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राजस्थान में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा, बीजेपी इस पर मशक्कत कर रही है तो इधर कांग्रेस में प्रतिपक्ष के नेता का पद हासिल करने के लिए भागदौड़ शुरू होगई है । कांग्रेस की लुटिया डुबोने वाले अशोक गहलोत चाहते है कि गोविंदसिंह डोटासरा को प्रतिपक्ष का नेता बनाया जाए । जबकि बीजेपी के दिग्गज नेता राजेन्द्र राठौड़ को धूल चटाने वाले नरेंद्र बुडानिया भी मैदान में कूद सकते है । यानी इस पद को हथियाने के लिए दो जाटों में घमासान हो सकता है ।
कांग्रेस का पिंड दान करने में जितना योगदान गहलोत का है, उससे कम डोटासरा का भी नही है । शिक्षा मंत्री रहते हुए इन्होंने रिश्वत की रेट सीधे 80 हजार से बढ़ाकर चार लाख रुपये कर दी थी । पेपर लीक मामले में भी इनको बरी नही किया जा सकता है । साथ ही अपने रिश्तेदारों का भी पिछले दरवाजे से आरएएस में चयन कराने में इनकी सक्रिय भूमिका रही है ।
चुनावों में केवल राम और लखन की जोड़ी यानी अशोक गहलोत और डोटासरा के ही पोस्टर पूरे राजस्थान में छाए रहे । राहुल, सोनिया, प्रियंका, खड़गे, वेणुगोपाल, रंधावा और सचिन पायलट के फोटो पोस्टरों से नदारद रहे । राम और लखन की इस जोड़ी ने अपनी टुच्ची हरकतों के चलते कांग्रेस को रसातल में पहुंचा दिया जिसका खामियाजा कांग्रेस को लोकसभा चुनावों में भी देखने को मिलेगा ।
नरेंद्र बुडानिया एक मंजे हुए राजनेता है और उनको लोकसभा और विधानसभा का लंबा तजुर्बा है । राजेन्द्र राठौड़ जो सीएम पद के प्रबल दावेदार समझे जा रहे थे, बुडानिया ने उन्हें बुरी तरह से पराजित किया । नरेंद्र बुडानिया ने अपने छात्र जीवन के दौरान ही राजनीति में रुचि दिखानी शुरू कर दी और 1974 और 1975 में लोहिया पीजी कॉलेज, चूरू में छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में चुने गए। मुख्यधारा की चुनावी राजनीति में, उन्होंने ग्राम पंचायत दुधवाखारा के सरपंच के रूप में चुने जाने से शुरुआत की ।
बुडानिया कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और तब से एक वफादार कांग्रेसी रहे हैं। सरपंच रहते हुए बुडानिया क्षेत्र में किसानों की आवाज बनकर उभरे और कांग्रेस पार्टी ने उन्हें 1983 से 1985 तक चूरू जिला किसान कांग्रेस का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी । 1985 में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें चूरू निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव का टिकट देकर उनकी क्षमता पर भरोसा दिखाया ।
बुडानिया ने बड़े अंतर से चुनाव जीता और 1985 से 1989 तक 8वीं लोकसभा के लिए संसद के निचले सदन में कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व किया। इस अवधि के दौरान बुडानिया ने कई प्रमुख पदों पर कार्य किया और 1987 में भारतीय युवा कांग्रेस के महा मंत्री बने। उन्होंने 1986 से 1987 तक राजस्थान किसान कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। बाद में, उन्होंने राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संगठन सचिव के रूप में भी कार्य किया।
वर्ष 1993 में उन्हें चूरू के सरदारशहर से विधानसभा चुनाव लड़ने की जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने भंवर लाल शर्मा को बड़े अंतर से हराकर चुनाव जीता और 1993 से 1996 तक राजस्थान विधान सभा के सदस्य के रूप में कार्य किया। इस अवधि के दौरान उन्होंने विधान सभा में उप मुख्य सचेतक के रूप में कार्य किया। बाद में उन्होंने लगातार दो बार लोकसभा में कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व किया। वह चुरू निर्वाचन क्षेत्र से ग्यारहवीं और बारहवीं लोकसभा के लिए चुने गए थे।
वर्ष 2009 के उप-चुनाव में उन्हें राज्यसभा सदस्य के रूप में चुना गया। 2010 में वह अपने दूसरे कार्यकाल में फिर से राज्यसभा के सदस्य के रूप में चुने गए और दो साल तक रहे । 2012 में, बुडानिया को पूर्ण कार्यकाल के लिए राज्यसभा का सदस्य चुना गया और उन्होंने 2018 तक राज्यसभा सांसद के रूप में कार्य किया। इस अवधि के दौरान उन्होंने राज्यसभा में उपमुखिया शेतक के रूप में भी कार्य किया । 2018 में पार्टी ने उन्हें चुरू के तारानगर से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया. बुडानिया आसानी से चुनाव जीतकर राजस्थान विधानसभा के सदस्य बन गये।
अपने पूरे राजनीतिक जीवन में, वह कांग्रेस पार्टी के एक वफादार सदस्य रहे हैं और उनसे जो भी करने के लिए कहा गया, उन्होंने पार्टी की सेवा की। वह किसान समुदाय के लिए एक प्रमुख आवाज बनकर उभरे हैं और उन्होंने राज्य और राष्ट्रीय संसद सहित विभिन्न प्लेटफार्मों पर किसानों की बेहतरी से संबंधित मुद्दों को उठाया है । राजेन्द्र राठौड़ को हराकर उन्होंने अपने पद में इजाफा किया है ।
खबर मिली है कि गहलोत हर हालत में डोटासरा को प्रतिपक्ष के पद पर बैठाने के लिए लालायित है । जबकि अन्य नव निर्वाचित विधायक चाहते है कि बुडानिया ही यह पद संभाले । चुनाव परिणाम आने के साथ ही लॉबिंग शुरू होगई है । डोटासरा को डर है कि उनसे प्रदेशाध्यक्ष का पद छिन सकता है । क्योंकि उनके खराब नेतृत्व के चलते कांग्रेस जीती बाजी भी हार गई ।