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भारतीय उपमहाद्वीप में धर्म आधारित साम्प्रदायिक राजनीति का गठजोड़ आजादी पूर्व मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभाके नेताओं में बना था देश में एक बार फिर भाजपा ओवेशी बंधूओ के बीच वेसा ही गठजोड़ एक बार फिर से बन रहा है। मजेदार बात ये है कि हिन्दू धर्म आधारित साम्प्रदायिक हिन्दू महासभा का दिखावटी रुप मुस्लिम विरोधी था ठीक वैसा ही चाल चरित्र आज की भाजपा का है वंही मुस्लिम लीग का राजनीतिक वजूद कांग्रेस के विरोध पर टिका था। हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग दोनों का राजनीतिक वजूद हिन्दू मुस्लिम समन्वय एकता की पेरोकार कांग्रेस के विरोध पर टिका था ठीक वैसा आज भाजपा ओवेशी बंधूओ का राजनैतिक रूप धर्म निरपेक्षता के समर्थक दलों के विरोध में है। आजादी से पहले साम्प्रदायिक सद्भाव के विरोध में बना हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग के गठबंधन के कारण ही देश को बंटवारे का दंश झेलना पड़ा था इस कड़वी सच्चाई से एक बार फिर देश की जनता मुंह छिपा कर भारी भूल कर रही है। हिन्दू मुस्लिम भारत में दोनों धर्म अलग अलग राष्ट्र मानने वालों की विचारधारा आज फिर देश में सत्ता आरूढ़ होकर भारतवासियों के सम्मान लोककल्याण की भावनाओं को आहत करने में सफल हो रही है हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग दोनों ही वेचारिक रुप से हिन्दू मुस्लिम आपस में कभी मिल नहीं सकते इस बात का समर्थन करते थे और इस विचारधारा को फ़ैलाने में लगे हुए थे।
स्वतन्त्रता पूर्व भारत में साम्प्रदायिक हिन्दू मुस्लिम राजनीति के सजग प्रेज्ञकआलोचक डाक्टर भीमराव अम्बेडकर हिन्दू मुस्लिम साम्प्रदायिकता को रेखांकित करते हुए कहा था कि यह बात सुनने में विचित्र भले ही लगें पर एक राष्ट्र बनाम दो राष्ट्र के प्रश्न पर सावरकर और जिन्ना के विचार परस्पर एक दूसरे के विरोधी होने के बाद भी एक दूसरे से मेल खाते हैं। दोनों ही इस बात पर जोर देते हैं कि भारत में हिन्दू मुस्लिम दो अलग-अलग राष्ट्र है उनमें मतभेद केवल इस बात पर है की दोनों राष्ट्रो को किन शर्तों आधारों पर रहना चाहिए (बी आर अम्बेडकर पाकिस्तान या भारत का विभाजन महाराष्ट्र सरकार बोम्बे 1946पृष्ट142) ठीक इसी प्रकार आज की भाजपा की धर्म आधारित राजनीति को हैदराबाद के सांसद औवेसी की धार्मिक राजनीति से भरपूर खुराक मिल रही हैं इस प्रकार की धर्म आधारित साम्प्रदायिक राजनीति करने वालो को वर्ष 1942मेअंगंरेजो भारत छोड़ो कांग्रेस के आजादी के आंदोलन में भी अंग्रेजों का पूर्ण समर्थन हासिल था। अंग्रेजी आकाओं के वफादार रहें इनका उत्तरदायी सहयोग महज सेदातिंक कोल तक सीमित नहीं था इसी समय में हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग गठबंधन भी सामने आया।यह वह समय था जब देश में कांग्रेस सहित सभी दलों पर अंग्रेजी सरकार का प्रतिबंध लगा था और हिन्दू महासभा तथा मुस्लिम लीग पर कोई भी सरकारी रोक नहीं थी। ठीक इसी समय में हिन्दुत्व की टोली के सावरकर के नेतृत्व में हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग ने मिल कर देश में गठबंधन सरकार चलाई।
हिन्दू महासभा के कानपुर अधिवेशन में सावरकर ने अपने अध्यक्षीय भाषण में इस सांठगांठ की अपने शब्दों में पेरवी की थी। व्यवहारिक राजनीति में आज भी सावरकर के चेलों की भाजपा जानती है केसे किसी को स्तेमाल करके बुद्धी सम्मत समझोतो से केसे आगे बढना चाहिए। सिंध हिन्दू महासभावमुस्लिम लीग दोनों ने आपसीगठबंन से अंग्रेजी शासन में सिंध और बंगाल राज्य में सरकारे चलाई।स्वतंत्र भारत में भी अलग झंडा अलग विधान को मानने वाली पीडीपी की महबूबा मुफ्ती से गठजोड़ करके आज की भाजपा कशमीर राज्य में सरकार बना चुकी है। जिस तरह पराधीन भारत में उद्दण्ड लीग को धर्म निरपेक्ष कांग्रेस अपनी तमाम आत्म समर्पण शीलता के बाद भी राजी नहीं रख पाई इसी प्रकार के संकेत आज की व्यवहारिक राजनीति में ओवेशी बंधूओ की पार्टी से मिल रहे हैं जो हर कीमत पर एंटी भाजपा के वोटों का बंटवारा करने पर तुली है। हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग की मिली जुली सरकार लीग के फजलुल हक के पृधान मंत्रित्व व महासभा के काबिल नेता श्यमा पृसाद मुखर्जी ने एक साल तक अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए चलाई।
