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महेश झालानी
अशोक गहलोत निश्चय ही राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी है तथा संवेदनशीलता उनकी पहचान है । राजनीति में ये हार्मलेश राजनेताओं गिने जाते है । राजनीति के लंबे तजुर्बेकार है । शालीनता इनके संस्कारो में शुमार है । लेकिन इन्होंने एक दो ऐसी गलतियां की है जो इनके चरित्र से कतई मेल नही खाती है । हालांकि तीर से निकला हुआ कमान वापिस नही आता है । लेकिन गहलोत चाहे तो अब भी अपनी गलती को सुधारकर एक मिसाल कायम कर सकते है ।
सचिन पायलट द्वारा बगावत के दौरान अशोक गहलोत ने उन्हें नकारा, निकम्मा, बैंगन बेचना वाला कहकर अपना कद बहुत ही छोटा कर लिया । राजनीति करते हुए गहलोत को 40 वर्ष से अधिक वक्त हो चुका है । ऐसे ओछे और घटिया शब्द इन्होंने कभी इस्तेमाल नही किये । इन शब्दों से सचिन के पर कोई फर्क नही पड़ा । लेकिन गहलोत की शालीनता पर इन शब्दों ने कालिख पोत कर रख दी है ।
गहलोत को क्रोधित करना सचिन पायलट की रणनीति थी । इस रणनीति के जाल में उलझकर गहलोत ने ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया जो इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर रह गए है । जब भी गहलोत के राजनीतिक अतीत को लिखा जाएगा, तब इन शब्दों को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता है ।
छोटी मोटी गलतियां और भी की होंगी । लेकिन आजतक के संवाददाता शरत कुमार के खिलाफ अस्थिरता उत्पन्न करने का मुकदमा दर्ज करवाना बहुत ही हास्यास्पद और बचकानी हरकत के अलावा कुछ भी नही है । जिस तरह सचिन पायलट सहित अनेक लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए के अंतर्गत राष्ट्रद्रोह में मुकदमा दर्ज करवाना बहुत बड़ी भूल थी, उसी प्रकार शरत कुमार के खिलाफ दर्ज करवाया गया मुकदमा भी नासमझी का एक बहुत बड़ा उदाहरण है ।
तीन चार माह पुरानी वारदात को लेकर आज मुकदमा दर्ज करवाना मुख्यमंत्री की बदनीयती को इंगित करती है । सूर्यगढ़ में फोन टेपिंग की खबर अकेले शरत कुमार ने नही, देश के तमाम मीडिया ने चलाई थी । ऐसे में शरत कुमार और सचिन पायलट के मीडिया सलाहकार लोकेंद्र के खिलाफ दर्ज कराए मुकदमे को कोई भी व्यक्ति समझदारी भरा निर्णय नही कह सकता है । आज नही तो कल मुकदमा वापिस होगा अथवा अदालत द्वारा निरस्त किया जाएगा ।
इस मुकदमे से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने को अलग नही कर सकते है । क्योंकि किसी अधिकारी में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह बिना मुख्यमंत्री की इजाजत के इतना बड़ा कदम उठा सके । अगर सचमुच मुख्यमंत्री इस मुकदमे से अनभिज्ञ है तो यह प्रदेश का बहुत बड़ा दुर्भाग्य होगा । मान लेना चाहिए कि राजस्थान की पुलिस पूरी तरह निरकुंश और तानाशाह होगई है ।
मान लिया कि शरत कुमार सचिन के इशारों पर कत्थक कर रहे हो । लेकिन आवाज दबाने का यह शालीन तरीका कतई नही है । यह वही अशोक गहलोत है जो किसी के कंधे पर हाथ रख दे तो वह ताउम्र गुलाम बनकर रह जाता है । शरत कुमार पर भी यह फार्मूला अपनाया जा सकता था । खैर ! अब भी कुछ नही बिगड़ा है । गहलोत को अपनी सदाशयता का परिचय देते हुए इस मुकदमे को अविलम्ब वापिस लेकर नई मिसाल कायम करनी चाहिए ।