जयपुर

दो बातें आजकल की हिंदी पढ़ते वक़्त तंग करती हैं - ओम थानवी

Shiv Kumar Mishra
15 July 2021 5:41 AM GMT
दो बातें आजकल की हिंदी पढ़ते वक़्त तंग करती हैं - ओम थानवी
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अगर हिंदी ‘एक’ और ‘ऐनक’ के उच्चारण में फ़र्क़ समझाती है, तो ऐंकर को हम एंकर क्यों लिखते हैं?

श्री ओम थानवी की फेसबुक से साभार

दो बातें आजकल की हिंदी पढ़ते वक़्त तंग करती हैं। एक तो तो शब्दों का स्त्रीलिंगकरण। मज़ार थी। कलह हुई। अख़बार आई। शायद दिल्ली की हिंदी का असर हो। चंडीगढ़ में तो और कमाल देखा। अख़बारें आती थीं; ट्रकें खड़ी होती थीं।

दूसरी बात: लिखते समय दो की जगह एक मात्रा से काम चला लेना। इसका सीधा असर आम लोगों के उच्चारण पर पड़ता है, क्योंकि लोग वही बोलेंगे जैसा रोज़ पढ़ते हैं। प्रधानमंत्री को आपने अक्सर 'हेल्थ' बोलते सुना होगा। ऐसा शायद इसलिए है कि हैल्थ हम लिखते ही नहीं।

कई जगह तो मात्रा के भेद से अर्थ का अनर्थ भी सम्भव है: मेन/मैन, पेन/पैन, केप/कैप, रेड/रैड।

कल ही एक प्रोफ़ेसर को हर बार 'वेब' कहते सुना। पता नहीं हम वैब क्यों नहीं लिखते। अगर हिंदी 'एक' और 'ऐनक' के उच्चारण में फ़र्क़ समझाती है, तो ऐंकर को हम एंकर क्यों लिखते हैं?

मैं काफ़ी समय तक ऐसिड को एसिड बोलता था, क्योंकि 'एसिड' ही पढ़ते आया था। अंगरेज़ी शब्दों के साथ अक्सर ऐसा होता है: ऐलबम, ऐडवोकेट, ऐसेट, ऐलोपैथी, ऐंगल, ऐक्ट या ऐक्टर आदि रूप हम लिखते ही नहीं।

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