इसी समय महासभा और मुस्लिम लीग दोनों की गठबंधन सरकार उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत सरहदी सूबे में भी थीयंहा गोर तलब होगा कि हिन्दू महासभा ने मुस्लिम लीग से उस समय हाथ मिलाया जिस समय कांग्रेस लीग से किसी भी प्रकार का राजनैतिक सम्बंध रखने के खिलाफ थी इसी समय कांग्रेस के विरोधी लीग और हिन्दू महासभा दोनों के नेता बन गए थे।यह बात भी पूर्ण रूप से सत्य है कि बंटवारे की विरोधी और देश की आजादी की समर्थक कांग्रेस पार्टी के विरोधी हिन्दू महासभा तथा मुस्लिम लीग के नेता समान रुप से अंग्रेजों के गुलाम थे। कांग्रेस पार्टी के साथ देश के धर्मनिरपेक्ष दलों के कमजोर होने के कारण व मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा को प्राप्त अंग्रेजों के संरक्षण के कारण ही देश का विभाजन हुआ था। नफ़रत की राजनीति के कारण ही देश की आजादी की शुभ घड़ी की शाम को देश ने धार्मिक दंगों का भीषण दोर देखा था लगभग 10लाख से अधिक लोगों का कत्लेआम हुआ और दो से तीन करोड़ लोग रातों-रात अपने घर से बेघर हो गए पेदल चलकर जेसे तेसे ये लोग सुरक्षित स्थानों पर पहुंचे।
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में 30%हिन्दु सिख आबादी रातों रात मात्र 1%तक सिमट के रह गई इसी प्रकार भारत के पूर्वी प्रांत पंजाब की मुस्लिम आबादी एक ही रात में 40%से घटके 2%तकसिमट गई ठीक ऐसा ही हाल बंगाल राज्य में हुआ था लाखों लोग रातों-रात बेघर बार हो गए थे। आजादी की पूर्व संध्या पर मिले देश को दंगों के कारण ही देश को आजादी दिलाने वाले महा मानव मनीषियों ने धर्म को व्यक्ती की निजी आस्था का सवाल मानकर देश को धर्म निरपेक्ष संविधान के सूत्र में बांधने का काम किया था धर्म आधारित राजनीति के कारण ही हम देश का बंटवारा कर चुके हैंबंटवारे में हमने अपने ही हाथों से अपनो को ही मारा है
देश की राजनीति में शायद आज सत्ता लोलूप नेताओं के कारण ही जन कल्याण समाज वाद धर्म निरपेक्षता के साथ चरित्र की सुचिता के आदर्श मुल्यो की कीमत नहीं रही तत्कालीन राजनीतिक स्वार्थ और फायदों के लिए देश की आत्मा को छलनी बार बार छलनी किया जाता है। देश की वर्तमान पीढ़ी जिसे आजादी विरासत में मिली है बिना त्याग कुर्बानी के इस पीढी को आज के स्वार्थी नेता आत्म घाती राह पर धकेल रहे हैं आजादी के नायकों को ही देश की हर समस्या का कारण बताकर उन पर अनेतिक लांछन लगाने का काम धूर्त नेता कर रहे हैं।यदी भारत महान देश रहेगा तो पृधान मंत्री नेता विधायक आते जाते रहेंगे।
हर असहमति की उठने वाली आवाज को देश विरोधी बताकर उसकात्रिरस्कार करना नेताओं का एकमात्र लक्ष्य हो गया जिस तरह आजादी से पहले मुस्लिम लीग ने मुस्लिमों का और हिन्दू महासभा ने स्वयं को हिन्दुओं का एकमात्र प्रतिनिधि मान लिया वेसे ही आज भाजपा हिन्दू समाज की एकमात्र प्रतिनिधि मान कर मुस्लिमों का प्रतिनिधि औवेसी को बनाने पर तुली है इससे देश में इतिहास दोहराने की बू आती है।भाजपा का औवेसी को सरंक्षण देने से देश की जनता में अनेक शंकाएं पनप रही है राजस्थान सरकार के मुख्य सचेतक डॉ महेश जोशी औवेसी को भाजपा का दलाल कहते हैं तो कुछ गलत नहीं लगता।
देश के अल्प संख्यक समाज को भी सोचना चाहिए कि आज के राजनीतिक परिवेश में औवेसी की राजनीति से सिर्फ भाजपा की साम्प्रदायिक राजनीति को ही बढ़ावा मिलता है सिर्फ भाजपा की नफरत की राजनीति ही परवान चढती है। देश में वर्ष1937मे जिन्ना की मुस्लिम लीग से पहले सावरकर ने अपने भाषण में दो-राष्ट्र के सिद्धांत को अपने भाषण में उद घोषित किया तब बाद में जाकर 1940केवर्ष में अपने अधिवेशन में मुस्लिम लीग ने इसे अपनाया।यदी देश की जनता औवेसी भाजपा कीमिलिभगत को नहीं समझी तो देश में आजादी से पूर्व की राजनीति का दोर पुनः आ सकता है यदि ऐसा होता है तो हम आजाद भारत में आने वाली हमारी नई पीढ़ियों को सक्षम समर्थ भारत के बजाय एक बीमार लड़खड़ाता देश सोपेगें जिसकी शुरुआत हो चुकी है आज चीन हमारी सीमा में घुसा हमारी छाती पर चढ बेठा है