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मुख्यमंन्त्री अशोक गहलोत का यह कथन प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगवा सकता है
महेश झालानी
राजस्थान सरकार को राज्यपाल से पंगा लेना बहुत भारी पड़ा। राज्यपाल ने राजस्थान सरकार को विधानसभा सत्र आहूत करने वाली पत्रावली लौटकर सरकार के सामने नई मुसीबत खड़ी करदी है।
सरकार के जवाब से संतुष्ट नही है राज्यपाल
विधानसभा सत्र आहूत करने के संम्बंध में प्रथम दृष्टया राज्यपाल कलराज मिश्र राज्य सरकार द्वारा भेजे गए जवाब से संतुष्ट नही है । राज्यपाल ने पत्र लिखकर राज्य सरकार 6 बिंदुओं पर विस्तार से सफाई मांगी थी। राजभवन सूत्रों का कहना है कि प्रथम दृष्टया जवाब अनुकूल नही है। फिर भी विशेषज्ञ सरकार के जवाब का अध्ययन कर रहे है।
सूत्रों ने बताया कि राज्यपाल ने सरसरी तौर पर सरकार की ओर से भेजे जवाब को देख तो लिया है। लेकिन दो-तीन बिंदुओं पर वे संतुष्ट नही है। अगर एक्सपर्ट्स ने जवाब को हरी झंडी दे दी तो राज्यपाल कभी भी सत्र बुलाने के वारंट पर दस्तखत कर देंगे। अन्यथा वे पुनः सरकार से जवाब तलब कर सकते है।
सूत्रों का कहना है कि राजभवनों के घेराव की चेतावनी देना कतई न्यायोचित नही है । राज्यपाल प्रदेश का संवैधानिक रूप से मुखिया होता है। किसी भी बिंदु पर स्पस्टीकरण मांगना राज्यपाल का कानूनी अधिकार है । ऐसे में राजभवनों के घेराव करना एक तरह से ब्लैकमेल की श्रेणी में आता है। राज्यपाल कभी भी टकराने के मूड में नही रहे है। लेकिन विधायको ने राजभवन में जबरन प्रवेश कर सभी लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या कर दी।
मैंने पहले ही उल्लेख किया कि प्रथम दृष्टया राज्य सरकार के जवाब से राज्यपाल कलराज मिश्र संतुष्ट नही है। साथ ही यह भी लिखा था कि राज्यपाल विधानसभा का सत्र बुलाने के मूड में नही है। राज्यपाल के इस फैसले के बाद राज्य सरकार विधि विशेषज्ञों से राय लेने के लिए सक्रिय हो गई है।
राज्यपाल ने अपना रुख उस समय ही स्पस्ट कर दिया था, जब मुख्यमंन्त्री ने विधायको के साथ राजभवन में ना केवल धरना दिया बल्कि जमकर नारेबाजी भी की। कांग्रेस के इस गैर जिम्मेदाराना हरकत से राज्यपाल बेहद खफा हो गये। संभवतः राज्यपाल पत्रावली पर दस्तखत कर भी देते, लेकिन कांग्रेस द्वारा राजभवन घेराव के बाद उन्होंने पूरी तरह सरकार से टकराने का मूड बना लिया है। राजभवन के सूत्रों का कहना है कि स्पस्टीकरण मांगना राज्यपाल का संवैधानिक अधिकार है। इसके लिए अनुच्छेद 174 में कोई उल्लेख नही है।
सूत्रों ने बताया कि राज्यपाल कोरोना पर चर्चा करने के लिए विधानसभा का सत्र बुलाने के तर्क से कतई सहमत नही है। इससे पूर्व का सत्र कोरोना के कारण ही समय से पहले स्थगित किया गया था । राज्य सरकार पहले भी विधायको और अधिकारियों से वीसी के जरिये कोरोना पर चर्चा कर चुकी है। फिर अब गुरेज क्यो ?
सूत्रों ने बताया कि राज्यपाल ने भी अब प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। ऐसे में वे शीघ्र दस्तखत करेंगे, इसकी संभावना शून्य है। उधर राज्यपाल ने केंद्र को प्रदेश की ताजा राजनीतिक हालातो से अवगत करा दिया है। राज्यपाल ने मुख्यमंन्त्री के उस कथन को भी उद्धत किया है जिसमे उंन्होने कहा था कि जनता राजभवन का घेराव करेगी। ऐसे में कोई भी अप्रिय वारदात होती है इसके लिए हमारी जिम्मेदारी नही होगी। मुख्यमंन्त्री का यह कथन प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगवा सकता है।