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महेश झालानी
अब यह प्रमाणित होता जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी पर नेहरू परिवार का नियंत्रण और खौफ लगभग समाप्त होता जा रहा है। राहुल गांधी हासिये पर चले गए है और प्रियंका गांधी वाड्रा का वजूद दिन पर दिन समाप्त हो रहा हैं । रही बात सोनिया की तो उनकी अब कोई उपयोगिता नही रह गई है। अगर समर्पित कांग्रेसियों ने नेहरू परिवार को बेदखल कर पार्टी की कमान किसी सुयोग्य हाथ मे नही सौंपी तो इस पार्टी का भगवान ही मालिक है।
हकीकत यह है कि भाजपा का साम्राज्य कांग्रेसी की बेवकूफी से विस्तारित हो रहा है न कि भाजपा की कौशलता से। आज कांग्रेस नेतृत्वविहीन यानी अनाथ जैसी होगई है । पार्टी में कोई लोकतंत्र नही है। सारी पार्टी माँ, बेटे और बेटी के हाथों में केंद्रित होकर रह गई है। अगर इन तीनो से शीघ्र छुटकारा नही पाया गया तो कांग्रेसियों को रोने के लिए मजदूर भी नही मिलेंगे ।
अकुशल और अयोग्य नेतृत्व की वजह से पूरे देश से कांग्रेस का सूपड़ा तो साफ हो ही रहा है, इसके अलावा हाथ मे आई सत्ता भी पार्टी से फिसलती जा रही है । एमपी, गोवा तथा कर्नाटक आदि इसके ज्वलन्त उदाहरण है । इन राज्यो के बाद अब राजस्थान का नम्बर है। जहाँ जंग तो डेढ़ साल पहले ही छिड़ गई थी, मगर खुलकर सशस्त्र महाभारत अब प्रारम्भ हो चुकी है । यह महाभारत कब समाप्त होगी या नही, कुछ भविष्यवाणी नही की जा सकती है।
पार्टी के कमजोर और त्वरित निर्णय के अभाव की वजह से सत्ता के लालची लोगो मे से कुछ जैसलमेर बैठे है तो कुछ भाजपा के संरक्षण में मानेसर में अय्याशी कर रहे है । क्यो ? इसलिये कि पार्टी नेतृत्व पूरी तरह जर्जर हो चुका है । कठोर निर्णय लेने की क्षमता समाप्त हो चुकी है । इसलिए भाजपा बगावती विधायको के जरिये अपनी रोटियां सेंककर कांग्रेस को तबाह करने में सक्रिय है ।
सचिन पायलट का तमाशा बहुत हो चुका है । छब्बे बनने के चक्कर मे आज यह व्यक्ति सोचने और समझने की शक्ति खो चुका है । खुद तो अपना राजनीतिक कैरियर समाप्त कर ही रहा है, इसके अलावा हेमाराम व भंवरलाल शर्मा का बुढापा भी दफनाने पर आमादा है । कई युवा विधायक भी सचिन के बहकावे में आकर कैरियर को चौपट कर रहे है । इनमे से किसी को भी बदनामी के अलावा कुछ हासिल नही होने वाला है ।
इस हकीकत से भी कोई इनकार नही कर सकता कि पायलट ने राजनैतिक महत्वाकांक्षा के चलते बगावत का रूख अपनाया था । अब जबकि उसके लिए सारे रास्ते बंद होगये है तो बिलबिलाना स्वाभाविक है । भाजपा ने मक्खी की तरह बाहर निकलकर फेंक दिया है । तीसरे मोर्चा बनाना बूते से बाहर की बात है । ऐसे में पार्टी को रोज ब्लैकमेल किया जा रहा है ।
