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वसुंधरा गहलोत की जुगलबंदी से सचिन भाजपा का सियासी क्लीन बोल्ड
मोहम्मद हफीज
विश्व के साथ हमारे देश में भी राजा महाराजा के महल जनानखाने राजनैतिक साजिशों के केंद्र रहे हैं। सियासत के शिखर पर बैठने के खेल में ना बाप बेटे का सगा होता है और ना ही कोई किसी को इस खेल में जीतने के बाद माफ करता है। पहले जहां राजाओं के शासन में राज्य हथियाने के खेल में हारने पर मौत हारने वाले का मुकद्दर बन जाती थी वहीं अब विजेता सीबीआई, ईड़ी, आयकर विभाग या फिर झूठे मुकदमों के बल पर विरोधी पक्ष की आवाज को दबाने का काम करते हैं।
देश के सभी राजनेता एक स्वर में जनसेवा के लिए राजनीति करने के दावे करते हैं परंतु हाल ही के वर्षों में देखा गया है कि सभी नेताओं के लिए जीवन दायिनी सत्ता ही सत्य है। जिसको प्राप्त करने के लिए देश के सभी नेता प्राण प्रण से लगे हुए हैं। स्वार्थ और सत्ता आज की राजनीति के महत्वपूर्ण कारक हैं इनके लिए हमारे सभी नेता रातों-रात अपनी निष्ठा, अपना ईमान धर्म सब कुछ त्याग देते हैं। राजस्थान की राजनीति में भी इन दिनों सत्ता को ही परम सत्य मोक्षदायी मानकर अपने जीवन के सारे कष्टों का निदान करने वाली परम सुखदायी सदा सुखी बनाने वाली राज्य सत्ता को प्राप्त करने के लिए कांग्रेसी कुनबे में घमासान मचा है। राज्य के उपमुख्यमंत्री रहे सचिन पायलट ने अपने समर्थक 19 विधायकों के बल पर राज्य की चुनी हुई सरकार को केंद्र की भाजपा सरकार के धन बल से गिराने का ठेका ले रखा है परंतु राजनीती के घाघ पुराने धुरंधर राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री राजे के कारण सचिन पायलट और भाजपा के मंसूबे पूरे होना संभव नहीं लग रहा है।
सचिन पायलट व केंद्र की भाजपा सरकार के सियासी खेल में सबसे बड़ा रोड़ा भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे बनकर सामने आई है जो किसी भी कीमत पर गहलोत सरकार को हटाकर मोदी, अमित शाह की पसंद के व्यक्ति को राज्य का मुख्यमंत्री बनने नहीं देना चाहती है। यहां गौरतलब होगा कि राज्य की भाजपा की राजनीति में संघ मोदी अमित शाह की तिकड़ी से राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री राजे की दुश्मनी जगजाहिर है। आज भी भाजपा के जीते हुए विधायकों में से 45 विधायक राजे के पूर्ण वफादार हैं। विधायकों की पूर्ण निष्ठा के बल पर ही संघ मोदी के ना चाहने के बावजूद भी पूर्व मुख्यमंत्री राजे ने अपना कार्यकाल पूरा करने के साथ ही केंद्र की पसंद के गजेंद्र सिंह की जगह अपनी पसंद के मदन लाल सैनी को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनवाया था। राज्य की राजनीति से संघ के स्वयंसेवक मोदी अमित शाह वसुंधरा राजे का वनवास चाहते हैं इसके लिए कांग्रेस पार्टी में ही विभिषण के रूप में सचिन पायलट को चुना गया। राज्य की राजनीति में गत 6 महीनों से पायलट खेमा भाजपा आलाकमान के संपर्क में था।
राज्य के राज्य सभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करके भाजपा के प्रत्याशी को जिताने के लिए केंद्र की भाजपा सरकार ने 500 करोड़ रुपए भेजे थे जिनके बल पर सेम्पल बतौर कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने का मंसूबा बनाया गया। यहां दाद देनी होगी अशोक गहलोत मुख्यमंत्री की टीम के सक्रिय सदस्य संजय बापना और महेश जोशी मुख्य सचेतक राजस्थान सरकार को जिन्होंने न केवल सटीक सूचनाओं का संकलन किया बल्कि तेज तर्रार फिल्डिंग सजाकर पायलट खेमे को उनकी ही चालो में उलझा कर फाउल खेल खेलने को विवश कर दिया। आज राजे के धुर विरोधी भी मोदी अमित शाह की पसंद के केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह के विरुद्ध देशद्रोह आपराधिक षडयंत्र करने का मुकदमा दर्ज हो चुका है। विधायकों को प्रलोभन देकर खरीद करने वाले संजय जैन की गिरफ्तारी हो चुकी है। राज्य की एसीबी पुलिस में अलग से मामला दर्ज हो गया है। जिसमें देर सवेर पायलट खेमे के भंवर लाल शर्मा सहित कई विधायकों पर गाज गिरना तय है। सारे