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गहलोत विवाद पर पहली बार मीडिया के सामने आये सचिन पायलट
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात के बाद सचिन पायलट ने मीडिया से बातचीत की. उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने मेहनत की है, उनकी सरकार में भागदारी हो. लड़ाई पद के लिए नहीं, आत्मसम्मान के लिए थी. पार्टी पद देती है, तो पार्टी पद ले भी सकती है. उन्होंने कहा कि जो वादे सत्ता में करके आए थे, वो पूरा करेंगे.
राहुल गांधी और प्रियंका से मुलाकात पर सचिन पायलट ने कहा कि मैंने अपनी बात बेबाकी के साथ रखी. मुझे खुशी है की कांग्रेस अध्यक्षा और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने विस्तार से चर्चा की. साथी विधायकों की बातों को हमने सामने रखा. मुझे आश्वासित किया गया है कि तीन सदस्यीय की कमेटी जल्द इन तमाम मुद्दों का समाधान करेगी. ये सैद्धांतिक मुद्दे थे.
पायलट ने कहा कि पार्टी पद देती है तो पार्टी पद ले भी सकती है. मुझे पद की बहुत लालसा नहीं है, लेकिन मैं चाहता था कि जो मान-सम्मान-स्वाभिमान की बात हम करते थे वो बनी रहे. हमने हमेशा कोशिश की है कि जिनकी मेहनत से सरकार निर्माण हुआ है उन लोगों की हिस्सेदारी, भागेदारी सुनिश्चित की जाए. मेरी शिकायत का समाधान होगा.
बता दें कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सचिन पायलट की शिकायत की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करने का फैसला किया, ताकि पायलट और उनके समर्थक विधायकों द्वारा उठाए गए मुद्दों का उचित समाधान किया जा सके.
वहीं लोंगों का मानना है कि राजस्थान की सरकार आपने बचा ली है, मगर यह उपलब्धि नही है। जनता ने जिस राहुल का चेहरा देखकर विधानसभाओ मे कांग्रेस को चुना था, वह चेहरा अब तक नही दिखा है। जहां भी कांग्रेस की सरकारें है, अब दो साल या उससे ज्यादा का वक्त गुजार चुकी हैं। क्या है गिनाने को, है कोई उपलब्धि?
कहां है न्याय की योजना, कहां है शिक्षा और स्वास्थ्य के वैकल्पिक मॉडल? कहां है छोटे मझोले व्यवसाइयों के लिए कोई नवोन्मेषी पहल, ब्यूरोक्रेसी में राष्ट्र और राज्य के प्रति आस्था जगाकर एकजुट प्रयास। एक छोटे से अर्ध राज्य में काम कर रही एक छोटी सी पार्टी की सरकार आपकी नाक के नीचे कुछ मॉडल बना रही है। कांग्रेस की सरकारें क्या कोई दिखावटी मॉडल भी बना सकी है?
जनता कुशाशन, बदहाली, अतिप्रचार औऱ झूठ के ढोल से तंग आकर अगर सत्ता बदल भी दे, तो क्या बदल जायेगा। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार को जितना भी वक्त मिला, उसके खाते में उपलब्धि शून्य रही। असल मे उंसके जाने का गम कोई खास नही। कोई बदलाव दिखा कहाँ।
वही ट्रान्सफर पोस्टिंग, छीना झपटी और जनता के मुद्दों पर उदासीनता। सब यथावत वही जिसकी वजह से कांग्रेस धीमे धीमे अलोकप्रिय होती गयी। वही पुराने चेहरे, वही पुराने तौर तरीके.. इतने पुराने की अब काम के भी नही रहे। ऐसे में राजस्थान बच भी जाये फर्क क्या?
कांग्रेस राजनीति के दायरे में गवर्नेस नही कर सकती, उसकी तासीर नही है। वह गवर्नेस के दायरे में राजनीति करने की आदी है, तो गवरनेंस की ही राजनीति करे। दिखाए तो, कि एक नई कांग्रेस को अगर जनता उसे चुनेगी, तो एक नयापन दिखेगा भी। उस एकरस, एकालापी, एकमुखी, एकसूत्री सरकार के मुकाबले चयन करने पर दूसरी ओर भी वही एकालाप मिले, तो क्या अंतर भला। ऐसी सरकार रहे, या गिरा दी जाये, वोटर की बला से..
किसी नई गवर्नमेंट को सेट होने में, दिशा तय करने में दो साल लगते है। आगे दो साल नतीजों के, और आखरी चुनावी लटकों झटकों के होते हैं। दो साल हो गए, मुझे कहीं कोई दिशा नजर नही आती। सरवाईवल के तमाशे अलग है।
जिन बातों को हमने आपके इंटरव्यू में देखा, बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों के साथ चर्चा में देखा, आपके छोटे छोटे, प्रभावशाली वीडियोज में देखा.. उसका लेशमात्र आपके स्टेट्स की गवर्नमेंट में नही दिखता। सब उसी वन मैन शो मोदी की भद्दी फ़ोटो कॉपी है, जिससे आप लड़ रहे हैं।
दोष इनका नहीं। पानी ऊपर से नीचे बहता है, कोताही का झरना भी। नही दिखा कि केंद्रीय नेतृत्व ने कभी इन मुख्यमंत्रियों को बुलाकर समीक्षा की हो। कोई पॉलिसी दी हो, गवर्नमेंट का परफॉर्मस ऑडिट किया हो। नही दिखता कि जमीनी कार्यकर्ता कोई योजना लेकर जनता तक जा रहे हों। लोगों को जोड़ रहे हों। सब जमीन पर कटा कटा है जनाब।
समय गुजर रहा है। ताकतवर दुश्मन, आक्रामक मीडिया और अनैतिक हमलों पर दोष मढ़ने से नही चलेगा। राजनीति की जिम्मेदारी नही ले रहे, गवर्नेस की ही ली जाए। इसे दूसरों को आउटसोर्स करने से नही चलेगा। दूसरी ओर देखने से नही चलेगा। देश को विकास और उम्मीद के मॉडल की जरूरत है।