पायलट खेमे की ओर से आये दिन दलील दी जाती है कि उनके कुशल नेतृत्व की नेतृत्व की वजह से पार्टी को चुनावो में बहुमत मिला । अगर इतना ही कुशल नेतृत्व था तो लोकसभा चुनावों में कुशलता को जंग क्यो लग गया ? पिछला लोकसभा चुनाव भी इन्ही पायलट साहब के नेतृत्व में लड़ा गया था । तब भी 25 में से 25 सीट कांग्रेस के हाथ से फिसल गई थी ।
जहां तक 2018 के विधानसभा चुनाव का सवाल है, इसमें कांग्रेस नही जीती । बल्कि भाजपा पराजित हुई थी । महारानी की तानाशाही की वजह से पूरे प्रदेश में भाजपा को हराने का शोर मचा हुआ था । ऐसे में कांग्रेस की जीत के लिए सचिन को समूची क्रेडिट नही दी जा सकती है । चुनावों में सचिन ने चुन चुन कर गहलोत के लोगो की टिकट काटकर अपने ऐसे लोगोँ को टिकट दी जो भ्रस्टाचार के दलदल में गले तक डूबे हुए है ।
पायलट ने बगावत करने के बाद अपने पहले बयान में 30 विधायकों के समर्थन का वादा किया था । अगर है तो उनको सार्वजनिक क्यो नही करते ? दरअसल सचिन अब पूरी तरह एक्सपोज हो चुके है । पार्टी में रहने की बात भी कर रहे है और पार्टी नेताओं से लगातार दूरी । यह रणनीति नही, बेवकूफी है । अगर पार्टी में रहना है तो तरीके से रहो । दो नावों की सवारी अब नही चलने वाली है । पायलट को यह नही भूलना चाहिए कि भाजपा को शिकार के लिए कोई मेमना चाहिए । सचिन से बेहतर और कौन मेमना हो सकता है जिसकी आड़ में कांग्रेस का शिकार किया जा सके ।
माना कि अशोक गहलोत ने विकास कार्य नही करवाये । यह भी मान लिया कि इन्होंने सचिन की उपेक्षा की । लेकिन सचिन भी तो पार्टी के अध्यक्ष थे । अध्यक्ष के नाते वे गहलोत को पार्टी कार्यालय में बुलाकर कार्य करने का निर्देश भी तो दे सकते थे । मगर बात विकास की नही, सीएम बनने की थी । बेचारे छब्बे जी को भाजपा ने घास नही डाली तो गहलोत के माथे घड़ा फोड़ने लगे ।
सचिन पायलट खेमा मांग कर रहा है कि गहलोत के अलावा किसी अन्य को मुख्यमंन्त्री बनाया जाए । इसकी क्या गारंटी है कि नए मुख्यमंन्त्री से भी असन्तोष नही होगा । आज गहलोत को हटाने की मांग की जा रही है तो कल ये लोग सोनिया को भी मांग कर सकते है । हकीकत यह है कि इनके लिए पार्टी नही, कुर्सी सर्वोपरि है । कौन व्यक्ति पार्टी के प्रति समर्पित है, प्रदेश की जनता बखूबी जानती है ।
अगर सोनिया गांधी को अपनी सल्तनत कायम करनी है तो सचिन, हरीश मीणा, भंवरलाल, रमेश मीणा तथा विश्वेन्द्र जैसे लोगो को अविलम्ब बाहर का रास्ता दिखाए अन्यथा कुर्सी के भूखे ये लोग पार्टी को प्रदूषित कर जबरदस्त सडांध पैदा कर देंगे । साथ ही बगावती विधायको को पार्टी से निकालने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नही हैं । नही तो ये लोग आए दिन उछल कूद कर पार्टी नेतृत्व को अंगूंठा दिखाते रहेंगे । युद्ध का अब अंत होना चाहिए । अन्यथा गहलोत, पायलट और कांग्रेस तीनो का ही अंत होकर रह जायेगा ।
नोट : मुझे ना तो सचिन से कोई पूर्वाग्रह है और न ही मैं गहलोत का पैरोकार हूँ । अगली किश्त में पढ़िए गांधीवादी नेता की असलियत ।