घटनाक्रम का विश्लेषण करने पर राज्य के मुख्यमंत्री गहलोत के सामने सचिन पायलट नौसिखिए साबित हो चुके है। संगठन से सत्ता की प्राप्ति होती है सचिन पायलट का पतन उसी दिन से शुरू हो गया था जब संगठन के अध्यक्ष यानी कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष के साथ सचिन ने गहलोत सरकार में उप मुख्यमंत्री बनना स्वीकार कर लिया था वैसे भी उपमुख्यमंत्री का पद कोई कानूनी हैसियत नहीं रखता है प्रदेशाध्यक्ष बनकर पायलट सरकार पर दबाव बनाकर अपने समर्थकों के ज्यादा काम करा सकते थे परंतु मंत्री पद के मोह ने पायलट को अपने चाहने वालों से दूर कर दिया। पायलट को अपनी ही सरकार में देशद्रोह की धाराओं में पूछताछ का पुलिस सम्मन मिल गया था जिसे भी भुनाने में वे असफल साबित हुए।
निसंदेह राज्य के उपमुख्यमंत्री को देशद्रोह के मुकदमे में संदिग्ध मान कर पूछताछ करना वह भी पुलिस द्वारा सीधा-सीधा यह सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री की विफलता का उदघोष था। मुख्यमंत्री खेमे ने शिघ्र ही अपनी इस चूक की भरपाई करके पायलट को हमलावर होने का मौका नहीं देकर स्वयं अपने आपको भी इसी प्रकार का सम्मन पुलिस के द्वारा दिलवाया गया। पायलट खेमे में आज निराशा का वातावरण है पायलट मुख्यमंत्री बनने के लिए आवश्यक विधायकों की संख्या बल नहीं जुटा पाए इस कारण भाजपा आलाकमान ने स्पष्ट संख्या बल लाने पर ही पायलट खेमे की मदद करने अथवा दल-बदल करने के लिए उनकी मदद करने की शर्त रख दी। इसकी भनक लगते ही राज्य की राजनीति में भाजपा की मजबूरी बन चुकी वसुंधरा राजे ने अपने विधायकों को गहलोत सरकार के समर्थन के लिए आगे कर दिया। भाजपा आलाकमान ने अपना घर बिगड़ते देखकर अपने कदम वापस खींच लिए। राज्य में वैसे भी पक्ष विपक्ष के नेताओं द्वारा सौहार्द की राजनीति करके व्यक्तिगत संबंधों को कभी आंच नहीं आने दी है। यही सिलसिला मोहनलाल सुखाड़िया से शुरू होकर भैरों सिंह शेखावत, हरिदेव जोशी, अशोक गहलोत, वसुंधरा राजे तक चला आ रहा है। स्वस्थ मूल्यों की राजनीति करने व धन बल से लोकतंत्र का चीरहरण करके बहुमत जुटाने की राजनीति को राज्य में कभी भी अच्छा नहीं माना गया।
इसी का परिणाम है कि राज्य की भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री राजे के खास माने जाने वाले पूर्व विधान सभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने ही धन बल से चुनी हुई सरकार गिराने का खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया। गहलोत सरकार की संकटमोचक बनकर वसुंधरा राजे पर्दे के पीछे मोदी, अमित शाह के मोहरे के रूप में गजेन्द्र सिंह केंद्रीय मंत्री को पीटने के लिए तत्पर दिखाई दे रही है। इसकी पुष्टि गहलोत सरकार के पूर्व मंत्री विधायक राजेंद्र गुढ़ा और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल के बयानों से भी हो जाती है। विधायक राजेंद्र गुढ़ा ने गहलोत सरकार को बचाने के लिए आवश्यक विधायक भाजपा से कांग्रेस में लाने की बात कहकर सबको चौका दिया। सांसद हनुमान बेनीवाल वसुंधरा राजे पर गहलोत सरकार को बचाने के आरोप सार्वजनिक रूप से लगा दिये। राज्य की कांग्रेस भाजपा की राजनीति में गहलोत वसुंधरा दोनों का तोड़ दोनों ही दलों का आलाकमान अब तक ढूंढ नहीं पाया है।
राज्य की राजनीति दोनों ही छोड़ना भी नहीं चाहते हैं इसीलिए गहलोत वसुंधरा की घूमती हुई फिरकी गेंदों पर सचिन पायलट और भाजपा आलाकमान मोदी, अमित शाह चक्कर खा गए हैं। राजनीति के गहलोत राजे की पसंद के पिच पर फिलहाल बल्लेबाजी करने में सचिन पायलट और भाजपा आलाकमान को पसीने आ रहे हैं। घूमती हुई फिरकी के झटको में पायलट, गजेंद्र सिंह के विकेट उड़ना तय है। सचिन पायलट की उड़ान अब रुक गयी है। पाने के बजाय सचिन इस लड़ाई में बहुत खो चुके है। जिसकी भरपाई होना मुश्किल है। कांग्रेश भाजपा में गहलोत राजे का कद और भी मजबूत होगा जिसके सामने शायद ही कोई चुनौती भविष्य में पेश करने का साहस कोई नेता करेगा। राज्य की हाल की राजनीति की उठापटक से यही निष्कर्ष निकल रहा है।