनक भूमिका मिलेगी और अगला विधानसभा चुनाव सचिन और गहलोत मिल कर लड़ेंगे ।लेकिन पायलट की भूमिका अनिर्णित है ।एक सप्ताह हो गया है, इधर सचिन के अल्टीमेटम समय को भी निकले एक सप्ताह हो रहा है । 11 जून राजेश पायलट,अर्थात सचिन के पिता की पुण्यतिथि है । अब सचिन को निर्णायक तौर पर एक नाव पर सवार हो जाना चाहिए । कांग्रेस में रहना है तो चुपचाप गहलोत से सुलह कर लें, और यदि दिशा बदलनी है तो बदल लें । मौजूदा हकीकत यह है कि कांग्रेस को सचिन की अब न तो ज्यादा जरूरत है, और न ही उन पर भरोसा ।गहलोत और हाईकमान दोनों लगभग उन्हें इग्नोर कर चुके हैं । उनका राजनीतिक कद भी अब 2018 के चुनाव वाला नहीं रहा, उनके पक्षधर लोगों का भी धैर्य जवाब दे रहा है ।पिछले चार साल के घटनाक्रमों ने कांग्रेस में उनके प्रति विश्वास को डगमगा दिया । अब एक ही मार्ग बचता है, सुलह । क्योकि गहलोत को तोड पाना अभी किसी के बस की बात नहीं । झालानी जी ने भी इस बात को शेयर किया जो मैने अपने पिछले छह-सात ब्लॉग में लिख दी थी कि सचिन उच्च शिक्षा प्राप्त हैंं, शालीन हैंं, लेकिन एक बडी गलती कर बैठे हैंं जिसने उन्हें कहीं का नही छोडा ।
भाजपा के ही वरिष्ठतम नेता कैलाश मेघवाल ने भी 2020 वाले घटनाक्रम के बाद कह दिया था कि सचिन ने मानेसर जाकर बहुत बडी गलती की, उन्होने न केवल कांग्रेस पार्टी के खिलाफ बगावत की बल्कि अपनी छवि भी खराब कर ली ।कुछ दिन पहले जब दिल्ली में गहलोत और सचिन विवाद पर हाईकमान की बैठक हुई थी उसकी दिल्ली से प्रकाशित " टूडे इंडिया "की जर्नलिस्ट क्षमा शर्मा की एक पोस्ट मिली जिसमें स्पष्ट किया कि खडगे, वेणुगोपाल और राहुल गहलोत के फैसले में पूर्ण रूप से सहमत हैंं ।खडगे का कहना था कि यदि पार्टी किसी भी ऐसे वरिष्ठ नेता की बात मान लेती है जो लम्बे समय से पार्टी के साथ सरकार को भी कटघरे में खड़ा कर रहा है, बार-बार सीएम पर आरोप लगा रहा है, ऐसे व्यक्ति पार्टी के लिए कभी हितकारी नहीं होते ।
हाईकमान का मानना है कि यदि सचिन की बात मान ली गई तो विधानसभा चुनाव तक वे किसी-न-किसी तरह कोई-न-कोई दबाव बना कर सीएम तथा हाईकमान को परेशान करेंगे । ऐसे में हर राज्य में विधायकों को मनमानी करने की छूट मिलेगी और वे कांग्रेस पार्टी के लिए परेशानी पैदा करते रहेंगे । पायलट के पास अभी भी वक्त है, बगावत छोड पार्टी में रहते हुए संयम से पार्टी हित में काम करें, अभी उनके पास बहुत उम्र है ।भारत का ज्योतिष शास्त्र कहता है कि जब सितारे गर्दिश में हों तो अच्छा व्यक्ति भी धराशाई हो जाता है, मानो आपकी मर्जी,न मानो तो आपकी मर्जी! क्योंकि समय से अधिक बलवान कोई नही ।आडाणी प्रकरण सभी के सामने है, पलक झपकते वे धड़ाम हो गए ।बचे बेनीवाल तो उनकी पार्टी का प्रदेश और केन्द्र में कोई दमदार वजूद नहीं ।उनकी बताई पगडंडी पर उतरना सचिन का खुद को बर्बाद कर लेना होगा ।
अटल बिहारी वाजपेयी सही कह गए कि इन्सान परिस्थितियों से लडे, एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढे ।
अशोक शर्मा